SC में इस हफ्ते हो सकती है चारधाम तीर्थ प्रबंधन वाली याचिका पर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में स्वामी की दलील है कि इन तीर्थ धामों में पूजा करने वाले श्रद्धालु अलग-अलग धार्मिक संप्रदाय के हैं. लिहाजा धर्मस्थलों का प्रबंधन और उनका प्रशासन उनके अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए. इनके प्रबंधन में किसी तरह की सरकारी दखलंदाजी सही नहीं है.

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संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 25 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 11:12 AM IST
  • स्वामी ने उत्तराखंड HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
  • चारधाम देवस्थानम मैनेजमेंट बोर्ड बनाने के फैसले पर चुनौती दी

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चारधाम मंदिर और अन्य 51 मंदिरों को राज्य सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने की गुहार लगाई है. माना जा रहा है कि इस हफ्ते याचिका सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के तहत नई याचिकाओं को सोमवार और शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाता है. याचिका में कोई खामी नहीं होगी तो इस हफ्ते सुनवाई शुरू हो सकती है. सुब्रमण्यम स्वामी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

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सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि क्या वजह है कि हमारे सेकुलर देश में केवल मंदिर ही सरकार के नियंत्रण में हैं जबकि मस्जिद और अन्य धार्मिक स्थान नहीं. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इसी साल 21 जुलाई को स्वामी की याचिका खारिज कर दी थी. याचिका के जरिए स्वामी ने हाईकोर्ट में राज्य सरकार के चारधाम देवस्थानम मैनेजमेंट बोर्ड बनाने के फैसले को चुनौती दी थी.

पिछले साल 2019 में उत्तराखंड सरकार ने चारधाम देवस्थानम मैनेजमेंट बोर्ड बनाकर चारधाम और अन्य 51 मंदिरों का कंट्रोल अपने पास कर लिया था.

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मौलिक अधिकारों का हनन
सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में स्वामी की दलील है कि इन तीर्थ धामों में पूजा करने वाले श्रद्धालु अलग-अलग धार्मिक संप्रदाय के हैं. लिहाजा धर्मस्थलों का प्रबंधन और उनका प्रशासन उनके अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए. इनके प्रबंधन में किसी तरह की सरकारी दखलंदाजी सही नहीं है. लेकिन राज्य सरकार संविधान से मिले नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है.

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उधर, चारधाम तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी महापंचायत ने शुरू से ही देवस्थानम अधिनियम के विरोध का झंडा उठा रखा है. महापंचायत ने ही सुब्रमण्यम स्वामी से ये मसला उठाने की गुहार लगाई थी.

महापंचायत के महामंत्री हरीश डिमरी के मुताबिक 27 नवंबर 2019 को सरकार ने देवस्थानम बोर्ड का गठन किया था. तभी से चारों धामों के तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. महापंचायत का तर्क है कि अनादिकाल से तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी चारों धामों में पूजा अर्चना और रोजाना की सेवा पूजा भोग राग का प्रबंधन करते आ रहे हैं. इस अधिनियम के जरिए सरकार उन हक हकूकधारियों और तीर्थ पुरोहितों को धामों की सेवा व्यवस्था से अलग कर रही है.

सरकार ने इस अधिनियम के द्वारा चारधाम के मंदिरों के प्रबंधन का काम एक बोर्ड को सौंप दिया है. इस सदस्यों को राज्य सरकार नामित करती है. बद्रीनाथ और केदारनाथ के मंदिरों का प्रबंधन और गंगोत्री व यमुनोत्री धाम भी इसके अधीन आ गए हैं. इससे पहले दो गैर सरकारी संगठनों इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और पीपुल फॉर धर्म ने भी उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है.

सुब्रमण्यम स्वामी ने इससे पहले देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. स्वामी का कहना था कि यह अधिनियम पूरी तरह से असंवैधानिक है. कोर्ट ने सबरीमाला फैसले का उल्लेख किया था. हाईकोर्ट ने स्वामी के तर्क खारिज करते हुए याचिका निरस्त कर दी थी.

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सरकार का तर्क है कि धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से बेहद अहम इन चारधामों के लिए चारधाम देवस्थानम बोर्ड मौजूदा व्यवस्था में सुधार होगा. इससे देश और दुनिया भर से आने वाले तीर्थयात्रियों और धार्मिक पर्यटकों को सुविधा होगी. चारधाम के अलावा 51 मंदिरों में भी अवस्थापना सुविधाएं जुटेंगी. तीर्थ-पुरोहितों और अन्य सभी के हकहकूक सुरक्षित रहेंगे. अब सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला आया है तो प्रदेश सरकार पूरी ताकत के साथ लड़ेगी.

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