इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक में आतंक और आतंकवादियों का बोलबाला रहा. हालांकि इसके लिए कोई एक आदमी जिम्मेदार नहीं था, लेकिन प्रमुख चेहरे के रूप में ओसामा बिन लादेन का नाम लिया जा सकता है. आतंक के ग्लोबल जिहाद ने न्यूयॉर्क से लेकर नई दिल्ली तक पर वार किया. तूफान तो पूरे दक्षिण एशिया में आया लेकिन उसकी जड़ें पाकिस्तान में थीं. इस तूफान की सबसे ज्यादा मार कोई झेलने वाला था तो वह था भारत.
21 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
दशक की शुरुआत सहस्त्राब्दी की ठीक पूर्व संध्या पर एक आतंकवादी हमले से हुई. पाकिस्तान स्थित संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने काठमांडो से नई दिल्ली आ रहे इंडियन एअरलाइंस के एक विमान का अपहरण कर लिया और उसे तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान के कंधार शहर ले गए. वहां एक बंधक की हत्या कर दी गई. पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने सही कहा है कि यह ऑपरेशन 9/11 की साजिश का पूर्वाभ्यास था क्योंकि इसमें कुछ वही किरदार शामिल थे जिन्होंने दूसरी आतंकी साजिशें रचीं.
ये थे पाकिस्तान में रह रहे आतंकवादी, अल क़ायदा, अफगानी तालिबान और आइएसआइ. असल में इस वारदात को अल क़ायदा की सहस्त्राब्दी की सबसे बड़ी साजिश का हिस्सा बनाया जाना था. इसके तहत लॉस एंजिलिस, अम्मान और अदन पर भी हमला किया जाना था. लेकिन केवल भारत से संबंधित साजिश ही सिरे चढ़ पाई. साजिशकर्ताओं की योजना नई सहस्त्राब्दी में बस प्रवेश करते ही विमान को उड़ा देने की थी. लेकिन और जानें जातीं, इससे पहले ही जसवंत सिंह ने समझौता वार्ता के जरिए बाकी बंधकों को छुड़वा लिया.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
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अल क़ायदा ने 11 सितंबर, 2001 को जब चार विमानों का अपहरण करके वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हमला किया और अमेरिकी संसद भवन पर हमले की कोशिश की तो पूरी दुनिया का जैसे नक्शा ही बदल गया. एक पाकिस्तानी खालिद शेख मोहम्मद और बिन लादेन की 9/11 की इस साजिश के नतीजे में दो लड़ाइयां आईं: पहली, अफगानिस्तान में तालिबान के इस्लामिक नियंत्रण के खात्मे के तौर पर और दूसरी, आतंक के खिलाफ एक विश्वव्यापी जंग.
एक ऐसा वक्त आया जब आतंकवादी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे. उन्हें जरा भी आभास नहीं था कि अमेरिका अफगानिस्तान में इतनी तत्परता से कार्रवाई करेगा. उन्होंने इस तथ्य की अनदेखी कर दी थी कि तालिबान ज्यादातर अफगान आबादी में कितने बदनाम हो चुके हैं. साथ ही आतंकवादियों ने इस बात पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ तालिबान के उद्देश्यों के कट्टर समर्थक हैं. लेकिन पाकिस्तान ने कुछ समय के लिए अफगानी तालिबान के साथ अपने संबंधों को तोड़ दिया और विशेषज्ञ सैनिकों, तेल और वॉलंटियरों की सहायता बंद कर दी. काबुल में नॉर्दर्न एलांयस धड़धड़ाते हुए घुस गया और बिन लादेन और उसका गिरोह अलग-थलग पड़ता दिखा.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
लेकिन आतंकवादी बच गए. इसकी दो वजहें थीं. पहली, अमेरिकी हथौड़े का वार उन पर ठीक से हो नहीं पाया. राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर इराक का जुनून सवार था, भले ही 9/11 की साजिश में सद्दाम हुसैन का कोई सबूत न मिला हो. इराक पर हमले की तैयारी के सिलसिले में बुश ने अमेरिका के सबसे काबिल जासूसों और जनरलों को वहीं भेज दिया.
