'मैं कुंवर महेंद्र ध्वज, गंगा और यमुना के बीच की पूरी रियासत मेरी है...' कोर्ट में याचिका डालने वाले पर लगा 1 लाख का जुर्माना

दिल्ली हाईकोर्ट में एक शख्स ने याचिका दायर करते हुए दावा किया था कि आगर, मेरठ, दिल्ली और गुरुग्राम सहित गंगा-यमुना के बीच की जमीन पर उसका स्वामित्व है. अदालत ने उसकी याचिका खारिज करते हुए जुर्माना भी लगाया है.

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दिल्ली हाईकोर्ट (फाइल फोटो) दिल्ली हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 10:46 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने गुरुवार को एक शख्स की याचिका खारिज करते हुए उस पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. याचिकाकर्ता ने आगरा से मेरठ और दिल्ली, गुरुग्राम और उत्तराखंड की 65 राजस्व संपत्तियों सहित अन्य स्थानों पर यमुना और गंगा नदियों के बीच की भूमि पर स्वामित्व का दावा किया था. एजेंसी के मुताबिक दिल्ली HC के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने पूर्व 'राजा' के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह की याचिका को खारिज किया. इसमें उन्होंने एकल-न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी थी.

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सिंगल-जज ने पिछले साल दिसंबर में 10 हजार रुपये के जुर्माने के साथ उनकी याचिका खारिज कर दी थी. रिट याचिका को खारिज करते हुए, एकल न्यायाधीश ने कहा था कि याचिका पूरी तरह से गलत है और यह कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग और न्यायिक समय की पूरी बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है.

'75 साल बाद जागे हैं...'

दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि आप किस आधार पर कहते हैं कि यमुना और गंगा के बीच का पूरा इलाका आपका है? आप 75 साल बाद जागे हैं, यह शिकायत 1947 में उठी थी. कई साल बीत गए. आप राजा हैं या नहीं, हम नहीं जानते. आप आज यह शिकायत नहीं कर सकते कि 1947 में आपको वंचित किया गया था.

याचिकाकर्ता ने अपील में दावा किया कि संयुक्त प्रांत आगरा के बीच की जमीन, आगरा से यमुना और गंगा नदियों के बीच से लेकर मेरठ, अलीगढ़, बुलंदशहर, गुड़गांव और उत्तराखंड सहित दिल्ली के 65 राजस्व राज्यों के बीच की जमीन, 'बेसवान परिवार की रियासत' (Princely State of Beswan) के अंतर्गत आती है. चूंकि, उनके पूर्वजों और भारत सरकार के बीच कोई विलय समझौता नहीं हुआ था, इसलिए इलाके पर भारत संघ का कब्जा एक अतिक्रमण था.

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बेंच ने आगे कहा कि यह अदालत एकल न्यायाधीश के विचार से सहमत है कि अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए दावे पर रिट कार्यवाही में फैसला नहीं किया जा सकता है. स्वामित्व का सवाल सिर्फ सिविल कोर्ट में तय किया जा सकता है, जिसमें न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा भी शामिल हैं. 

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'कानून के मुताबिक...'

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि वह संपत्ति का उत्तराधिकारी था और कानून के मुताबिक किसी को भी उचित प्रक्रिया के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है, जिसे इस मामले में नहीं अपनाया गया था.

इस पर कोर्ट ने जवाब दिया कि 75 साल बाद नहीं... क्या इस पर विवाद करने के लिए बहुत देर नहीं हो गई है? आप 2024 में नहीं आ सकते.

याचिका में अपीलकर्ता ने केंद्र सरकार को उसके दावे वाले क्षेत्र के लिए विलय, परिग्रहण या उसके साथ संधि करने की प्रक्रिया अपनाने और उसे उचित मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की थी.
 

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