'डॉटर्स डे' पर रिलीज की गई शॉर्ट फिल्म ‘ब्याह न कराओ बाबा’, लड़कियों के सपनों की बातें करती है लघु फिल्म

डॉटर्स डे के अवसर पर शॉर्ट फिल्म ‘ब्याह न कराओ बाबा’ रिलीज की गई ज‍िसे महिला अधिकारों पर काम करने वाली संस्था ‘ब्रेकथ्रू’ ने बनाई है.

Advertisement
Represenatative image Represenatative image

aajtak.in

  • नई द‍िल्ली ,
  • 26 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST
  • डॉटर्स डे पर लड़क‍ियों के सपनों की बातें जमीन पर आईं
  • रिलीज की गई शॉर्ट फिल्म ‘ब्याह न कराओ बाबा’

महिला अधिकारों पर काम करने वाली संस्था ‘ब्रेकथ्रू’ ने बेटी दिवस (डॉटर्स डे) के अवसर पर अपनी शॉर्ट फिल्म ‘ब्याह न कराओ बाबा’ रिलीज की. ‘डॉटर्स डे’ हर वर्ष सितंबर माह के चौथे रविवार को मनाया जाता है. इस वर्ष, हम महामारी के निरंतर प्रभाव की पृष्ठभूमि में बेटी दिवस मना रहे हैं. महामारी का लड़कियों पर बहुत प्रभाव पड़ा है. इस वर्ष का बेटी दिवस लड़कियों के जीवन को बेहतर बनाने और उनके लिए समाज में एक बेहतर जगह सुनिश्चित करने के लिए साहसिक हस्तक्षेप का आह्वान करता है.

Advertisement

यह दिन खास तौर से बेटियों को समर्पित होता है जिसमें माध्यम से माता-पिता अपने जीवन में बेटी होने के लिए अपने को आभारी मानते हैं. भारत जैसे देश में जहां लड़कों को प्राथमिकता दी जाती है और कदम-कदम पर लड़कियों के साथ भेदभाव होता है वहां इस तरह के दिवस उनके महत्व को स्थापित करने में काफी उपयोगी हो जाते हैं. इस दिन के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि बेटियां भी बेटों के बराबर ही प्यार और देखभाल की हकदार हैं.


 इस अवसर पर ब्रेकथ्रू की सीईओ सोहिनी भट्टाचार्य ने कहा कि इस शॉट फिल्म के माध्यम से हमारी कोशिश है कि परिवार से लेकर समाज तक बेटियों का महत्व समझे. लिंग के आधार पर उनके साथ भेदभाव व हिंसा ना हो, उनको अपने सपने जीने और खुद फैसले लेने की आजादी हो, वह भी बिना किसी डर के घर से बाहर उसी तरह निकल सके, जिस तरह से लड़के निकलते हैं. एक समानता वाला समाज बनाना तभी संभव है जब लड़का और लड़की में कोई भेद न हो और इसके लिए, एक समाज के रूप में, हमें साहसिक हस्तक्षेप शुरू करने की आवश्यकता है जिससे सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन और लड़कियों का सशक्तिकरण हो सके.

Advertisement

सोहिनी भट्टाचार्य आगे कहती हैं कि 21 वीं सदी में हम चांद और मंगल ग्रह पर कदम रखने की बात जरूर कर रहे है लेकिन बेटी को इस जमीन पर ही कदम नहीं रखने देना चाहते. बेटे की चाहत में उसे पैदा ही नहीं करना चाहते और अगर वो पैदा हो भी गई तो उसे कदम-कदम पर भेदभाव व हिंसा सामना करना पड़ता है. यह शॉर्ट फिल्म लड़कियों के साथ होने वाले इसी भेदभाव की परतों को खोलती है. 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement