भारत के सबसे बड़े बिजनेस समूह टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार रात 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया. लंबी बीमारी के चलते पिछले कुछ दिनों से मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. 7 अक्टूबर को भी उनके अस्पताल में भर्ती होने की खबर आई थी लेकिन उन्होंने पोस्ट करके कहा था कि वे ठीक हैं और चिंता की कोई बात नहीं है.
पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा के निधन पर समाज के हर तबके में शोक की लहर छाई हुई है. अपनी सादगी के लिए मशहूर रहे रतन टाटा उद्योग जगत शायद इकलौती शख्सियत होंगे, जिनका देश में सबसे ज्यादा सम्मान था.
कई बार ऐसे मौके आए जब रतन टाटा को प्रसिद्ध मैगजीन 'इंडिया टुडे' के कवर पेज पर जगह मिली. 1991 में वह टाटा संस और टाटा ग्रुप के अध्यक्ष बने. 22 अक्टूबर 1997 में इंडिया टुडे ने उन्हें कवर पेज में जगह देते हुए शीर्षक दिया था, 'टाटा घराना- निगाहें भी, निशाना भी'
इसी तरह 2003 में जब उन्होंने इंडिया टुड़े को इंटरव्यू दिया तो तब भी वह मैगजीन के कवर पेज पर छाए रहे. 'टाटा का चेहरा बदलने वाले रतन' शीर्षक से उनका इंटरव्यू प्रकाशित हुआ. इस इंटरव्यू में उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था और राष्ट्र निर्माण पर खुल कर बातें की. 23 फरवरी 2003 में इंडिया टुडे हिंदी में छपा उनका पूरा इंटरव्यू छपा.
8 नवंबर 2006 को प्रकाशित इंडिया टुडे के अंक में भी उन्हें कवर पेज पर जगह मिली. यह वह समय था जब यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनी कोरस को टाटा ने अधिग्रहित करने की प्रक्रिया शुरू की और 2007 में यह डील पूरी हो गई.
23 जनवरी, 2008 के अंक में उन्हें एक बार फिर से इंडिया टुडे के कवर पेज पर जगह मिली. यह वह समय था जब टाटा ग्रुप ने देश की सबसे सस्ती कार (टाटा नैनो), जिसे 'लखटकिया' कार भी कहा जाता था, लॉन्च की. इसकी शुरुआती कीमत 1 लाख रुपये थी.
रतन टाटा की शख्सियत देखें तो वो सिर्फ एक बिजनेसमैन ही नहीं, बल्कि एक सादगी से भरे नेक और दरियादिल इंसान, लोगों के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत भी थे. वे साल 1991 से 2012 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे और इस दौरान उन्होंने बिजनेस सेक्टर में कई कीर्तिमान स्थापित करते हुए देश के सबसे पुराने कारोबारी घरानों में से एक टाटा समूह को बुलंदियों तक पहुंचाया. उन्होंने टाटा को इंटरनेशनल ब्रांड बना दिया.
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