ये बात तो भारत के निवासी जानते ही हैं कि वंदेमातरम भारत का राष्ट्रगीत है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत क्यों बनाया गया?
वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था. जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी. इसे पहली बार इसे राजनीतिक संदर्भ में रबींद्रनाथ टैगौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था.
अगर बांग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाए तो इसका शीर्षक 'वदें मातरम' नहीं बल्कि 'बंदे मातरम्' होना चाहिए क्योंकि हिन्दी और संस्कृत भाषा में 'वंदे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बांग्ला में लिखा गया था और बांग्ला लिपि में 'व' अक्षर है ही नहीं इसलिए बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे 'बन्दे मातरम्' ही लिखा था. (तस्वीर: Youtube)
लेकिन संस्कृत में 'बंदे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् कहा गया.
वहीं वदें मातरम को राष्ट्रगान बनाने की बात भी कही जा रही थी लेकिन उसे राष्ट्रगीत बनाया गया क्योंकि उसकी शुरुआती चार लाइन ही देश को समर्पित हैं जबकि बाद की लाइने बंगाली भाषा में हैं जिनमें मां दुर्गा की स्तुति की गई है. किसी भी ऐसे गीत को राष्ट्रगान बनाना उचित नहीं समझा गया जिसमें देश का न होकर किसी देवी-देवता का जिक्र हो. इसलिए वंदे मातरम को राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत बनाया गया.
जबकि जन गण मन को इसके अर्थ की वजह से राष्ट्रगान बनाया गया. इसके कुछ अंशों का अर्थ होता है कि भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है. हे अधिनायक (सुपरहीरो) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो. इसके साथ ही इसमें देश के अलग- अलग राज्यों का जिक्र भी किया गया था और उनकी खूबियों के बारे में बताया गया था.