अयोध्या मामले की सुनवाई के 15 दिन पूरे हो गए. इनमें से सबसे कम दिन और लचर तर्कों के साथ कोर्ट में निर्मोही अखाड़ा दिखा. अखाड़ा कहने को तो निर्मोही है लेकिन उसका मोह साफ-साफ दिखता है और मोह भी मायाधारी के लिए नहीं बल्कि सिर्फ 'माया' के लिए.
जब तक ढांचा था और ढांचे में रामलला थे तो सेवा-पूजा तो हो रही थी, लेकिन जनता जनार्दन तो राम की ड्यौढ़ी से बाहर ही थे. असली माल तो अखाड़े के पास ही रहता था. इस वर्चस्व के लिए अयोध्या के थानों में डकैती और जानलेवा हमले के कई मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें अखाड़े के साधु-महंतों को मुलजिम बनाया गया है.
अखाड़े की सिर्फ एक दलील रही कि बस ये सारी जमीन हमारी है. कोई रामलला नहीं, कोई सुन्नी वक्फ बोर्ड नहीं, हम ही इसके मालिक हैं, हम ही सदियों से रामलला के पुजारी रहे हैं, हमारा ही कब्जा रहा है, हम ही इसके कर्ता धर्ता हैं. लेकिन जब कोर्ट ने अखाड़े के वकील सुशील जैन से कब्जे के प्रमाण मांगे तो अखाड़ा बगले झांकने लगा. पहले तो कहा कि बस कब्जा था.
कोर्ट ने कहा कि दस्तावेज तो होंगे आपके पास कोई फरमान, कोई पट्टा या कोई दानपत्र या फिर कोई रसीद. अब दलील दी कि, जी था तो सब कुछ हमारे पास लेकिन 1982 में हमारे यहां एक डकैती हुई थी उसमें डकैत सारे दस्तावेज ले गए.
कोर्ट ने फिर सवाल का पीछा किया कि आपके पास से ले गए लेकिन भूमि राजस्व विभाग के पास तो दस्तावेज होंगे, खाता खतौनी में तो होगा कुछ. अखाड़े ने फिर कहा कि हम इस मामले में लाचार हैं. हमारे पास तो कुछ नहीं है. कोर्ट ने कहा कि आप क्या कहना चाह रहे हैं, क्या डकैत खतौनी भी ले गए. इस पर अखाड़े ने सिर्फ ये कहकर चुप्पी साध ली कि हम हैंडीकैप हैं.
अब जब तर्क और दलीलों में अखाड़े को कसने की बारी आई तो अखाड़े को अपनी दलीलें और याचिका में भी सुधार करना पड़ा, क्योंकि जब अखाड़े ने कोर्ट में कहा कि रामलला के पुजारी तो वही हैं, देवता तो हमारी ही सेवा से है, तो कोर्ट ने अखाड़े के वकील सुशील जैन से साफ कहा कि अगर आपका दावा मानते हुए हम रामलला का दावा खारिज कर देते हैं तो आप ये बता दें कि फिर किसकी सेवा करेंगे? क्या मस्जिद के सेवायत बनेंगे.
फिर कोर्ट ने ही कहा कि आप जो दलीलें दे रहे हैं वो तो सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की होनी चाहिए, तब जाकर अखाड़े को समझ में आया कि भूल कहां हो रही है. इसके बाद ही अखाड़े ने अपनी अपील और दलील दोनों में सुधार कर कोर्ट को बताया कि राम के हित में ही उनका हित है.
अब बात पर्दे के पीछे की
अखाड़े की दलीलों से कोर्ट में मौजूद हरेक शख्स को यही लगा कि अखाड़े की दिलचस्पी सिर्फ जमीन में हैं. वर्ना अपने आराध्य के दावे के खिलाफ कोई सेवक अपना प्रतिदावा करता है क्या? कोर्ट को बताना पड़ा कि आपकी दलील क्या होनी चाहिए.
वैसे भी जब नया मंदिर बनेगा तो सदियों से उपेक्षित अयोध्या दुनिया के नक्शे पर सबसे भव्य और दिव्य नगरी बन ही जाएगी. फिर तो अयोध्या की पंद्रह कोस की चौहद्दी से ही इसकी शान झलकनी शुरू हो जाएगी. देश दुनिया के श्रद्धालुओं का तांता लगा रहेगा. जाहिर है कि अरबों रुपये का चढ़ावा आएगा. ऐसे में जमीन पर कब्जा रामलला का हो गया तो कहीं ऐसा ना हो विश्व हिंदू परिषद अखाड़े को बाहर ही कर दे.
ये भी हो सकता है कि सरकार ट्रस्ट या फिर श्राइन बोर्ड बना दे, ऐसे में अखाड़ा क्या करेगा. लिहाजा अब अखाड़ा इस बात पर भी मान सकता है कि ठीक है जमीन मंदिर और व्यवस्था तुम्हारी और मंदिर की 'सेवा पूजा' हमारी, ताकि पूरा नहीं तो कुछ हिस्सा तो मिले माया का. कहते हैं ना कि दुनिया से आदमी निर्मोही हो सकता है, लेकिन माया से नहीं. निर्मोही शब्द में भी मोह तो है ही ना!
संजय शर्मा