फिर आए पेट्रोल कार के दिन

देश में डीजल सब्सिडी के खत्म होने से पेट्रोल कारों की चांदी. जानिए किस तरह पेट्रोल कार अब किफायती साबित होने वाले हैं.

Advertisement

योगेंद्र प्रताप

  • नई दिल्ली,
  • 03 नवंबर 2014,
  • अपडेटेड 11:55 AM IST

इस वर्ष की शुरुआत में सत्ता पर काबिज हुई सरकार का डीजल पर सब्सिडी खत्म करने का साहसी फैसला क्या बाजार के समीकरण को बदल देगा? पिछले चंद वर्षों के दौरान भारतीय कार बाजार डीजल वाली कारों के पक्ष में झुका रहा है. क्या कारों के बारे में आपकी पसंद पर कोई असर पडऩे वाला है? 

पिछले कई वर्षों से डीजल इंजन वाली कार खरीदना होशियारी भरा फैसला रहा है. इतना ही नहीं, होंडा कार्स इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियों ने अपने बेड़े में डीजल कारों को शामिल कर के जमकर मुनाफा बटोरा है. एंट्री लेवल की गाडिय़ों को छोड़कर अधिकतर श्रेणियों में यह दिखा कि अगर किसी मॉडल का डीजल संस्करण भी है तो  वह करीब 80 फीसदी बिक्री पर काबिज रहा. सरकार के डीजल की कीमत को नियंत्रित रखने की वजह से बाजार में इस तरह के असामान्य हालात पैदा हुए.

लेकिन डीजल पर सरकारी सब्सिडी खत्म होने के कारण बहुत जल्दी सब बदल जाने वाला है. करीब दो साल पहले पेट्रोल और डीजल की कीमत में प्रति लीटर अंतर 30 रु. था. आज यह फर्क केवल 10 रु. है, जबकि हकीकत यह है कि कच्चे तेल को शोधित करके डीजल तैयार करना पेट्रोल के मुकाबले कहीं अधिक खर्चीला है. आने वाले महीनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें एक दूसरे के और करीब आ जाएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. अगर विकसित देशों के अनुभवों की बात करें तो संभव है कि आगे चलकर डीजल की तुलना में पेट्रोल की कीमत कम हो जाए.

ऐसे हालात में भी क्या डीजल की कार खरीदना बुद्धिमत्ता का काम है? यह सही है कि पेट्रोल इंजन के मुकाबले डीजल इंजन स्वाभाविक रूप से ज्यादा माइलेज देते हैं, लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि डीजल इंजन बनाने में अधिक खर्च आता है. यही नहीं, इसका रखरखाव भी अधिक खर्चीला है. डीजल कारों के शुरुआती मॉडल में भी ज्यादा टॉर्क के कारण ड्राइविंग का एक अलग मजा मिल जाता है, जबकि यही खूबी पेट्रोल के टॉप एंड मॉडल में मिलती है. फिर भी, कम-से-कम अपने देश में, जीत उसी की होगी जो कम खर्चीला हो.

अपनी बात को बेहतर तरीके से समझने के लिए मैं अलग-अलग सेगमेंट की तीन कारों का उदाहरण दूंगा. फोक्सवैगन पोलो और होंडा मोबिलियो में सामान्य पेट्रोल इंजन है जबकि स्कोडा ऑक्टेविया में डायरेक्ट इंजेक्शन टर्बो चाज्र्ड पेट्रोल इंजन है. इन पेट्रोल इंजन को बनाने में डीजल इंजन जितना ही खर्च आता है और ये ड्राइविंग के दौरान पेट्रोल और डीजल इंजन, दोनों का मजा देते हैं. इनमें आउटपुट ज्यादा होता है, लिहाजा बड़ी कारों में भी कम क्षमता के इंजन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

तेल की मौजूदा कीमतों के आधार पर बात करें तो अगर कोई हर माह कम-से-कम 3,000 किमी की दूरी तय करता है तो वह डीजल और पेट्रोल पोलो में से इन्हें चुन सकता है. करीब 2,000 किमी प्रति माह कार चलाने वालों के लिए डीजल मोबिलियो और करीब 5,000 किमी प्रति माह चलाने वालों के लिए पेट्रोल की बजाए डीजल ऑक्टेविया बेहतर होगा.

अगर दोनों ईंधनों की कीमतें एक समान हो जाएं, जिसकी संभावना अगले साल दिख रही है, तो पूरा पैसा वसूलने के लिहाज से अपेक्षित माइलेज और अधिक हो जाएगा. पोलो के लिए करीब 4,500 किमी, मोबिलो के लिए 2,500 किमी और ऑक्टेविया डीजल के लिए 7,000 किमी से भी अधिक.

ये आंकड़े लीगल रिक्वायरमेंट्स के मद्देनजर मैन्यूफैक्चरर्स की ओर से घोषित फ्यूल इकोनॉमी फीगर्स से लिए गए हैं. कारों के इस्तेमाल के तौर-तरीकों से आंकड़ों में अंतर दिख सकता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement