महाराष्ट्र लोककला का नाम लेते ही पारंपरिक ‘लावणी नृत्य’ जेहन में आता है. ये नृत्य शैली राज्य की खास पहचानों में से एक है. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन के दौरान महाराष्ट्र में लावणी कलाकारों को काफी मुश्किल वक्त देखना पड़ा. लावणी से जुड़े सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए जाने से इन कलाकारों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया.
किसी ने नाश्ते का स्टाल लगाकर तो किसी ने सब्जी बेचकर, तो किसी ने मजदूरी कर परिवार का गुजारा किया. राज्य सरकार ने अब लावणी नृत्य कार्यक्रमों को दोबारा हरी झंडी दिखाई है तो इससे जुड़े कलाकारों को फिर से अच्छे दिन लौटने की उम्मीद बंधी है.
पिछले साल मार्च में लॉकडाउन शुरू हुआ. लावणी कार्यक्रमों के आयोजन के लिए मार्च से मई तक के तीन महीने बहुत अहम माने जाते हैं. फसलों की कटाई के बाद जगह जगह से लावणी ग्रुप्स को कार्यक्रमों के लिए न्योते मिलते हैं. इन तीन महीनों में ही सबसे ज्यादा बुकिंग रहती है.
इस दौरान की गई बचत लावणी कलाकारों के पूरे साल काम आती है. लेकिन पिछले साल ऐसे सभी कार्यक्रमों पर ब्रेक लग गया. लॉकडाउन के दस महीने इन लावणी कलाकारों पर कैसे गुजरे, इसका दर्द उनसे बेहतर कोई नहीं जानता. इनके लिए ये वजूद की लड़ाई थी.
संगीता लाखे
43 साल की संगीता लाखे लावणी में पारंगत हैं. इनके परिवार में 7 सदस्य हैं. संगीता के कंधों पर ही मुख्य तौर पर परिवार की जिम्मेदारी है. लॉकडाउन से पहले तक लावणी कार्यक्रमों से संगीता को 20 हजार रुपए महीना आमदनी हो जाती थी. लेकिन फिर अचानक पिछले साल मार्च में सब बदल गया. परिवार को खाने के भी लाले हो गए.
लॉकडाउन के शुरू के महीने बहुत कठिन गुजरे और जो बचत का पैसा था, उससे ही घर का खर्च चला. लॉकडाउन में कुछ ढिलाई हुई तो संगीता ने घर से बाहर निकल कुछ करने का फैसला किया. पुणे से 40 किलोमीटर दूर तलेगांव दाभोड़ की रहने वालीं संगीता ने ब्रेकफास्ट स्टाल शुरू करने का फैसला किया. उन्होंने साबुदाने की खिचड़ी, पोहा आदि बेचना शुरू किया.
लावणी कार्यक्रमों से संगीता को जितनी कमाई होती थी, ब्रेकफास्ट स्टाल से उतनी आय तो नहीं हुई लेकिन घर के सदस्यों की दो जून की रोटी का इंतजाम हो गया. खुद तंगी की हालत में भी संगीता ने लावणी ग्रुप से जुड़े अन्य लोगों की भी मदद की.
स्वाति शिंदे
स्वाति शिंदे लावणी नृत्यांगना होने के साथ साथ गायिका भी हैं. 31 साल की स्वाति पुणे के बालगंधर्व रंगमंदिर हॉल में लावणी देखने आने वाले लोगों को अपनी प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध कर देती थीं. नृत्य और उनकी मधुर आवाज का मेल दर्शकों को बहुत पसंद आता रहा है.
बीते दस महीने स्वाति और उनके परिवार के लिए भी बड़ी परेशानी वाले रहे. दाल-रोटी का भी घर में संकट हो गया तो स्वाति ने सब्जियां बेचने का फैसला किया. इसके लिए स्वाति ने पुणे के पास खेडशिवापुर से सुबह पुणे मार्केट यार्ड आना शुरू किया. उन्होंने मंडी से सब्जियां खरीद कर बेचना शुरू किया. गृहणियों को अन्य जरूरत का सामान भी स्वाति ने उपलब्ध कराया.
