जिन लोगों ने फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर बनी राज कपूर-वहीदा रहमान की मशहूर फिल्म 'तीसरी कसम' देखी है, उन्हें याद होगा कि अपनी बैलगाड़ी में बांस लादने की वजह से गाड़ीवान हीरामन किस तरह से मुसीबत में फंस जाता है और कसम खाता है कि फिर कभी अपनी गाड़ी में बांस नहीं लादेगा.
मुश्किल था बांस काटना
ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि ये तो फिल्मी कहानी है. लेकिन क्या आपको पता है कि अब तक अपनी गाड़ी में बांस लेकर इधर से उधर जाना सचमुच कानूनी रूप से पचड़े में पड़ने का काम था. अब से पहले जंगल के बाहर कहीं से भी बांस को काटना और उसे एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाना बेहद झमेले का काम था और इसके लिए राज्य सरकारों के वन विभाग की अनुमति की जरूरत पड़ती थी, जो आसानी से नहीं मिलती थी. इसका कारण था भारत का 90 साल पुराना एक घिसा पिटा कानून.
बांस का उत्पादक होने के बावजूद ताइवान से आयात
दरअसल विज्ञान के हिसाब से बांस एक पेड़ नहीं एक घास है. लेकिन 1927 के इंडियन फॉरेस्ट एक्ट के मुताबिक बांस को एक पेड़ माना गया था और जंगल में उगे बांस को छोड़ कर कहीं और से बांस काटना और उसे दूसरी जगह ले जाना वन विभाग की नजरों में गैरकानूनी था. इसकी वजह से बांस उगाने वाले राज्यों में किसानों को बेवजह परेशानी का सामना करना पड़ता था क्योंकि वो बांस को ना तो आसानी से काट सकते थे और ना ही उसे बेच सकते थे. इस बेतुके कानून की वजह से चीन के बाद दुनिया में बांस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के बावजूद भारत को अगरबत्ती जैसी छोटी मोटी चीजों के लिए भी ताइवान से बांस आयात करना पड़ता था. खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां बांस खूब उगाया जाता है और काफी इस्तेमाल किया जाता है, वहां के लोगों को खासी परेशानी हो रही थी. इस कानून को बदलने की लंबे समय से मांग हो रही थी जो आखिरकार बुधवार को पूरी हो गई.
लोकसभा में मिली संशोधन को मंजूरी
लोकसभा ने बुधवार को इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1927 के कानून में संशोधन को मंजूरी दे दी, जिसके बाद बांस को अब पेड़ों की श्रेणी से हटा दिया गया है. अब जंगल के बाहर के इलाकों में भी बांस को उगाने या काटने पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होगा क्योंकि अब कानून के हिसाब से बांस पेड़ नहीं बल्कि सिर्फ एक घास है.
अध्यादेश लाकर पेड़ की श्रेणी से हटाया गया था बांस
इससे पहले 23 नवंबर को ही केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर बांस को पेड़ की श्रेणी से हटा दिया था. उसके बाद बुधवार को सरकार ने इस अध्यादेश को कानूनी जामा पहनाने के लिए लोकसभा में बिल पेश किया, जो आसानी से पास हो गया.
कई उद्योगों में इस्तेमाल होता है बांस
कागज और फर्नीचर बनाने समेत कई ऐसे उद्योग हैं, जहां बांस का खूब इस्तेमाल होता है और उम्मीद की जा रही है कि कानून में बदलाव के बाद बांस के उत्पादन और खपत दोनों में भारी बढ़ोतरी होगी. खास तौर पर आदिवासी इलाकों में सरकार के इस फैसले के बाद बांस उगाने और बेचने को लेकर नया दौर शुरू होने की उम्मीद है.
सुरभि गुप्ता / बालकृष्ण