मुंबई के वालकेश्वर क्षेत्र में राजभवन (गवर्नर्स हाउस) 50 एकड़ क्षेत्र में फैला है. यहां 250 कर्मचारी काम करते हैं और राजभवन में ही रहते हैं. इनमें से कुछ तो काफी बुज़ुर्ग हैं. कई कर्मचारियों का मानना है कि देवी मंदिर और सनसेट पाइंट के पास गवर्नर्स हाउस में एक बड़ी सुरंग है. 2016 में 20 फीट ऊंची दीवार गिरने पर लोग वहां एक बड़ा बंकर देखकर हैरान रह गए थे.
ये बंकर 15 हजार वर्ग फीट क्षेत्र में फैला है और इसमें 13 कमरे हैं. 2016 में इस बंकर मिलने के बाद इसकी मरम्मत का काम कराया गया. अब इस पूरे बंकर को म्यूजियम (संग्रहालय) में बदल दिया गया है. अक्टूबर से आम नागरिक भी ऑनलाइन बुकिंग के बाद इस बंकर को देखने जा सकेंगे.
बंकर में कई कमरे ऐसे हैं जो स्टोरेज के लिए इस्तेमाल किए जाते थे. बंकर की बनावट में कैसे रणनीतिक महत्व को तब ध्यान में रखा गया था, ये इसी से पता चलता है कि तीन तरफ से अरब सागर दिखता है. अधिकारियों के अनुमान के मुताबिक गवर्नर्स हाउस के नीचे इस बंकर का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध से पहले किया गया. हालांकि ये समुचित जांच के बाद ही पक्का हो सकता है कि इस बंकर का निर्माण वास्तव में कब हुआ था.
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान गवर्नर्स हाउस का निर्माण वर्ष 1802 में हुआ था. इसी के नीचे ये बंकर मिला. बंकर के ऊपर बड़ी तोपों को रखा गया था. बंकर निर्माण के लिए करीब 100 साल पहले भवन निर्माण की बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल किया गया. बंकर में हथियारों और गोलाबारूद का बड़ा भंडार रहता था. पूरे बंकर के नीचे पानी के पाइपों के लिए रास्ता था. ये इसलिए था कि अगर कभी आग लगने की स्थिति आती तो इन पाइप से पानी छोड़कर आग पर काबू पाया जा सकता था.
बंकर की छत से वेंटिलेशन का इंतज़ाम किया गया था. छत पर दस फीट बड़े वेंटिलेशन (रोशनदान) को इस तरह बनाया गया था कि सूरज की रोशनी और हवा बंकर में आती रहे. अब बंकर को म्यूजियम बनाए जाने के बाद सेंट्रलाइज्ड एसी की व्यवस्था की गई है. म्यूजियम को अक्टूबर के पहले हफ्ते में आम नागरिकों के लिए खोला जाएगा.
अधिकारियों का कहना है कि ब्रिटिश हुक्मरानों को आशंका थी कि पहले विश्व युद्ध के दौरान अरब सागर की ओर से हमला हो सकता है. तब कारोबार के लिहाज से मुंबई ब्रिटिश के लिए सबसे अहम रणनीतिक राज्यों में एक था. इसलिए पहले विश्व युद्ध के दौरान सुरक्षा को मजबूत करने के लिए ये बंकर बनाया गया. ये बंकर से जुड़ी एक थ्योरी है लेकिन इसकी आधिकारिक तौर पर पुष्टि जांच के बाद ही हो सकती है.
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