दूसरे, आतंकवादियों ने 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हमला कर दिया. यह पाकिस्तान के दो आतंकवादी संगठनों का साझा काम था जिनके अल क़ायदा, लश्कर-ए-तय्यबा (एलईटी) और जैशे-मुहम्मद से करीबी संबंध थे. उनकी मंशा तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी को मारने और शायद युद्ध भड़काने की थी. भारत ने पाकिस्तान को आतंकी सरगनाओं को शरण देने और सहायता मुहैया कराने का दोषी ठहराया.
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
इस हादसे के बाद दुनिया लामबंद हो गई और पाकिस्तान भी उसकी हां में हां मिलाने लगा लेकिन उसने डूरंड रेखा पर अल क़ायदा के भागते हुए आतंकवादियों को पकड़ने की कभी कोशिश नहीं की. संसद पर हमले से सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ? आतंकवादियों को, जो पाकिस्तान में छिपने और वहां से अपनी गतिविधियां चलाने की कोशिश कर रहे थे. इस नवंबर में, अल क़ायदा के नए सरगना अयमन अल-जवाहिरी ने खुले आम कहा कि 2001 की अमेरिकी गलतियों के कारण ही बिन लादेन और अल क़ायदा एक दशक तक जिंदा रह सके.
सन 2001 के बाद के वर्षों में, अल क़ायदा और उसके सहयोगी संगठनों ने दुनियाभर में हमले किए. ऑस्ट्रेलियाइयों को बाली में, इज्राएलियों को मोंबासा में, स्पेनवासियों को मैड्रिड में, मोरक्कनों को कैसाब्लांका में और अन्य को दूसरी जगहों पर निशाना बनाया गया. कई हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़े थे. मिसाल के तौर पर, 7 जुलाई, 2005 को लंदन में हुए हमले को उन ब्रिटिश जिहादियों ने अंजाम दिया था, जिन्हें पाकिस्तान में प्रशिक्षित किया गया था और जो अल क़ायदा से जुड़े हुए थे. उनकी शहादत के वीडियो बिन लादेन के डिप्टी जवाहिरी की कमेंटरी के साथ अल क़ायदा के प्रोपेगैंडा टेप पर दिखाए गए थे.
बिन लादेन अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पांच सालों तक भटकता रहा. 2004 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पूर्व संध्या पर उसने एक वीडियो संदेश के जरिए अमेरिकियों को चेतावनी दी कि अभी और ज्यादा हमले किए जाएंगे. फिर, 2006 में वह इस्लामाबाद से कोई 30 मील दूर ऐबटाबाद छावनी शहर में सावधानी से बनाए गए एक घर में छिप गया. उसका कंपाउंड काकुल मिलिट्री अकादमी से एक मील से भी कम दूरी पर था. अगले पांच साल, बिन लादेन दुनिया भर में अल क़ायदा की गतिविधियां पाकिस्तानी फौज की मदद से चलाता रहा.
सन 2006 तक, इराक और अफगानिस्तान की लड़ाइयां बड़ी अजीबो-गरीब स्थिति में पहुंच गईं. अल क़ायदा ने अरब मुल्कों से अपने जेहादियों को इराक भेज दिया, बगदाद में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय को उड़ा दिया और उस मुल्क को शिया-सुन्नियों के बीच गृह युद्ध का अखाड़ा बना डाला. उधर, अफगानिस्तान में आइएसआइ ने तालिबान को फिर समर्थन देना शुरू कर दिया और उसके नेताओं को क्वेटा में और लड़ाकों को सरहद पर शरण मुहैया कराने लगी. तालिबान की मदद करने के लिए अल क़ायदा आत्मघाती बमबारी जैसी नई तरकीबें भी अपनाने लगा. अमेरिका को जो लड़ाई 2002 में आसानी से जीत लेनी चाहिए थी, वह 2006 में विनाश की तरफ बढ़ने लगी थी. बुश ने अफगानिस्तान को अधर में छोड़ इराक में पूरी ताकत झेंक दी थी.
