नहीं रहे कर्नल नरेंद्र कुमार, जिनकी वजह से सियाचिन पर पकड़ बनाए रख सका भारत

दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों में से एक सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की पकड़ बनाए रखने में कर्नल नरेंद्र कुमार की बड़ी भूमिका रही है और उनकी रिपोर्ट की वजह से भारतीय सेना को इस ग्लेशियर पर कब्जा बनाए रखने में मदद मिली थी.

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कर्नल नरिंदर कुमार का गुरुवार को निधन हो गया (फाइल) कर्नल नरिंदर कुमार का गुरुवार को निधन हो गया (फाइल)

अभिषेक भल्ला

  • नई दिल्ली,
  • 01 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 8:47 AM IST
  • कर्नल बुल की रिपोर्ट से ही सियाचिन ग्लेशियर बचा सका भारत
  • भारतीय सेना ने रिपोर्ट के बाद शुरू किया था ऑपरेशन मेघदूत
  • कर्नल नरेंद्र को 1953 में भारतीय सेना में कमीशन दिया गया

सियाचिन पर भारत की पकड़ बनाए रखने में अहम रोल निभाने वाले कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार का आज गुरुवार को निधन हो गया. वह 87 साल के थे. भारतीय सेना के पूर्व कर्नल नरेंद्र कुमार ने ही 1984 में भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन मेघदूत शुरू करने से पहले सियाचिन में कई अभियान चलाए थे और उन्हीं की बदौलत भारत सियाचिन पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहा था.

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दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों में से एक सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की पकड़ बनाए रखने में कर्नल नरेंद्र कुमार की बड़ी भूमिका रही है और उनकी रिपोर्ट की वजह से भारतीय सेना को इस ग्लेशियर पर कब्जा बनाए रखने में मदद मिली थी.

अनधिकृत क्षेत्र की उनकी रिपोर्टों के बाद, भारतीय सेना ने अप्रैल 1984 में 'ऑपरेशन मेघदूत' शुरू किया और साल्टोरो रेंज के साथ मुख्य दर्रे और चोटियां पर कब्जा कर लिया. उनकी ही टीम ने जमीनी स्तर की अहम जानकारी दी जिसकी बदौलत सेना को ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए मैप तैयार करने में मदद मिली.

इस एक्शन से भारत को महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ मिला क्योंकि पाकिस्तान 18,000 फीट से ज्यादा क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर सका.

अफसरों का कहना है कि यदि 'हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल' के कमांडेंट के रूप में सियाचिन ग्लेशियर और साल्टोरो रेंज में उनका अभियान नहीं होता तो पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा जमा लेता.

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कर्नल नरेंद्र कुमार को बुल के नाम से भी जाना जाता था और उन्हें भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मानों में से एक पद्म श्री, खेलों में उनके अतुलनीय योगदान के लिए अर्जुन पुरस्कार और मैकग्रेगर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. 

कर्नल नरेंद्र कुमार का जन्म रावलपिंडी में 1933 में हुआ था. उन्हें 1953 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से कुमाऊं रेजिमेंट में भारतीय सेना में कमीशन दिया गया था. नंदादेवी पर्वत पर चढ़ाई करने वाले वह पहले भारतीय थे. उन्होंने 1965 में माउंट एवरेस्ट, माउंट ब्लांक (आल्प्स की सबसे ऊंची चोटी) और उसके बाद कंचनजंगा की चढ़ाई की थी.

इन बर्फीली चोटियों पर चढ़ाई अभियान तब भी प्रभावित नहीं हुई जब शुरुआती अभियानों के दौरान पैर की चार अंगुलियां गंवा दी थी. सेना ने कहा कि 1981 में अंटार्कटिका टास्क फोर्स के सदस्य के रूप में उन्होंने एक शानदार भूमिका निभाई.


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