सुप्रीम कोर्ट का गुरुवार को आए ऐतिहासिक फैसले के बाद भारत में दो वयस्क लोगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहे. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत चुनाव को सम्मान देने की बात कही.
अब आपको बताते हैं कि फैसला सुनाते हुए पांच जजों ने क्या-क्या कहा.
-सबसे पहले पहले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि व्यक्तिगत पसंद को इजाजत दी जानी चाहिए. सबको समान अधिकार सुनिश्चित करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि समाज को पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए. हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए. उल्लेखनीय है कि इंद्रधनुषी झंडा एलजीबीटी समुदाय का प्रतीक है. सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को मनमाना बताया है.
-जजों ने कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है. जीवन का अधिकार मानवीय अधिकार है. इस अधिकार के बिना बाकी अधिकार औचित्यहीन हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शुअल ओरिएंटेशन (यौन रुझान) बॉयलॉजिकल है. इस पर रोक संवैधानिक अधिकारों का हनन है.
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी विविधता को स्वीकृति देनी होगी. व्यक्तिगत चॉइस का सम्मान देना होगा. एलजीबीटी को भी समान अधिकार है. राइट टु लाइफ उनका अधिकार है और यह सुनिश्चित करना कोर्ट का काम है. कोर्ट ने कहा कि सहमति से बालिगों के समलैंगिक संबंध हानिकारक नहीं है. आईपीसी की धारा 377 संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौजूदा रूप में सही नहीं है.
-जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 377 को किसी पर थोपना त्रासदी है. इसमें सुधार किए जाने की जरूरत है. LGBT समुदाय को उनके यौनिक झुकाव से अलग करना उन्हें उनके नागरिक और निजता के अधिकारों से वंचित करना है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को औपनिवेशिक कानून के जंजाल में नहीं फंसाया जाना चाहिए. गे, लेस्बियन, बाय-सेक्सुअल औऱ ट्रांस्जेंडर सबके लिए नागरिकता के एक समान अधिकार हैं.
-जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि यह फैसला संसद द्वारा पारित मेंटल हेल्थकेयर एक्ट पर आधारित है. इस अधिनियम में संसद ने कहा कि समलैंगिकता मानसिक विकार नहीं है.
वरुण शैलेश / संजय शर्मा