उच्चतम न्यायालय के क्रियाकलापों पर चुप्पी तोड़ते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि किसी भी संस्थान की आलोचना करना या नष्ट करने की कोशिश करना आसान है. लेकिन संस्थान को अपनी निजी आकांक्षाओं को दूर रखकर आगे बढ़ाना मुश्किल काम है.
सुप्रीम कोर्ट में स्वतंत्रता दिवस समारोह के कार्यक्रम में बोलते हुए CJI दीपक मिश्रा ने कहा कि किसी भी संस्थान को आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक विचारधारा के साथ रचनात्मक कदम उठाने की आवश्यकता होती है. तर्कसंगतता, परिपक्वता, ज़िम्मेदारी और धैर्य के साथ ठोस सुधार करने की ज़रूरत होती है तभी कोई संस्थान नई ऊंचाइयां छूता है.
बता दें कि 12 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के 4 मौजूदा जजों - जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ, ने मीडिया को संबोधित कर सर्वोच्च अदालत के कामकाज पर सवाल उठाए थे. चीफ जस्टिस के बाद दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस चेलमेश्वर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था ऐसा कि कभी-कभी होता है जब देश में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था भी बदलती है.
जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है, अगर ऐसा चलता रहा तो लोकतांत्रिक परिस्थिति ठीक नहीं रहेगी. उन्होंने कहा कि हमने इस मुद्दे पर चीफ जस्टिस से बात की, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी.
इसके साथ ही इस प्रेस वार्ता में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को लिखे एक लेटर को भी सार्वजनिक किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मौजूदा न्यायालय व्यवस्था में मुकदमों को उनकी योग्यता के अनुसार डील नहीं किया गया. जस्टिस चेलमेश्वर सहित 4 जजों ने लेटर में लिखा था कि यह जरूरी सिद्धांत है कि रोस्टर में मुकदमों को उनकी मेरिट के हिसाब से उन्हें सही बेंच को सौंपा जाए.
इन जजों से पहले और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश भी सुप्रीम कोर्ट के कामकाज और जजों की कमी पर टिप्पणी कर चुके हैं. पिछले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर हों या उनके पूर्ववर्ती जस्टिस टीएस ठाकुर दोनों बार-बार जजों की कमी का मामला उठाते रहे. जस्टिस टीएस ठाकुर तो इस मामले पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष रो पड़े थे.
इससे पहले सरकार और न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया नेशनल ज्युडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) और कॉलीजियम सिस्टम पर भी मतभेद सामने आ चुके हैं.
विवेक पाठक