9 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडेअल क़ायदा 9/11 के बाद अगस्त 2006 में अपनी सबसे व्यापक और विनाशकारी साजिश को अंजाम देने वाला था. लेकिन ब्रिटिश सुरक्षा सेवाओं ने इस साजिश को नाकाम कर दिया. दरअसल, अल क़ायदा ने पाकिस्तानी मूल के एक दर्जन से अधिक ब्रिटिश नागरिकों को हीथ्रो से कनाडा और अमेरिका के छह हवाई अड्डों के लिए उड़ने वाले विमानों में घातक विस्फोटक रखने और उत्तर अटलांटिक महासागर के ऊपर उन्हें एक साथ उड़ाने का प्रशिक्षण दिया था. यह साजिश 9/11 की पांचवीं वर्षगांठ मनाने, आसमान में नरसंहार करने और दुनिया भर के हवाई यातायात कारोबार को तहस-नहस करने के इरादे से रची गई थी. बिन लादेन ऐबटाबाद स्थित अपनी मांद से पूरी योजना पर नजर रखे हुए था. मुख्य साजिशकर्ता, बर्मिंघम में जन्मे ब्रिटिश-पाकिस्तानी नागरिक राशिद रऊफ को पाकिस्तान के बहावलपुर में गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन वह साल भर बाद जेल से 'फरार' हो गया.
वर्ष 2007 में, आतंक ने खुद अपने ही घर पाकिस्तान को शिकार बनाया. जिहादियों की कट्टर विरोधी पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो छह साल के निर्वासन के बाद अक्तूबर में स्वदेश लौटीं. कराची हवाई अड्डे पर उतरकर जब वे सीधे एक रैली में भाग लेने के लिए जा रही थीं तो उन पर बम से हमला कर दिया गया. दो महीने बाद, आतंकवादियों ने रावलपिंडी में उनकी हत्या कर अपना अधूरा काम पूरा किया. अल क़ायदा ने इस हत्या की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली. मौका-ए-वारदात से फॉरेंसिक सबूत लिए जाते, उससे पहले ही पाकिस्तानी पुलिस ने उस जगह को धो-पोंछ कर रख दिया. परवेज मुशर्रफ की सरकार भी आखिरकार गिर गई.
9/11 के अलावा, दशक का सबसे भयावह आतंकवादी हमला बेनजीर भुट्टो की हत्या के साल भर से भी कम समय के भीतर हुआ. लश्कर-ए-तय्यबा के 10 आतंकवादियों ने 26/11 को मुंबई पर हमला कर दिया. भारत की वित्तीय राजधानी पर यह कोई पहला और सबसे घातक हमला नहीं था. इसे 1993 और 2006 में भी निशाना बनाया गया था. लेकिन इस बार आतंक का उन्माद चार दिनों तक बना रहा. पूरी दुनिया ने इसे टेलीविजन पर लाइव देखा. निशाने पर वैश्विक जिहाद के लक्ष्य ही थेः भारतीय, अमेरिकी और पश्चिमी नागरिक, यहूदी और इज्राएली. इस साजिश को वर्षों तक बहुत सावधानी से रचा गया था. पाकिस्तानी मूल के एक अमेरिकी डेविड हेडली ने मुंबई की पांच बार यात्रा करने के बाद लश्कर-ए-तय्यबा के आतंकवादियों के लिए रास्ता तैयार किया था. वह लाहौर और कराची में बैठे लश्कर-ए-तय्यबा के नेताओं को निशाने का विस्तृत ब्योरा भी भेजता रहा.
19 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
12 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
5 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
हेडली अल क़ायदा और आइएसआइ के लिए भी काम कर रहा था. जब वह कोपेनहेगन, डेनमार्क में एक अन्य योजनाबद्ध आतंकवादी हमले को अंजाम देने जा रहा था तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उसने एक अमेरिकी कोर्ट में सब कुछ स्वीकार कर लिया. कोपेनहेगेन पर हमला वैश्विक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान होना था. उस सम्मेलन में दुनियाभर के नेता भाग लेने वाले थे.
