जवान बेटे की अर्थी के पीछे गीत गाती चली मां, जिसने देखा फफक पड़ा

असहनीय दर्द को सीने में दबाए एक मां अपने बेटे की अंतिम यात्रा में एक यथार्थपरक गीत गाते चल रही थी. एक मां के करूण हृदय से निकलते 'चोला माटी के राम' गीत के बोल जिसके भी कानों में गए, उसका कलेजा भर आया.

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बेटे की अर्थी के पीछे गीत गाती मां बेटे की अर्थी के पीछे गीत गाती मां

aajtak.in

  • राजनांदगांव,
  • 05 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 8:19 AM IST

  • मां ने पूरी की बेटे की अंतिम इच्छा
  • छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की घटना

किसी भी माता-पिता के लिए जवान बेटे की मौत बेहद पीड़ादायक होती है. जिस मां ने 30 साल का जवान बेटा खोया हो, उसके दर्द की गहराई का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इस असहनीय दर्द को सीने में दबाए एक मां अपने बेटे की अंतिम यात्रा में एक यथार्थपरक गीत गाते चल रही थी. एक मां के करूण हृदय से निकलते 'चोला माटी के राम' गीत के बोल जिसके भी कानों में गए, उसका कलेजा भर आया.

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आगे-आगे 30 साल के बेटे की अर्थी जा रही थी और पीछे-पीछे करूण स्वर में यह गीत गाते मां चली जा रही थी. यह कहानी छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की है. जहां प्रसिद्ध रंगकर्मी और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लोक गायक दीपक विराट के 30 वर्षीय बेटे सूरज विराट की शवयात्रा में उनकी मां रामनामी गाते चल रही थी. इसे जिसने भी देखा, जिसने भी सूना, वह सिसक पड़ा.

पूरी कर रही थीं पुत्र की अंतिम इच्छा

दीपक विराट की पत्नी पूनम विराट भी लोक गायिका हैं. पुत्र की इच्छा थी कि उसकी अंतिम यात्रा में उसका पसंदीदा गीत गाया जाय. पुत्र को खो देने का दर्द झेलते हुए भी मां ने अपना कलेजा विराट बनाया और पुत्र की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए जिस गीत को वह कई मंचों पर अपनी आवाज दे चुकी थीं, उसे अपने ही जवान बेटे की अर्थी के पीछे भी गाया.

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यह सूरज का पसंदीदा गीत था. सामने बेटा कफन में लिपटा पड़ा था और मां ने जीवट दिखाया. सैकड़ों मंच पर इस गीत को स्वर देने वाली पूनम ने सोचा भी नहीं होगा कि वक्त एक दिन उसके रूंधे गले की ऐसी परीक्षा ले लेगा. इस पल को जिसने भी देखा वह फफक पड़ा.

विराट परिवार ने लोक नाट्य को बना लिया जीवन

जीने का यह भी एक सलीका होता है और कुछ मौतें जीवन के ऐसे भी कफन ओढ़ती हैं. हबीब तनवीर के नया थिएटर ने दीपक विराट और पूनम विराट को रंगमंच का विराट संस्कार दिया था. विराट परिवार ने लोक नाट्य की विधा को ही अपना जीवन बना लिया था. शायद उन्हें भी यह मालूम नहीं था कि पुत्र की चिता से पहले उन्हें अपनी बर्दाश्त की हदों को इतना विराट बनाना होगा.

भिलाई में हुआ था निधन

बताया जाता है कि सूरज भी रंगकर्म से जुड़े थे. उन्हें दिल का दौरा पड़ने पर परिजनों ने उपचार के लिए भिलाई के एक अस्पताल में भर्ती कराया था. परिजनों की तत्परता और चिकित्सकों की मेहनत भी सूरज की जान नहीं बचा सकी और उसने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया. परिजन पुत्र की पार्थिव देह लेकर घर आए और अंतिम संस्कार किया गया.

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