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भारत

सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले 'घातक कमांडो' की ऐसी होती है ट्रेनिंग

सुरेंद्र कुमार वर्मा
  • 27 जून 2018,
  • अपडेटेड 11:06 PM IST
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पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में आतंकी कैंप पर भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के 2 साल बाद इसका वीडियो सामने आया है.  भारतीय सेना के जवानों ने एलओसी पार कर 50 से ज्यादा पाकिस्तानी आतंकियों को मार गिराया था. इस मिशन को स्पेशल फोर्स ने अंजाम दिया था, जिन्हें 'घातक कमांडो' के नाम से जाना जाता है.

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कहा जाता है कि ऐसे कमांडोज की ट्रेनिंग बेलगाम, कर्नाटक में होती है. उन्हें इस तरह से ट्रेनिंग दी जाती है कि फिर वो  फौलाद बन कर निकलते हैं. इन्हें हर तरह की विषम और भयावह परिस्थितियों से लड़ने के लिए तैयार किया जाता हैं. जानें कैसे दी जाती है इन कमांडो को ट्रैनिंग....
 

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स्पेशल फोर्स में शामिल होने के लिए सबसे पहले जवानों को 2 महीने के प्रोबेशन पीरियड पर रखा जाता है. यानि इन दो महीनों में यह परखा जाता है कि जवान आगे जाकर सेना के सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन को अंजाम दे सकेगा या नहीं.

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प्रोबेशन पीरियड के दौरान उन्हें हर दिन 20 से 22 घंटे की कठोर ट्रेनिंग दी जाती है. जैसे हथेलियों के बल रोड पर चलना, 3 से 4 किलोमीटर तक सड़क पर रोल करके जाना आदि जैसे टॉस्क अहम होते हैं.

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ट्रेनिंग के दौरान उसे मेंटल लेवल पर भी टॉर्चर किया जाता है ताकि जवान को सिर्फ शारीरिक तौर पर नहीं बल्कि मानसिक स्तर पर भी मजबूत बनाया जा सके.



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प्रोबेशन पीरियड के दौरान दी जाने वाली ट्रेनिंग में जवानों को कांच खाने की भी प्रैक्टिस करवाई जाती है. सांप को हाथ से पकड़ना सिखाया जाता है. इसके बाद उन्हें हर दिन 25 किलोग्राम तक वजन के साथ 40 किलोमीटर भागना होता है. इस दौड़ को पूरा करने का भी समय तय होता है.

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ट्रेनिंग के दौरान ही यह तय किया जाता है कि किस जवान को किस क्या काम देना है. यह चार स्तर पर तय किया जाता है. तय करने के लिए जवानों को ड्राइविंग, डिमोलिशन, बैटल फील्ड नर्सिंग असिस्टेंस, कम्यूनिकेशन सिखाया जाता है.





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प्रोबेशन का टाइम खत्म होने से पहले जवानों की नेविगेशनल स्किल देखी जाती है. इसके लिए हर जवान को 40 किलोमीटर दूर तक के जंगल-झाड़ियों में बिना जीपीएस, कंपास के छोड़ दिया जाता है. इन्हें एक टारगेट दिया जाता है. जो चुपचाप पूरा करना होता है. इतना ही नहीं अगर किसी जवान से टारगेट पूरा करने में गलती हो गई तो उसे वापस वहीं जाना होता है जहां से उसने शुरुआत की.

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