सन 2009 में क्रिसमस के दिन आतंक उत्तरी अमेरिका में फिर आ पहुंचा. एक नाइजीरियाई जिहादी ने एम्स्टरडैम से डिट्रायट जाने वाले एक विमान को उस समय उड़ाने की कोशिश की जब वह ओंटारिओ में उतरा. लेकिन सतर्क यात्रियों ने हमले को विफल कर दिया. बिन लादेन ने ऐबटाबाद में टेप किए हुए अपने एक संदेश में इसका श्रेय लेते हुए कहा कि जब तक अमेरिका इज्राएल का समर्थन करेगा, हमले जारी रहेंगे. अल क़ायदा की न्यूयॉर्क सिटी मेट्रो और शिकागो के ऊपर कार्गो जेट्स को उड़ाने की कोशिश भी नाकाम कर दी गई. एक पाकिस्तानी ने टाइम्स स्कवायर में एक कार में बम रख दिया लेकिन वह फटा नहीं. एक सतर्क हॉट डॉग वेंडर ने पुलिस को इसकी सूचना दे दी. राष्ट्रपति बराक ओबामा और सभी अमेरिकावासी भाग्यशाली रहे.
आखिरकार 2 मई 2011 को बिन लादेन की किस्मत रूठ गई. सीआइए ने 2010 के उत्तरार्ध में मानव इतिहास के मोस्ट वांटेड शख्स को खोज निकाला. ओबामा को पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ पर विश्वास नहीं था. इसलिए, उन्होंने बिन लादेन को खत्म करने के लिए अमेरिकी कमांडो भेजे. पाकिस्तानी नागरिक भौचक थे. कइयों का मानना था कि आइसीआइ की मदद से बिन लादेन का ठिकाना ढूंढा गया. लेकिन सेना ने दावा किया कि उसे इस बारे में कुछ नहीं मालूम था. परिसर में पाए गए फोन नंबरों से पता चला कि बिन लादेन आतंक के दशक की शुरुआत करने वाले हरकत-उल-मुजाहिदीन के संपर्क में था. इस आतंकवादी संगठन के नेता इस्लामाबाद में खुले आम घूमते थे जिन्हें आइएसआइ ने संरक्षण दिया हुआ था.
लेकिन यह उम्मीद करना बेकार है कि बिन लादेन के मारे जाने से आतंकवादियों का जिहाद खत्म हो जाएगा. लश्कर-ए-तय्यबा के हाफिज सईद और अफगानी तालिबान के मुल्ला उमर ने बिन लादेन की मौत पर खुले आम शोक मनाया. ये दोनों जिंदा हैं और लाहौर और क्वेटा से अपने कामकाज को अंजाम दे रहे हैं. दुनिया के किसी भी देश की तुलना में पाकिस्तान में अधिक आतंकवादी हैं, जिनका मुख्य निशाना भारत है.
28 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
21 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
7 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
मार्च 2000 में भारत की यात्रा करने के बाद, राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने एक दिन इस्लामाबाद में बिताया था. उन्होंने मुशर्रफ को चेतावनी दी थी कि अगर पाकिस्तान ने आतंकवादियों को शरण देना बंद नहीं किया तो एक दिन आतंक उसे ही अपना शिकार बना लेगा. एक दशक बाद, आतंकवादियों के हाथों भुट्टो सहित 35,000 पाकिस्तानी मारे जा चुके हैं. इसके बावजूद वहां आतंकवादियों के गढ़ बने हुए हैं. सेना जान-बूझकर उनकी तरफ से आंखें मूंदे हुए है.
आतंकवादियों के कई लक्ष्य और कई एजेंडे हैं. उनका एक उद्देश्य भारत को पाकिस्तान के साथ लड़ने के लिए उकसाना भी है. इसीलिए, उन्होंने 2001 में संसद पर हमला और 2008 में मुंबई में नरसंहार किया. लेकिन भारत के दोनों प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह इस उकसावे में नहीं आए. उनका मानना था कि लड़ाई एक जाल है, आतंकवाद का समाधान नहीं. भारत को सतर्क रहने की जरूरत है. आतंकवादियों का दशक भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन वे अब भी घातक बने हुए हैं.
सीआइए के पूर्व विश्लेषक ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट के विदेश नीति विभाग में सीनियर फेलो हैं
ब्रूस रीडल