अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS)-भुवनेश्वर के डॉक्टरों ने नौ वर्षीय बच्चे के फेफड़े में फंसी सिलाई में इस्तेमाल होने वाली चार सेंटीमीटर लंबी सुई निकालकर उसकी जान बचा ली. अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञों ने पड़ोसी पश्चिम बंगाल के रहने वाले लड़के के फेफड़े से सुई निकालने के लिए ‘ब्रोंकोस्कोपिक’ प्रक्रिया का इस्तेमाल किया.
क्या है ब्रोंकोस्कोपी
ब्रोंकोस्कोपी एक पतली, रोशनी वाली ट्यूब (ब्रोंकोस्कोप) का उपयोग करके सांस की नली से फेफड़े में सीधे देखने की एक प्रक्रिया है. डॉ. रश्मि रंजन दास, डॉ. कृष्णा एम गुल्ला, डॉ. केतन और डॉ. रामकृष्ण समेत बाल रोग विशेषज्ञों की टीम ने पिछले सप्ताह सुई निकालने के लिए ‘ब्रोंकोस्कोपिक’ प्रक्रिया का इस्तेमाल किया था.
थोरैकोटॉमी से खतरे में पड़ सकती थी जान
डॉ. रश्मी रंजन दास ने कहा, 'लगभग एक घंटे की इस पूरी प्रक्रिया के माध्यम से मरीज एक जानलेवा सर्जरी (थोरैकोटॉमी) से बच गया.' ‘थोरैकोटॉमी’ से लड़के की जान खतरे में पड़ सकता थी, क्योंकि इसमें फेफड़े के एक हिस्से को हटाने की आवश्यकता होती है.
प्रक्रिया के बाद चार दिन तक भर्ती रहे मरीज की हालत अब स्थिर है और वह ठीक होने वाला है. एम्स भुवनेश्वर के कार्यकारी निदेशक डॉ. आशुतोष विश्वास ने डॉक्टरों की समर्पित टीम की सराहना करते हुए उन्हें हार्दिक बधाई दी.
डॉ. कृष्णा एम गुल्ला बताते हैं कि एम्स भुवनेश्वर के पास बच्चों के डॉक्टर की एक टीम है. यहां पल्मोनोलॉजी और आईसीयू टीम है, जो नवजात शिशु से लेकर 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए ब्रोंकोस्कोपी करती है. एम्स भुवनेश्वर में बाल रोग विभाग में 2021 से बाल चिकित्सा ब्रोंकोस्कोपी सुविधा उपलब्ध है.
अजय कुमार नाथ