देश में अकेले बाढ़ की वजह से 20 साल में बह गए 547 लाख करोड़ रुपए

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, अकेले भारत को पिछले 2 दशकों में बाढ़ के कारण 79.5 बिलियन डॉलर यानी 54,73,45,57,50,000 रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ. बाढ़ के लिहाज से 2018 का साल भारत के लिए बेहद बुरा रहा. कई राज्यों समेत केरल में अचानक आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई.

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हर साल बाढ़ में हजारों करोड़ की संपत्ति का होता है नुकसान (फाइल) हर साल बाढ़ में हजारों करोड़ की संपत्ति का होता है नुकसान (फाइल)

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 11:46 AM IST

साल के बीच के महीने भारत के लिए प्राकृतिक आपदाओं से भरे होते हैं. पहले कई राज्य सूखा और तेज गर्मी से त्रस्त होते हैं और फिर मॉनसून के बाद आई बाढ़ कई राज्यों की तबाही को कई गुना बढ़ा देती है. बाढ़ की वजह से लाखों लोग बेघर हो जाते हैं, हजारों घर नष्ट हो जाते हैं, हजारों हेक्टेयर फसल तबाह हो जाती है, साथ ही काफी संख्या में लोग मारे जाते हैं. अकेले बाढ़ से पिछले 20 सालों में 547 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ. इतने में देशभर में ढाई लाख से ज्यादा स्कूल खोले जा सकते थे.

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हर साल की तरह इस बार भी बाढ़ अपना रौद्र रूप दिखा रही है, इन दिनों एक दर्जन राज्यों से ज्यादा राज्य बाढ़ की चपेट में है, इनमें से कई राज्य तो ऐसे हैं जो कुछ दिन पहले तक सूखे और भीषण गरमी से परेशान थे, लेकिन बारिश का सीजन आने के बाद यहां के लोगों के लिए बाढ़ अब काल बन गई है. करीब दो महीने पहले उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा की 42 फीसदी आबादी सूखे और गर्मी से परेशान थी, अब बाढ़ का सामना कर ही है.

देशभर में बाढ़ की वजह से अब तक 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. 70 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की वजह से प्रभावित हैं और कई लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है. सैकड़ों की संख्या में घर ध्वस्त हो गए हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, असम समेत के कई राज्यों में नदियों का जलस्तर खतरे के निशान के ऊपर पहुंच गया है. मुंबई में बारिश अपनी तबाही मचा रहा है.

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20 साल में बाढ़ से 547 लाख करोड़ स्वाहा

बाढ़ और सूखा ये ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो हर साल देश को भारी आर्थिक क्षति पहुंचाती है. संयुक्त राष्ट्र ने पिछले साल अक्टूबर में इकोनॉमिक लॉसेज, पॉवर्टी एंड डिजास्टर 1998-2017 नाम से एक रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार पिछले 20 सालों में वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित देशों को 2,908 बिलियन डॉलर का भारी नुकसान हुआ है जिसमें मौसम के बदलने के कारण आपदाओं से 2,245 बिलियन डॉलर स्वाहा हो गए जो कुल नुकसान का 77 फीसदी है.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, अकेले भारत को पिछले 2 दशकों (1998-2017) में बाढ़ के कारण 79.5 बिलियन डॉलर यानी 54,73,45,57,50,000 रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ. बाढ़ के लिहाज से 2018 का साल भारत के लिए बेहद बुरा रहा. कई राज्यों समेत केरल में अचानक आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई.

पिछले साल केरल में आई थी भीषण तबाही

तो खुल जाते ढाई लाख से ज्यादा स्कूल

अगर देश में एक 12वीं क्लास तक का स्कूल खोलने में औसतन 2 करोड़ रुपये का खर्च आता है तो बाढ़ की विभीषिका से पिछले 20 सालों में जितना आर्थिक नुकसान (547 लाख करोड़ रुपये) हुआ उससे तो देशभर में 2 लाख 73 हजार 6 सौ से ज्यादा इंटरमीडिएट स्तर के स्कूल खोले जा सकते थे, लेकिन यह पानी में बह गया.

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बाढ़ के कारण 2018 में 27 लाख लोग बेघर हुए, जिसमें अकेले 15 लाख लोग केरल से ही थे और इन्हें 5,600 कैम्पों में ठहराया गया था. राज्य में 2 हजार से ज्यादा मकान ध्वस्त हो गए जबकि 22 हजार मकानों को नुकसान पहुंचा. इसके अलावा समुद्रतटीय इलाकों में कई चक्रवाती तूफानों के कारण करीब 7 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा.

हर साल 20 लाख लोग बेघर

इंटरनल डिस्प्लेमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (IDMC) की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल औसतन 20 लाख लोग बाढ़ की वजह से बेघर हो जाते हैं, इसके बाद चक्रवाती तूफानों के कारण औसतन 2.50 लाख लोगों को हटाया जाता है.