लावणी कार्यक्रमों को दोबारा इजाजत मिलने की बात सुनी तो स्वाति की आंखें नम हो गईं. भावुक अंदाज में उन्होंने ‘आज तक’ से कहा कि “बीता साल जैसा लावणी कलाकारों ने देखा, वैसा उन्हें फिर कभी न देखना पड़े. भगवान से प्रार्थना है कि पुराने दिन लौट आएं और नया साल सभी के लिए खुशियां लाने वाला हो.”
अर्चना जावलेकर
31 साल की अर्चना जावलेकर बीते डेढ़ दशक से लावणी नृत्य के जरिए परिवार का सहारा बनी हुई हैं. वे जब प्रस्तुति देती हैं तो दर्शकों पर जादू सा कर देती हैं. उनके क्रेज को देखते हुए उन्हें लावणी कार्यक्रम के लिए मेहनताना भी अधिक मिलता है. लेकिन लॉकडाउन में लावणी कार्यक्रम बंद हो जाने से अर्चना के परिवार को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
अर्चना ने ‘आजतक’ को बताया, “पिछले दस महीने बचत के पैसे और पिता की पेंशन की रकम से किसी तरह गुजरे. घर के सदस्यों को कोरोना ने तो नहीं लेकिन अन्य बीमारियों ने आ घेरा. ऐसी स्थिति में रिश्तेदारों और बाजार से ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा.”
लावणी कार्यक्रमों पर से रोक हटी तो नृत्य के लिए पैरों में फिर से पायल बांधते वक्त अर्चना का गला भर आया. लेकिन अर्चना ने खुशी का इजहार भी किया कि पुराने दिनों के लौटने की फिर से शुरुआत हो रही है.
लोक कलाकारों की मदद के लिए हो पुख्ता इंतजाम
आज की तारीख में महाराष्ट्र राज्य में लावणी नृत्यांगना में सबसे अव्वल नाम सुरेखा पुणेकर, छाया माया खुटेगावकर का है. इन दोनों को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
महाराष्ट्र में करीब 5000 लावणी नृत्यांगनाएं हैं. लॉकडाउन के दौरान लोक कलाकारों को आई दिक्कतों ने इस विधा के बड़े लोगों को भी व्यथित किया. ऐसे ही बड़े नामों में लावणी सम्राज्ञी सुरेखा पुणेकर और खुटेगांवकर बहने शामिल हैं.
लावणी का जिक्र हो और खुटेगांवकर बहनों का नाम न आए, ऐसा मुमकिन नहीं है. इन दोनों बहनों का नाम इस नृत्यशैली को लेकर बहुत सम्मान से लिया जाता है. देश-विदेश में लावणी प्रस्तुति दे चुकीं दोनों बहनों को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.
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माया खुटेगांवकर ने ‘आजतक’ से कहा, राज्य में सांस्कृतिक लोककला से हजारों कलाकार जुड़े हैं. पिछले 10 महीनों में इन्हें बहुत बुरे दिन देखने पड़े. इनके लिए ‘सड़क पर आ जाने’ जैसी स्थिति हो गई. रंगबिरंगी लाइट्स के बीच प्रस्तुति देने वाले लावणी और लोक कलाकारों की जिंदगी में खुद अंधेरा छा गया.
बीते 35 साल से महाराष्ट्र में लावणी कार्यक्रमों के आयोजन कराते आ रहे शशिकांत कोठवाले ने आपात स्थिति में लावणी और लोककलाकारों की मदद के लिए स्थायी व्यवस्था की वकालत की है. कोठवाले ने बताया कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता शरद पवार का शरद कला क्रीड़ा प्रतिष्ठान लोक कलाकारों की मदद के लिए लॉकडाउन में आगे आया. इस प्रतिष्ठान की ओर से 800 कलाकारों को हर महीने राशन पहुंचाया. इसके अलावा लावणी कलाकारों में से हर एक को तीन हजार रुपए नकद मदद भी दी गई.
पंकज खेळकर