क्या इस साल मुंबई की सड़कों पर नहीं दिखेगी दही-हांडी की धूम?

इस आयोजन के नाम पर जो भी चंदा इकट्ठा किया गया था, उसे कोरोना मरीजों के इलाज में खर्च किया जाएगा. शिवसेना नेता प्रताप सरनाईक हर साल संस्कृति दही हांडी सेलिब्रेशन के नाम से प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं. लेकिन इस साल आयोजन कैंसिल किया जा रहा है.

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दही हांडी की नहीं दिखेगी धूम दही हांडी की नहीं दिखेगी धूम

कमलेश सुतार

  • मुंबई,
  • 22 जून 2020,
  • अपडेटेड 5:43 PM IST

  • दही-हांडी प्रतियोगिता का नहीं होगा आयोजन
  • बड़े आयोजक 'संस्कृति' ने कैंसिल किया कार्यक्रम

कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस साल मुंबई की सड़कों पर दही-हांडी प्रतियोगिता का आयोजन नहीं दिखेगा. दही-हांडी कार्यक्रम के बड़े आयोजनकर्ता समूह 'संस्कृति' ने इस बार के सभी आयोजन को कैंसिल करने की घोषणा की है. इतना ही नहीं इस आयोजन के नाम पर जो भी चंदा इकट्ठा किया गया था, उसे कोरोना मरीजों के इलाज में खर्च किया जाएगा. बता दें, शिवसेना नेता प्रताप सरनाईक हर साल संस्कृति दही-हांडी सेलिब्रेशन के नाम से प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं.

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जाहिर है श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर महाराष्‍ट्र समेत पूरे देश में 'दही-हांडी' का उत्‍सव मनाया जाता है. दही-हांडी उत्‍सव के बहाने लोग भगवान कृष्‍ण और उनकी बाल-लीलाओं को याद करते हैं. दही-हांडी उत्‍सव के दौरान सार्वजनिक स्‍थलों पर हांडी को रस्‍सी के सहारे काफी ऊंचाई पर लटका दिया जाता है. दही से भरे मटके को लोग समूहों में एकजुट होकर फोड़ने का प्रयास करते हैं.

हांडी को फोड़ने के प्रयास में लोग एक-दूसरे के ऊपर व्‍यवस्थित तरीके से चढ़कर पिरामिड जैसा आकार बनाते हैं. इससे लोग काफी ऊंचाई पर बंधे मटके तक पहुंच जाते हैं. इस प्रयास में चूंकि एकजुटता की काफी जरूरत पड़ती है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि दही-हांडी उत्‍सव से सामूहिकता को बढ़ावा मिलता है.

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अद्भुत होता है दही-हांडी का नजारा

दही की हांडी को फोड़ने के प्रयास में लोग कई बार गिरते-फिसलते हैं. हांडी फोड़ने के प्रयास में लगे युवकों और बच्‍चों को 'गोविंदा' कहा जाता है, जो कि 'गोविंद' का ही दूसरा नाम है. इन गोविंदाओं के ऊपर कई बार पानी की बौछारें भी की जाती हैं. काफी प्रयास के बाद जब गोविंदाओं को कामयाबी हासिल होती है, तो देखने वालों को भी काफी आनंद आता है. हांडी फोड़ने वाले तो फूले नहीं समाते हैं. भक्‍त इस पूरे खेल में भगवान को याद करते हैं.

उत्‍सव की पौराणिक मान्‍यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण अपने साथियों के ऊपर चढ़कर पास-पड़ोस के घरों में मटकी में रखा दही और माखन चुराया करते थे. कान्‍हा के इसी रूप के कारण बड़े प्‍यार से उन्‍हें 'माखनचोर' कहा जाता है.

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ईनामों की भरपूर बौछार

मौजूदा समय में यह उत्सव केवल परंपरा और आनंद तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मटकी तक पहुंचने और उसे फोड़ने वालों को लाखों रुपये ईनाम में बांटे जाते हैं. इस दौरान कई राजनीतिक पार्टियां प्रचार करने का भी प्रयास करती हैं.

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