अंग्रेजों के शासन के दौरान कई रियासतों में लागू हुए थे धर्म परिवर्तन विरोधी कानून

यूएस लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस के एक रिसर्च पेपर के मुताबिक, धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने वाले कानून ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान मूल रूप से हिंदू रियासतों द्वारा पेश किए गए थे- खासकर "1930 और 1940 के दशक के दौरान."

Advertisement
प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:05 PM IST
  • कई राज्यों में कानून पर हो रहा विवाद
  • दर्जनभर रियासतों ने लागू किए थे कानून
  • 1979 में आया था फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल

हाल ही में यूपी सरकार ने “धर्म परिवर्तन विरोधी” अध्यादेश पारित किया जिस पर खूब विवाद हुआ. हालांकि, भारत में कई राज्यों में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून मौजूद हैं लेकिन हाल में कई राज्यों में ऐसे कानून पास हुए जिन पर विवाद होता रहा है. यूपी सरकार के अध्यादेश के पहले कई स्तर पर धर्मांतरण विरोधी कानूनों की मांग उठ रही थी. यहां तक कि संसद में भी एक 'नेशनल एंटी कनवर्जन लॉ' की मांग की गई थी. इन विवादों के मद्देनजर इंडिया टुडे ने इस बारे में पहले से मौजूद कानूनों का जायजा लिया.

Advertisement

यूएस लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस के एक रिसर्च पेपर के मुताबिक, धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने वाले कानून ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान मूल रूप से हिंदू रियासतों द्वारा पेश किए गए थे- खासकर "1930 और 1940 के दशक के दौरान."

इन रियासतों ने "ब्रिटिश मिशनरियों से हिंदुओं की धार्मिक पहचान की रक्षा करने के प्रयास के" तहत ये कानून बनाए थे. ये रिसर्च पेपर कहता है कि “कोटा, बीकानेर, जोधपुर, रायगढ़, पटना, सरगुजा, उदयपुर और कालाहांडी समेत एक दर्जन से ज्यादा रियासतें थीं”, जिन्होंने ऐसे कानून बनाए थे.

आजादी के बाद भी पेश हुए कई बिल

भारत की स्वतंत्रता के बाद संसद ने कई धर्मांतरण विरोधी बिल पेश किए, लेकिन कोई भी प्रभाव में नहीं आया. सबसे पहले 1954 में इंडियन कनवर्जन (रेग्यूलेशन एंड रजिस्ट्रेशन) बिल पेश किया गया था, जिसमें "मिशनरियों के लाइसेंस और धर्मांतरण को सरकारी अधिकारियों के पास रजिस्टर कराने की बात कही गई थी. इस बिल को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला.

Advertisement

इसके बाद 1960 में पिछड़ा समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक लाया गया, जिसका मकसद था कि हिंदुओं को 'गैर-भारतीय धर्मों' में परिवर्तित होने से रोका जाए. विधेयक की परिभाषा के अनुसार, इसमें इस्लाम, ईसाई, यहूदी और पारसी धर्म शामिल थे. इसके बाद 1979 में फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल आया जिसमें "धर्मांतरण पर आधिकारिक प्रतिबंध" की बात कही गई थी. राजनीतिक समर्थन न मिलने की वजह से ये बिल संसद में पास नहीं हो सके.

2015 में, कानून मंत्रालय ने राय दी थी कि जबरन और धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कानून नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है.

पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने जबरन, धोखाधड़ी से या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिए “फ्रीडम ऑफ रिलीजन” कानून लागू किया है. रिसर्च करने वाले संगठन पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने हाल ही में कई राज्यों में मौजूदा धर्मांतरण विरोधी कानूनों की तुलना करते हुए एक रिपोर्ट जारी की है.

आठ राज्यों में लागू हैं ऐसे कानून

"धार्मिक स्वतंत्रता" से जुड़े कानून वर्तमान में 8 राज्यों में लागू हैं- ओडिशा (1967), मध्य प्रदेश (1968), अरुणाचल प्रदेश (1978), छत्तीसगढ़ (2000 और 2006), गुजरात (2003), हिमाचल प्रदेश (2006 और 2019), झारखंड (2017) और उत्तराखंड (2018).

Advertisement

हिमाचल प्रदेश (2019) और उत्तराखंड के कानून ऐसे विवाह को अमान्य घोषित करते हैं जिसमें अवैध धर्म परिवर्तन किया गया हो या फिर धर्म परिवर्तन सिर्फ विवाह के उद्देश्य से किया गया हो.

