पूर्व में अटल बिहारी वाजपाई की एनडीए सरकार कार्यकाल के दौरान नवरत्न कंपनियों में कुछ कंपनियों का निजीकरण कर कुछ औघोगिक घरानों को सौंप दिया था. अबकी मोदी सरकार में भी यह खेल दोबारा शुरू हो गया है. अब सेल की इकाइयों,
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की महत्वपूर्ण इकाइयों को बेचने के लिए मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज में टेंडर निकाला गया है. खासबात यह है कि इन इकाइयों बेचने का हो हल्ला ना हो इसके लिए इन्हें बड़ी चालाकी के साथ टुकड़ो में बेचा जा रहा है.
इसके तहत छत्तीसगढ़ स्थित भिलाई स्टील प्लांट की टाउनशिप, पावर स्टेशन के अलावा झारखंड स्थित अलॉय स्टील प्लांट, सेलम स्टील और विश्वसरैया आयरन एंड स्टील प्लांट जल्द ही निजीकरण के तहत किसी ना किसी औद्योगिक घरानों को सौंप दिया जाएगा.
छत्तीसगढ़ के भिलाई स्थित भिलाई स्टील प्लांट में खलबली मची हुई है, क्योंकि केंद्रीय इस्पात मंत्रालय ने इसके एक बड़े हिस्से को बेचने के लिए निकाल दिया है. इसमें इसका पावर स्टेशन से लेकर टाउनशिप का एक बड़ा हिस्सा शामिल है जो कि करीब 2 हजार एकड़ में फैला हुई है.
इसके अलावा दुर्गापुर स्थित अलॉय स्टील प्लांट, तमिलनाडु स्थित सेलम स्टील प्लांट और कर्नाटक स्थित विश्वसरैया आयरन एंड स्टील प्लांट समेत कुल पांच यूनिट शामिल हैं. केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ तमाम ट्रेड यूनियन एक जुट हो गए है
और इसका विरोध कर यह आरोप लगा रहे है कि एक बार फिर केंद्र सरकार अपने चहेतो को बड़े पैमाने पर लाभ दिलाने की जुगत में है.
उनका आरोप है कि नवरत्न कंपनियों में से एक सेल को चांदी की थाली में परोस कर गिनेचुने उद्योगपतियों को सौंपा जा रहा है. जबकि इन औद्योगिक इकायों को आर्थिक सहायता दे कर लाभदायक बनाया जा सकता है, इससे रोजगार के नए अवसर भी नौजवानों को मिलेंगे.
ट्रेड यूनियन के मुताबिक हाल ही में सेल ने अपनी विभिन्न यूनिट में एक्सपेंशन और मॉर्डनाइजेशन कर लगभग 15 हजार करोड़ खर्च किया है, बावजूद इसके इन्हें बेचने के लिए टेंडर जारी कर दिए गए है. इनके मुताबिक यदि सेलम स्टील प्लांट में एक कैप्टिव पावर प्लांट लगा दिया जाए तो यह मुनाफे में आ जाएगा. अलॉय स्टील प्लांट के मॉर्डनाइजेशन में अभी 500 करोड़ की और जरुरत है, लेकिन केंद्र सरकार इस ओर ध्यान ना दे कर निजीकरण पर पूरा जोर लगा रही है.
ये वो टेंडर की कॉपी है, जो आम अखबारों में प्रकाशित ना हो कर सिर्फ बांबे स्टॉक एक्सचेंज में जाहिर कराया गया है. ट्रेड यूनियनों को सरकार की यही बात खली है. उनके मुताबिक अपनी आलोचना और पोल खुलने से बचने के लिए सरकार ने टेंडर जारी करने में भी पिछला दरवाजा खोला है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ इंटक, सीटू, एटक, HMS, एक्कू व सपात श्रमिक मंच इकठ्ठा हो गए है. संयुक्त ट्रेड यूनियन ने 20 जनवरी को संयुक्त कन्वेंशन भी बुलाया है, फिलहाल मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और बीजेपी ने ट्रेड यूनियनों के कदमों पर अपनी निगाह रखी हुई है, आने वाले दिनों में इस मामले के तूल पकड़ने के आसार हैं.
सुनील नामदेव