Tatkal ई-ट‍िकटों की दलाली करने वाले रैकेट का भंडाफोड़, Bots की लेते थे मदद, ये है तरीका

एक WhatsApp ग्रुप जिसका नाम पहले 'Jai Shree Ram Bhai Tatkal Materials' था उसे बदलकर 'Jai Shree Ram Bhakton Ka Parivaar' कर दिया गया ताकि शक न हो. थोड़ी देर बाद ग्रुप एडमिन ने मेंबर्स को एक सीक्रेट बैकअप ग्रुप जॉइन करने के लिए कहा और माना कि उनकी जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स में उजागर हो चुकी है. 

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Bot bazaar busted: Crackdown restricts online operations of Tatkal e-ticketing racket Bot bazaar busted: Crackdown restricts online operations of Tatkal e-ticketing racket

आकाश शर्मा / बिदिशा साहा

  • नई दिल्ली ,
  • 07 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:33 PM IST

पकड़े गए, भंडाफोड़ हुआ… और फिर गायब हो गए. Tatkal टिकटों की दलाली करने वाले ऑनलाइन एजेंटों का नेटवर्क जो बॉट्स की मदद से असली यात्रियों से पहले टिकट बुक कर लेते थे. India Today की तहकीकात के बाद अब सतर्क हो गया है. 

हमारी जांच में सामने आया कि ये एजेंट अवैध प्लेटफॉर्म्स के जरिए 60 सेकंड से भी कम समय में Tatkal टिकट बुक कर रहे थे. ये प्लेटफॉर्म बॉट्स और चोरी किए गए आधार-वेरीफाइड IRCTC अकाउंट्स पर निर्भर थे जिससे यूजर्स का डेटा खतरे में था. इन एजेंटों के साथ टेक एक्सपर्ट्स भी थे जो बॉट बनाते थे. साथ ही फर्जी सर्विस प्रोवाइडर्स भी इस रैकेट का हिस्सा थे. ये सभी मिलकर IRCTC की बुकिंग प्रणाली में मौजूद खामियों का फायदा उठा रहे थे और Telegram व WhatsApp जैसे मैसेजिंग ऐप्स के जरिए अपना नेटवर्क चला रहे थे. 

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India Today ने Telegram और WhatsApp पर 40 से ज्यादा ऐसे सक्रिय ग्रुप्स की पहचान की जो इस गोरखधंधे में लिप्त थे. रिपोर्ट आने के बाद कुछ ग्रुप बंद कर दिए गए तो कुछ ज़्यादा गोपनीय और क्लोज्ड चैनलों में शिफ्ट हो गए. कई एजेंटों ने अपने ग्रुप्स की चैट हिस्ट्री मिटा दी ताकि कोई सबूत न बचे. 

एक WhatsApp ग्रुप जिसका नाम पहले 'Jai Shree Ram Bhai Tatkal Materials' था उसे बदलकर 'Jai Shree Ram Bhakton Ka Parivaar' कर दिया गया ताकि शक न हो. थोड़ी देर बाद ग्रुप एडमिन ने मेंबर्स को एक सीक्रेट बैकअप ग्रुप जॉइन करने के लिए कहा और माना कि उनकी जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स में उजागर हो चुकी है. 

Telegram और WhatsApp चैनलों पर 'view-once' फीचर का इस्तेमाल करके बुकिंग डिटेल्स भेजी जाने लगीं ताकि कोई उन्हें सेव या फॉरवर्ड न कर सके और पकड़ में न आएं. 

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851 मेंबर्स वाला एक और ग्रुप जिसका नाम 'Ocean Extension' था, उसके एडमिन ने डिलीट कर दिया. ये ग्रुप सिर्फ टिकट ही नहीं बेचता था बल्कि एजेंटों को Tatkal बुकिंग का सॉफ्टवेयर भी मुहैया कराता था. इस ग्रुप की एक वेबसाइट भी थी जहां से डेटा चुराने और तेजी से टिकट बुक करने वाले बॉट्स बेचे जाते थे जिससे असली यात्रियों को टिकट मिलना मुश्किल हो जाता था. अब वो वेबसाइट भी गायब हो चुकी है. 

एक और WhatsApp ग्रुप था 'IRCTC Tatkal Update 2.0' जिसमें 194 मेंबर्स थे और जो इसी धंधे में शामिल था, उसे भी डिलीट कर दिया गया.

असर कितना पड़ा?

फिलहाल कुछ ग्रुप्स जरूर बंद हुए हैं लेकिन काम अभी खत्म नहीं हुआ है. जिन ग्रुप्स के डिजिटल निशान मिल गए, उन्हें तो बंद करवा दिया गया लेकिन कई अन्य अब भी सक्रिय हैं  और वो Virtual Private Servers (VPS) का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे उनके IP एड्रेस छुप जाते हैं. 

एक ग्रुप जिसमें कम से कम 900 मेंबर्स हैं, अब भी खुलेआम 'Ezyride Tatkal Service' नाम का बॉट बेच रहा है. इससे जुड़ी वेबसाइट tatkalworld.com भी VPS और प्रॉक्सी IP सर्विस देती है जिससे यूजर्स की पहचान छुपी रहे. हैरानी की बात ये है कि ये वेबसाइट सिर्फ तीन महीने पहले बनाई गई थी. 

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अब रैकेट के ऑपरेटर और एजेंट अंतरराष्ट्रीय फोन नंबर का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि पहचान छुपी रहे. पूर्व IPS अफसर और साइबर क्राइम एक्सपर्ट त्रिवेणी सिंह ने India Today से कहा कि सच यह है कि ज़मीनी तौर पर इसका कोई स्थायी असर नहीं होगा. कुछ ही मिनटों में नए चैनल बन जाएंगे, नए IDs बन जाएंगे और रैकेट फिर से शुरू हो जाएगा. ये एक बड़े स्तर का ऑपरेशन है जो देश के हर कोने में फैला है और इसमें सस्ते बॉट्स का इस्तेमाल करके हजारों एजेंट शामिल हैं. 

वो आगे कहते हैं कि यह गोरखधंधा भले ही कुछ समय के लिए दब जाए लेकिन पूरी तरह रुकेगा नहीं. ये लोग अब प्राइवेट Telegram ग्रुप्स या डार्कनेट का सहारा लेंगे. 

इसका समाधान क्या है?

त्रिवेणी सिंह कहते हैं कि इसे रोकने के लिए सिर्फ एक ही तरीका है कि सरकार को एक ऐसा AI-सक्षम प्लेटफॉर्म बनाना होगा जो जियो-फेंसिंग यानी क्षेत्रीय आधार पर बुकिंग की अनुमति और AI प्रोफाइलिंग जैसे टूल्स से काम करे. उदाहरण के लिए मान लीजिए कोई व्यक्ति अगर यूपी का आधार इस्तेमाल कर रहा है तो वो सिर्फ यूपी के भीतर ही टिकट बुक कर सके. साथ ही हर ID कितनी बार इस्तेमाल हो रही है, उसका AI से ट्रैकिंग होनी चाहिए. तभी इस रैकेट पर कारगर तरीके से लगाम लगाई जा सकती है.

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