2024 के आम चुनावों से पहले देश का मिजाज क्या है? जानने के लिए इंडिया टुडे - C Voter ने Mood Of The Nation सर्वे किया है. सर्वे में 1 लाख 40 हजार 917 लोगों ने हिस्सा लिया और भारतीय राजनीति समेत देश के कई ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय रखी है. NDA सरकार के कामकाज को 67 परसेंट लोगों ने बहुत अच्छा और 11 परसेंट लोगों ने अच्छा बताया. जबकि 18 फीसदी लोगों ने खराब बताया. 20 फीसदी लोगों ने कोरोना से लड़ाई में जीत को मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि माना है. जबकि अनुच्छेद 370 हटाने को 14 प्रतिशत, राम मंदिर निर्माण को 11 प्रतिशत और जन कल्याण योजना को 8 प्रतिशत लोगों ने सफलता बताया है. इस तरह के कई सवाल थे मौजूदा सरकार के बारे में इस सर्वे में जिनपर जनता के जवाब सरकार के ही पक्ष में रहे.
सर्वे में लोगों से ये सवाल भी हुआ कि कांग्रेस पार्टी में कौन सुधार ला सकता है? इसके जवाब में 26 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिनका मानना है कि अगर पार्टी को वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कोई सुधार सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी हैं. बड़े टेकअवेज क्या रहे इस सर्वे के और कांग्रेस के लिए क्या सन्देश है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
--------------------------------------------------
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक क़रीबी डिप्लोमेट और पूर्व CIA चीफ़ माइक पॉमपियो की एक किताब आई है 'नेवर गिव ऐन इंच'. जिसमें उन्होंने खुद की ज़िंदगी के कई किस्सों को दर्ज किया है. लेकिन इसी किताब में उन्होंने भारत को लेकर कुछ विवादास्पद दावे भी किये हैं. उनका कहना है कि चीन के बॉर्डर पर गतिविधियों से परेशान हो कर भारत ने क्वाड जॉइन किया था. क्योंकि भारत अकेले चीन का सामना करने में कॉन्फिडेंट नहीं था. दूसरा दावा,उनका और विवादास्पद है जो स्वर्गीय सुषमा स्वराज के बारे में है- उनका कहना है कि सुषमा स्वराज से मुलाकातों में उन्हें लगा कि उनके पास पर्याप्त पॉवर्स नहीं हैं, उनके मुकाबले अजीत डोभाल कई फैसलों पर हामी या इनकार जताया करते थे. उनके इन दावों की भारत मे कई जगह आलोचना हो रही है, लेकिन ये समझने को कि क्या परिस्थिति थी जब भारत ने क्वाड को जॉइन किया था, इनका दावा और उस समय की परिस्थितियों में कितनी समानता दिखती है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
-------------------------------
आर्कायलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, शॉर्ट फॉर्म ASI. एक संस्था है जो मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर के अंतर्गत आती है. इसके हिस्से नेशनल इंपोर्टेंस के मॉन्यूमेंट्स की देखरेख का काम है. हाल ही में इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की एक रिपोर्ट आई 'Monuments of National Importance' के नाम से. बताया गया है कि 3,693 मॉन्यूमेंट्स जिसके रखरखाव का जिम्मा ASI के पास है, उनमे से एक चौथाई ऐसे हैं जिनकी मेंटेनेंस 1947 के बाद से ही नहीं हो रही. आसान भाषा में कहें तो इन्हे नेशनल इंपोर्टेंस नहीं दिया जाता. इनमें से 75 ब्रिटिश अफसर और सोल्जर्स के कब्र हैं. इसके अलावा इसमें स्कल्पचर, स्टेच्यू, कैनन्स जैसी चीज़ें भी शामिल हैं. रिपोर्ट में 2013 के CAG की ऑडिट के हवाले से कहा गया है कि 92 ऐसे मॉन्यूमेंट्स हैं जो कि मिसिंग हैं. वहीं ब्रिटिश ब्रिगेडियर का एक ऐसा स्टेच्यू भी है जिसे 1958 में नॉर्थेर्न आयरलैंड एक्सपोर्ट किया गया था लेकिन बावजूद इसके वो MNI की लिस्ट में शामिल है. इन सब के कारण जो फंड सरकार की तरफ से रिलीज किया जाता है ASI को उसका इस्तेमाल प्रॉपर तरीके से नहीं हो पाता. तो अब सवाल ये है कि इन गड़बड़ियों की मुख्य वजह क्या हैं, क्यों इंडिया के मॉन्यूमेंट्स के देख रेख मे ये दिक्कतें आ रही हैं और इसका समाधान क्या है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
रोहित त्रिपाठी