बैसाखी पर कोरोना की छाया, गुरुद्वारों में महामारी से मुक्ति की अरदास

देश में लागू लॉकडाउन के कारण अधिकतर गुरुद्वारे बंद रहे. जो कुछ खुले भी, वहां बहुत कम लोग ही पहुंचे. लोगों को लंगर में बैठकर प्रसाद ग्रहण करने की अनुमति भी नहीं दी गई. अधिकतर लोग अपने घरों में रहे.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

मनजीत सहगल

  • मोहाली,
  • 14 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 8:28 AM IST

  • सूने नजर आए खेत-खलिहान
  • मायूस रह गए प्रवासी मजदूर

बैसाखी का त्यौहार पंजाब में हर साल उल्लास से मनाया जाता है, लेकिन इस साल इस त्योहार पर कोरोना वायरस की छाया नजर आई. देश में लागू लॉकडाउन के कारण अधिकतर गुरुद्वारे बंद रहे. जो कुछ खुले भी, वहां बहुत कम लोग ही पहुंचे. लोगों को लंगर में बैठकर प्रसाद ग्रहण करने की अनुमति भी नहीं दी गई. अधिकतर लोग अपने घरों में रहे.

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मोहाली जिले के खरड़ कस्बे में स्थित गड़ी पुरखा साहब गुरुद्वारे में कोरोना की महामारी से निजात पाने के लिए विशेष अरदास की गई. वहीं, शहर और कस्बे ही नहीं, गांवों में भी मायूसी नजर आई. खरड़ क्षेत्र के बड़ौदी गांव के निवासी 70 साल के मेवा सिंह ने बताया कि वे पिछले दिन से डर के मारे गुरुद्वारे नहीं गए हैं. अपने घर के बाहर उदास बैठे सिंह ने कहा कि उन्हें अच्छी तरह याद है कि पिछले साल बैसाखी के दिन उन्होंने, उनके परिवार ने क्या भोजन किया था.

दूसरी तरफ, गेहूं के खेत भी मजदूरों के नहीं पहुंचने के कारण सूने पड़े हैं. मजदूरों की किल्लत के कारण फसल की कटाई भी एक सप्ताह तक टाल दी गई है. बैसाखी के दिन गेहूं के खेत मजदूरों से गुलजार रहते थे. इस दिन किसान, मजदूरों के लिए गुरुद्वारे में लंगर का विशेष इंतजाम भी करते थे. इस बार कोरोना की छाया में इन श्रमिकों को कोई पूछने वाला भी नहीं था. मजदूर डर से खेतों में जा नहीं रहे और जेब में पैसा है नहीं, राशन के भी लाले हैं.

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गुरुद्वारा और खेत ही नहीं, अनाज मंडियों में भी सन्नाटा पसरा है. अनाज मंडियों में बैसाखी के दिन से गेहूं की नई उपज की आवक शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. खरड़ की मंडी में कुछ किसान पहुंचे भी तो गेहूं नहीं, सरसों लेकर. मंडियों से भी मजदूर गायब हैं. बैसाखी के दिन गुलजार रहने वाले गुरुद्वारे, खेत-खलिहान और मंडियां, इस बार हर जगह सन्नाटा पसरा रहा.

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