प्रतिष्ठित बांग्ला कवि शंख घोष को इस साल के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा. यह पुरस्कार भारतीय साहित्य में सर्वोच्च सम्मान है. दो दशक के बाद किसी बांग्ला लेखक को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नावाजा जाएगा.
नई दिल्ली में शुक्रवार को प्रसिद्ध समालोचक और लेखक डॉ. नामवर सिंह की अध्यक्षता में ज्ञानपीठ चयन बोर्ड की बैठक में शंख घोष के नाम का ऐलान किया गया. 52वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के तौर पर वाग्देवी की प्रतिमा, ग्यारह लाख रुपए और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है. इससे पहले 1996 में बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था.
1932 में चांदपुर जो अब बांग्लादेश में है, शंख घोष का जन्म हुआ था. घोष को बांग्ला साहित्य के शीर्ष नामों में से एक माना जाता है. रवीन्द्रनाथ टैगोर के कार्य पर भी घोष की पकड़ का कोई सानी नहीं है. कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बांग्ला साहित्य में स्नातक करने के बाद घोष ने शिक्षक के तौर पर अपना करियर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से शुरू किया.
शंख घोष प्रतिष्ठित जाधवपुर और विश्वभारती विश्वविद्यालय में भी अध्यापन कार्य कर चुके हैं. 84 वर्षीय घोष 2011 में पद्मभूषण और 1999 में साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजे गए थे. घोष की प्रमुख रचनाओं में आदिम लता-गुलमोमॉय, मूखरे बारो, सामाजिक नोय, बाबोरेर प्रार्थना, दिनगुली रातगुली और निहिता पातालछाया शामिल हैं.
घोष सातवें ऐसे बांग्ला साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. इससे पहले ताराशंकर, विष्णु डे, सुभाष मुखोपाध्याय, आशापूर्णा देवी और महाश्वेता देवी को बांग्ला साहित्य के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है. पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरूप को दिया गया था. 2015 में गुजराती लेखक रघुवीर चौधरी को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था.
इंद्रजीत कुंडू