भारत एक तरह से प्राकृतिक आपदाओं से घिरा देश है. पिछले साल मार्च में संसद में बारिश और बाढ़ से जुड़े एक सवाल पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में बताया कि सन 1953 से लेकर 2017 तक बारिश और बाढ़ की वजह से देश को 3 लाख 65 हजार 860 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ तो 1,07,487 लाख लोग बाढ़ और बारिश की भेंट चढ़ गए.

औसतन 1,700 लोगों की जाती है जान

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1953 से 2017 के बीच बाढ़ की वजह से गुजरे 64 सालों में 1,07,487 लोगों की जान चली गई. जन हानि के आधार पर 1977 में आई बाढ़ सबसे विनाशकारी रही क्योंकि इस साल सबसे ज्यादा 11,316 लोगों ने अपनी जान गंवाई.

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सरकार के अनुसार 1976 से लेकर 2017 तक हर साल (1999 में 745 और 2012 में 933 मौतों को छोड़कर) इस प्राकृतिक विपदा से मरने वालों की संख्या 1 हजार से ज्यादा ही रही है. औसतन हर साल 1,654 लोग पानी की आपदा के भेंट चढ़ जाते हैं.

इंसानी जान के अलावा जल संबंधी आपदा से अगर फसलों, घरों और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर आकलन किया जाए तो बीते 64 सालों में 3,65,860 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. आर्थिक नुकसान के आधार पर नजर डालें तो हर साल औसतन 5628.62 करोड़ भारी बारिश और बाढ़ की भेंट चढ़ जाती है.

हर साल बाढ़ से होने वाले नुकसान से अर्थव्यवस्था को पहुंचती है चोट (REUTERS)

... तो भारत में खत्म होंगी 3.4 करोड़ नौकरियां

भारी बारिश और बाढ़ की वजह से तबाही होती ही है, साथ में देश को भीषण गर्मी और सूखे से भी मार झेलनी पड़ती है. भीषण गर्मी की वजह से उत्पादकता में लगातार गिरावट आती है. अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन (ILO) की हालिया रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक दुनियाभर में 8 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा जबकि भारत में बढ़ती गर्मी की वजह से करीब 3.4 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी.

नौकरी के अलावा वैश्विक स्तर पर कामकाजी समय में 2.2 फीसदी की कमी आ सकती है. दूसरी ओर भारत में सबसे ज्यादा लोग खेती समेत कई अन्य असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं और मजदूरों को उनके शारीरिक श्रम के बदले मजदूरी मिलती है. गरमी की वजह से ज्यादा काम करने का मौका उनके पास नहीं होगा ऐसे में उनकी आमदनी पर असर पड़ेगा.

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सूखे से 2030 तक कम हो जाएंगी नौकरियां

भारत में गर्मी के कारण खेती और निर्माण क्षेत्र का काम प्रभावित होता है और 2030 तक देश में 5.8 फीसदी कामकाजी समय में कमी आ सकती है. रिपोर्ट कहती है कि बढ़ती गर्मी की वजह से पूरी दुनिया में कामकाजी घंटों में 2.2 फीसदी की कमी आएगी. भारत पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. 1995 में भारत में काम के घंटों में 4.3 फीसदी की कमी आई थी और 2030 तक यह आंकड़ा 5.8 फीसदी तक बढ़ने की आशंका है.

मई 2016 में एसोचैम ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए 10 राज्यों में भीषण सूखे के चलते अर्थव्यवस्था को करीब 6,50,000 करोड़ रुपये का नुकसान की आशंका जताई थी. लगातार मॉनसून खराब रहने, जलाशयों में पानी की कमी और भूजल के स्तर में तेजी से जारी गिरावट के चलते 10 राज्यों के 33 करोड़ लोगों को सूखे का सामना करना पड़ा था. इस साल भी औसत से कम बारिश होने की संभावना जताई गई है और मॉनसून के देरी से आने के कारण कई जगहों पर सूखे की स्थिति बन गई थी.

बारिश न हो तो सूखे का डर और हो तो बाढ़ का डर, आम जनता करे तो क्या करे. उसके लिए आगे कुआं पीछे खाई जैसी स्थिति है जबकि सरकार हर साल इस पर ढेरों वादे और मास्टर प्लान बनाने की बात करती है, लेकिन मार्च खत्म होने के बाद 2 महीने जनता गर्मी और सूखे से त्राहिमाम करती रहती है तो इसके बाद वह बाढ़ से न सिर्फ अपनी जान बचाने को मजबूर होती है बल्कि बेघर भी होना पड़ता है. यह प्रक्रिया हर साल जारी है, चाहे सरकार किसी की हो, हजारों करोड़ सलाना तौर पर बर्बाद हो जाते हैं.

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