अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्त होने के करीब 8 महीने बाद उन्हें न्याय मिलना शुरू हो गया, जिन समुदायों ने दशकों तक जम्मू-कश्मीर में भेदभाव का सामना किया. पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी जिन्हें 1947 से जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी का दर्जा नहीं दिया गया था, उन्हें अब केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा अधिवास प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है. इसके साथ ही प्रति परिवार 5 लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जा रही है.
दरअसल, पाकिस्तान के शरणार्थियों में हिंदू और सिख समुदाय के
सदस्य शामिल हैं, जिन्हें 1947 में विभाजन के बाद पश्चिम पाकिस्तान (अब
पाकिस्तान) से अपने घर छोड़ने पड़े. जबकि 1947 में देश के अन्य हिस्सों में
बसने वाले शरणार्थियों को सभी संवैधानिक अधिकार मिल गए थे.
इंडिया टुडे टीवी से बात करते हुए कठुआ जिले में रहने वाले पाकिस्तान से आए ओम प्रकाश ने कहा कि हम बहुत लंबे समय तक
पीड़ित रहे. जीवन रक्षा हमारे लिए एक लड़ाई थी. हमें कॉलेजों में प्रवेश भी
नहीं मिला. इस पर ध्यान देने और न्याय प्रदान करने के लिए हम पीएम नरेंद्र
मोदी और डॉ जितेंद्र सिंह को धन्यवाद देना चाहते हैं.
ये शरणार्थी
जम्मू-कश्मीर की सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे और उन्हें
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में मतदान करने से भी रोक दिया गया था. वे
केवल केंद्र सरकार की सेवाओं के लिए आवेदन कर सकते थे और लोकसभा चुनाव में
मतदान कर सकते थे.
जम्मू-कश्मीर के भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना ने का
कहना है कि पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थी अब जम्मू-कश्मीर के निवासी बन
जाएंगे. हमारी सरकार उन्हें पांच लाख रुपये की सहायता भी दे रही है. पश्चिम
पाकिस्तान के शरणार्थियों में से अधिकांश दलित समुदाय से हैं. हमारी सरकार
ने अब उन्हें न्याय और सम्मान दिया है.