बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि स्वामी सहजानन्द सरस्वती के नाम पर भव्य स्मारक व शोध संस्थान बनना चाहिए. इसे बनाने के लिए उन्होंने सरकारी सहयोग देने की बात भी कही. वे 'स्वामी सहजानन्द सरस्वती से संबंधित ऐतिहासिक दस्तावेजों की पुनः वापसी समारोह' में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे.
स्वामी सहजानन्द सरस्वती (1889-1950) को भारत में किसान आंदोलन के जनक कहा जाता है. वे एक बुद्धिजीवी, लेखक, समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी, इतिहासकार एवं किसान-नेता थे. स्वामी सहजानन्द सरस्वती आदि शंकराचार्य सम्प्रदाय के दसनामी संन्यासी अखाड़े के दंडी संन्यासी थे. स्वामी जी ने 'हुंकार' नामक एक पत्र भी प्रकाशित किया.
50 और 60 के दशक में शोधकर्ता वाल्टर हाउजर द्वारा विदेश ले जाए गए स्वामी जी से संबंधित दस्तावेजों की पुनः वापसी पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सीताराम ट्रस्ट के सचिव डा. सत्यजीत सिंह व रिसर्चर कैलाश चन्द्र झा को धन्यवाद दिया और कहा कि इन दस्तावेजों का बेहतर संरक्षण व प्रदर्शन होना चाहिए. विगत सौ साल में बाबू कुंवर सिंह के बाद जो बड़ा नाम दिखाई पड़ता है वह स्वामी सहजानंद सरस्वती का ही है.
पटना में आयोजित इस समारोह में मोदी ने कहा कि बिहार राज्य अभिलेखागार निदेशालय द्वारा पांच खंड में ‘किसान आंदोलन इन द रिकार्ड ऑफ बिहार स्टेट अर्काइव’ का प्रकाशन किया गया है. आरा में स्वामी जी की भव्य मूर्ति लगने जा रही है.
बिहार में जिनकी जमीन है उनमें से अधिकांश खेती नहीं करते हैं. खेती करने वाले किसानों को जमीन के कागजात के अभाव में बैंक से ऋण व सरकारी योजनाओं का जितना लाभ मिलना चाहिए, वह मिल नहीं पाता है. बिहार सरकार ने अब गैररैयत किसानों से धान खरीदना व उन्हें भी डीजल अनुदान, फसल सहायता योजना का लाभ आदि देना शुरू किया है.
उन्होंने आगे कहा कि, बिहार व देश के लोग स्वामी जी के महत्व को उस समय नहीं समझ पाए, मगर एक विदेशी शोधकर्ता ने जब उसे दर्शाया तब लोगों का ध्यान गया. स्वामी जी के विचारों पर एक बार फिर अध्ययन व शोध करने की जरूरत है.
रोहित / सुजीत झा