क्या है द्रविड़ आंदोलन, जिसने करुणानिधि को बनाया सियासत का सिकंदर

द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत धार्मिक विश्‍वासों, ब्राह्मणवादी सोच और हिंदू कुरीतियों पर प्रहार करने के लिए हुई थी. आंदोलन का जनक महान समाज सुधारक ईवीके रामास्‍वामी 'पेरियार' को माना जाता है. करुणानिधि ने पेरियार की लाइन को पकड़ा. बाद में उनका राजनीतिक कद बढ़ता चला गया.

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तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री मुथूवेल करुणानिधि (फाइल) तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री मुथूवेल करुणानिधि (फाइल)

aajtak.in / सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 7:53 AM IST

मुथूवेल करुणानिधि, पिछले 50 सालों में तमिलनाडु की मौजूदा राजनीति का सबसे बड़ा नाम जो 94 बरस की उम्र में भी सक्रिय रहा. राजनीति में करुणानिधि की एंट्री द्रविड़ आंदोलन के जरिए हुई और यहीं से उन्होंने ऐसी पहचान बनाई जो आज तक कायम रही और उनको चुनौती दे पाना विपक्षियों के लिए बेहद मुश्किल रहा.

द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत धार्मिक विश्‍वासों, ब्राह्मणवादी सोच और हिंदू कुरीतियों पर प्रहार करने के लिए हुई थी. द्रविड़ आंदोलन का जनक तमिलनाडु के महान समाज सुधारक ईवीके रामास्‍वामी 'पेरियार' को माना जाता है. उन्होंने आजीवन ब्राह्मणवादी सोच और हिंदू कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया. यहां तक कि मनुस्मृति जैसे हिंदू धर्मग्रंथों को जलाया भी.

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डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कडगम) ने तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन के जरिए पेरियार के विचार को अपनाया और राजनीति में अपनी जगह बनाई. पेरियार ने 1944 में द्रविड़ कडगम का गठन किया, लेकिन 1949 में पेरियार के बेहद करीबी सीएन अन्‍नादुरै का उनके साथ मतभेद हो गया.

अन्‍नादुरै ने 17 सितंबर, 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कडगम (डीएमके) की स्‍थापना की. पेरियार स्‍वतंत्र द्रविड़ देश की मांग कर रहे थे जबकि अन्‍नादुरे की मांग पृथक राज्‍य की ही थी और पेरियार के उलट राजनीति में आना चाहते थे.

अन्नादुरै ने जब डीएमके की स्थापना की तब करुणानिधि उनके साथ नहीं आए. करुणानिधि सामाजिक सुधारवादी पेरियार के पक्के समर्थक थे. वर्ष 1969 में सीएन अन्‍नादुरई के निधन के बाद करुणानिधि ने डीएमके की कमान संभाली और 50 सालों तक उसके मुखिया बने रहे. अब इस पार्टी की कमान उनके बेटे एमके स्‍टालिन के पास है.

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कट्टर हिंदूत्व के खिलाफ द्रविड़ आंदोलन में करुणानिधि ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और राज्यभर में इसके प्रतीक बनते चले गए. साथ ही हिंदी भाषा का जमकर विरोध किया. महज 14 साल की उम्र में उन्होंने हिंदी-विरोधी की तख्ती लेकर राजनीति में प्रवेश किया था.

1937 में स्कूलों में हिन्दी को अनिवार्य करने पर बड़ी संख्या में युवाओं ने विरोध किया, करुणानिधि भी उनमें से एक थे. इसके बाद उन्होंने तमिल भाषा को अपना हथियार बनाया और तमिल में ही नाटक, अखबार और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने लगे. इस बीच उन्होंने द्रविड़ राजनीति से जुड़े एक छात्र संगठन का गठन भी किया था.

फिर 1965 में हिंदी को देश की एकमात्र सरकारी भाषा बनाए जाने के ऐलान के विरोध में तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया, जिसका करुणानिधि ने नेतृत्व किया और कामयाबी हासिल की.

हिंदी के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान करुणानिधि और उनके समर्थकों ने रेलवे स्टेशन से हिंदी नाम को मिटा दिया और वे लोग रेलगाड़ियों के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए पटरी पर लेट गए. इस हिंसक विरोध प्रदर्शन में दो लोगों की जान भी चली गई, और करुणानिधि गिरफ्तार कर लिए गए. यहीं से वो बड़े नेता के रूप में आगे बढ़ गए.

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1957 में करुणानिधि पहली बार तमिलनाडु विधानसभा के विधायक बने और 1967 में वे सत्ता में आए और उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया. 1969 में अन्नादुरै के निधन के बाद पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.

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