पढ़ें, पुलिस के सामने डंडा ताने बुजुर्ग किसान की वायरल फोटो के पीछे की कहानी

aajtak.in ने इस तस्वीर को अपने कैमरे में कैद करने वाले वरिष्ठ फोटो पत्रकार रवि चौधरी से बात की. रवि, समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ जुड़े हुए हैं. आगे की पूरी कहानी रवि चौधरी से ही सुनिए.

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फोटो: रवि चौधरी/पीटीआई फोटो: रवि चौधरी/पीटीआई

विकास कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 12:32 PM IST

दो अक्टूबर को दिल्ली-ग़ाज़ियाबाद सीमा के पास प्रदर्शनकारी किसान और पुलिस के जवान आमने-सामने आ गए. इस घटना की एक तस्वीर सामने आई और देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. इस तस्वीर की हर किसी ने अपने हिसाब से व्याख्या की. इस एक तस्वीर ने कुछ ही समय में कई लोगों को उस घटना से जोड़ दिया. जब हमें कोई फोटो अच्छी लगती है या किसी फ़ोटो का हम पर प्रभाव होता है तो हम उसकी पूरी कहानी जानना चाहते हैं. हम जानना चाहते हैं कि किन हालात में ये फ़ोटो बनी. इस फोटो में जो दिख रहा है उसके आगे क्या था. और ऐसा क्या है जो इस फ़ोटो में नहीं दिख रहा लेकिन घटित हुआ था. इसीलिए aajtak.in ने इस तस्वीर को अपने कैमरे में कैद करने वाले वरिष्ठ फोटो पत्रकार रवि चौधरी से बात की. रवि, समाचार एजेंसी पीटीआई से जुड़े हुए हैं. आगे की पूरी कहानी रवि चौधरी से ही सुनिए:-

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हमें जानकारी थी कि किसान आज दिल्ली में दाख़िल हो सकते हैं और पुलिस उन्हें दिल्ली-यूपी बॉर्डर के पास रोक सकती है. सो मैं सुबह सात बजे ही यहां पहुंच गया था. काफी देर इंतजार करने के बाद किसानों का एक छोटा समूह 9 बजे के आसपास पहुंचा. लगभग 11 बजे के आसपास करीब 5 हजार किसान आ गए. कुछ किसान पीछे, थोड़ी दूरी पर रुके हुए थे. किसानों के रास्ते में यूपी पुलिस की भी एक बैरिकेडिंग थी. उस बैरिकेड को किसानों ने हटा दिया और यूपी पुलिस के जवानों ने भी एक तरह से उन्हें रास्ता दे दिया. अब किसानों का जत्था अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ दूसरी बैरीकेड के पास पहुंचा. ये बैरीकेड दिल्ली पुलिस ने लगाया था. एक तरफ़ जोश से भरे किसानों का जत्था और बैरीकेड के दूसरी तरफ़ दिल्ली पुलिस के जवान और वॉटर कैनन की गाड़ियां खड़ी थीं. मैं अपने कुछ फ़ोटोग्राफर साथियों के साथ इस सड़क से लगे फ़्लाईओवर पर खड़ा था.

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किसानों के हाथ में झंडे थे. पुलिस के जवान भी डंडे और आंसू गैस के गोले छोड़ने वाले गन से लैस थे. नारेबाज़ी करते हुए किसान आगे जाने की कोशिश कर रहे थे. वो अपनी ट्रैक्टर से बैरीकेड को हिलाने की कोशिश भी कर रहे थे. 11:30 बजे के आसपास पुलिस ने किसानों पर वॉटर कैनन का इस्तेमाल शुरू किया. क़रीब-क़रीब दस मिनट तक पुलिस ने किसानों पर इसका इस्तेमाल किया. इसके तुरंत बाद उन्होंने आंसू गैस के गोले दागने शुरू किए. मैं कई और प्रदर्शन कवर कर चुका हूं और उस हिसाब से कहूं तो पुलिस ने काफ़ी देर तक किसानों पर पानी बरसाया और आंसू गैस के गोले दागे.

किसान इस एक्शन से तितर-बितर हो गए. उनके झंडों में से कपड़ा ग़ायब हो गया और उनके हाथ में केवल डंडे रह गए. किसानों ने पुलिस की तरफ़ कुछ-कुछ फेंकना शुरू किया. उनमें काफी गुस्सा था.

तभी मुझे दिखा कि सड़क के किनारे कुछ हो रहा है. मैंने अपने कैमरे का ज़ूम बढ़ाया तो दिखा कि पुलिस के डंडे के जवाब में एक बुजुर्ग किसान ने भी डंडा उठाया हुआ है. मुझे यह दृश्य काफ़ी मार्मिक लगा. अक्सर जब पुलिस की लाठियां चलती हैं तो लोग भाग खड़े होते हैं या पुलिस की लाठी से ख़ुद को बचाने की कोशिश करते हैं. लेकिन यहां ऐसा नहीं था. तस्वीर में आप देख सकते हैं कि एक तरफ़ पुलिस के कई जवान हैं वहीं दूसरी तरफ़ वो(किसान) अकेले खड़े हैं.

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कई सालों से फ़ील्ड में हूं. हर कुछ दिन में एक बार प्रदर्शनकारियों और पुलिस को आमने-सामने पाता हूं लेकिन आज से पहले मैंने ऐसा कोई दृश्य नहीं देखा था. इस तस्वीर में व्यवस्था की ताक़त को एक बुजुर्ग किसान का ग़ुस्सा, चुनौती दे रहा है. मानों वो कह रहा है, हम हारे नहीं हैं.

मैं 2008 से फोटो पत्रकारिता कर रहा हूं. ऐसी किसी भी स्थिति में काम करना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन हम ऐसे ही हालात में काम करते हैं. खैर, मुझे लगता है कि ये तस्वीर तब-तब याद की जाएगी जब-जब किसानों के विरोध का जिक्र होगा.

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