इसके अलावा, तमिलनाडु ने 2002 में और राजस्थान ने 2006 और 2008 में इसी तरह का कानून पारित किया था. हालांकि, 2006 में ईसाई अल्पसंख्यकों के विरोध के बाद तमिलनाडु के कानून को निरस्त कर दिया गया था, जबकि राजस्थान के विधेयकों को राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली.

नवंबर 2019 में जबरन या कपटपूर्ण धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने धर्मांतरण को रेग्यूलेट करने के लिए एक नया कानून बनाने की सिफारिश की थी. इसी के आधार पर राज्य सरकार ने हाल ही में अध्यादेश पारित किया.

अंतरराष्ट्रीय आलोचना

यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) की 2016 और 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यवेक्षकों ने पाया है कि इन कानूनों के तहत गिरफ्तारियां या केस तो बहुत कम हैं, लेकिन "ये कानून धार्मिक अल्पसंख्यकों समुदायों के प्रति शत्रुता पैदा करते हैं और कुछ मौकों पर हिंसा को बढ़ावा देने वाले हैं, क्योंकि इन्हें किसी पर लगे आरोपों को साबित करने के लिए किसी भी सबूत की जरूरत नहीं होती.”

Advertisement

USCIRF की कुछ हाल की रिपोर्टों में गिरफ्तारी की कुछ घटनाओं का जिक्र किया गया है. इसमें 2017 की भी एक घटना है जब धार्मिक अल्पसंख्यक नेताओं और अनुयायियों को इन कानूनों के नतीजे के रूप में धमकी और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा. उदाहरण के लिए, बरगलाकर धर्म परिवर्तन कराने के संदेह के आधार पर एक कैथोलिक नन को चार आदिवासी महिलाओं के साथ जून 2017 में हिरासत में लिया गया था. अप्रैल 2017 में तीन ईसाइयों को खंडवा जिले में इन आरोपों के आधार पर गिरफ्तार किया गया था कि वे लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहे थे. जुलाई 2017 में पंजाब के लुधियाना में गॉड चर्च के पादरी सुल्तान मसीह की धर्म परिवर्तन कराने के संदेह के आधार पर सार्वजनिक रूप से हत्या कर दी गई थी जिसके बाद ईसाइयों ने विरोध-प्रदर्शन किया था.

पीआरएस रिसर्च में विभिन्न राज्यों में मौजूद ऐसे कानूनों की कुछ विशेषताओं को दिखाया गया है. सभी राज्यों ने जबरन, धोखाधड़ी या धन के बल पर धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाया है, जबकि सिर्फ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और यूपी ने विवाह के जरिये धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाया है.

धर्म परिवर्तन का नोटिस

प्रशासन को धर्म परिवर्तन की सूचना देने की जरूरत के मामले में अरुणाचल प्रदेश का कानून सबसे ज्यादा आसान है. इसमें कहा गया है कि धर्म परिवर्तन के बाद, धर्म परिवर्तन कराने वाले पुजारी की ओर से जिला मजिस्ट्रेट या इसी तरह के अधिकारी को नोटिस देना होगा, जिसने धर्म परिवर्तन किया है उसे निजी तौर पर कोई सूचना या नोटिस देने की जरूरत नहीं होगी. अन्य सभी राज्यों में पुजारी या धर्म परिवर्तन कराने वाले के साथ जो धर्म परिवर्तन कर रहा है उसे भी अग्रिम सूचना देनी जरूरी है. सबसे सख्त प्रावधान यूपी में हैं. यहां जो व्यक्ति धर्म परिवर्तन करना चाहता है, उसे जिले के अधिकारियों को 60 दिनों का नोटिस देना होगा, जबकि धर्म परिवर्तन कराने वाले को एक महीने पहले नोटिस देना जरूरी है. उत्तराखंड ने भी दोनों के लिए एक महीने पहले नोटिस देने का प्रावधान किया है.

Advertisement

दोषियों के लिए सजा

ओडिशा और मध्य प्रदेश के कानून सबसे पुराने हैं, जहां जबरन धर्मांतरण के लिए सबसे कम एक साल की जेल का प्रावधान है, जबकि हिमाचल और उत्तराखंड ने 1 से 5 साल की सजा का प्रावधान किया है. नाबालिग या महिलाओं के केस में सभी राज्यों में अधिकतम सजा का प्रावधान है.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement