अरुण पुरी
इंडिया टुडे की 'ऊंचे और असरदार' लोगों की सूची एक सालाना परिपाटी है जो महज प्रभावशाली लोगों का सूचीपत्र होने से कहीं बड़ा मकसद पूरा करती है. मूलत: तो यह उपक्रम ताकत, लचीलेपन और रसूख के लगातार विकसित होते नैरेटिव को सामने लाता है. इसमें हमारे दौर की चेतना की भी झलक मिलती है. साल-दर-साल यह सूची उन लोगों का लेखा और हिसाब लेती रही है, जो अपने कामकाज से हमारी निजी और पेशेवर जिंदगियों पर असर छोड़ते आए हैं—न केवल अपनी दौलत और ओहदों के जरिए बल्कि अपने दायरे से बाहर के लोगों को प्रभावित करने की काबिलियत के जरिए भी. यह सूची बदलाव लाने में सक्षम सबसे ताकतवर लोगों के आइने से मुल्क की नब्ज को पकड़ती है.
बीस साल पहले इस उपक्रम की शुरुआत समाज और अर्थव्यवस्था को गति देने वालों की पहचान करने और उन्हें समझने की जरूरत के मद्देनजर की गई थी. बीच के वर्षों में इसके मानक और इसकी बनावट-बुनावट बुनियादी तौर पर बदलती गई, जिससे कि दुनिया के बदलते लैंडस्केप की झलक मिलती है. यह भारत के सत्ता समीकरणों का कोई ठहरा हुआ आईना बिल्कुल नहीं, बल्कि एक धड़कता हुआ और वक्त के साथ ढलता सूचकांक है, जो हमारे समाज और अर्थव्यवस्था के सतत प्रवाह को रेखांकित करता है.
सत्ता में कितना लोच होता है और किस तरह यह बदलती-विकसित होती रहती है, इंडिया टुडे की ऊंचे और असरदार लोगों की सालाना सूची से साफ है, जिसका कि इस साल यह 20वां संस्करण है.
दो दशक पहले अंबानी बंधु हमारी पहली ही रैंकिंग में साझा रूप से शीर्ष पर थे. इस साल एक भाई लगातार छठे साल शीर्ष पर है जबकि दूसरे ने ब्रिटेन में खुद के दिवालिया होने का ऐलान कर दिया है. कुमारमंगलम बिरला दूसरे पायदान पर वापस आ गए हैं. गुजरे साल उन्होंने अपने शक्तिशाली साम्राज्य को न केवल मजबूत बनाया बल्कि अपने पारंपरिक कारोबारों से आगे जाकर उसका नए अंदाज में विस्तार किया और विदेशी जमीन पर अपना दायरा और फैला लिया. गौतम अदाणी अलबत्ता कुछ पायदान नीचे आ गए, जो हिंडनबर्ग की नुक्सान पहुंचाने वाली रिपोर्ट आने के बाद उनके परेशानियों से घिरे दौर से गुजरने का नतीजा है.
दूसरी तरफ एक लेखक, एक फिल्म निर्देशक, एक राजनेता या न्यू एज गुरु ने बिल्कुल अलहदा तरीकों से अपनी ताकत का मुजाहिरा किया है. वैसे तो घास की धार चट्टान को भी चीर दे. पर मायने इस बात के हैं कि ऐसे लोग इस प्रक्रिया में घटनाओं की दिशा कैसे मोड़ते हैं, कुछ इस अंदाज में कि वह समूचे परिवेश से जुड़ जाए. आखिरकार हम एक अलहदा पैमाने से भारत के क्रमिक विकास की नाप-जोख कर रहे हैं.
इस साल इस सूची में 14 नए नाम हैं. कुछ पुराने नाम कुछेक पायदान इधर-उधर खिसके हैं. एस.एस. राजमौलि नए दाखिलों में से हैं. उनकी आरआरआर ने देश में अपने भाषाई दायरों से परे दूर तक का सफर तय किया और एकेडमी अवार्ड के लिए ठेठ लॉस एंजेलिस तक पहुंच गई. इसने जो हासिल किया वह महज कामयाबी न थी, बल्कि इसने बॉलीवुड से परे भारतीय सिनेमा और मनोरंजन का एक नया केंद्र गढ़ डाला. आशय यह नहीं कि बॉलीवुड की अनदेखी की जा सकती है. फिर तो आप शाहरुख खान और आदित्य चोपड़ा की मौजूदगी का क्या तर्क देंगे? वजह साफ है—पठान नाम की फिल्म. यहां हम फिल्म को न उसके गुण-दोष और न ही उसकी कमाई रकम के बूते तौल रहे हैं.
लचीलापन. कई तरह के झंझावातों में खड़े रह पाना. नेताओं, अफसरों और वैश्विक भारतीयों की हमारी सूची में भी ये खूबियां साफ नजर आएंगी. बात सिर्फ तनकर खड़े रहने की नहीं. इसका आशय कैसे भी हालात में खुद को मानसिक तौर पर चुस्त और चौकन्ना रखने से भी है. इसी खूबी की बदौलत नरेंद्र मोदी नेताओं की सूची में शीर्ष पर हैं: यूक्रेन युद्ध पर उन्होंने अपवाद की तरह एक अनूठे किस्म का रुख अख्तियार किया, जिससे भारत की भी साख बढ़ी और उनकी भी. अमेरिका के साथ भारत की रणनीतिक सुरक्षा भागीदारी को उन्होंने इस तरह गढ़ा जिससे भारत रूस के साथ अपने पुराने रिश्तों को बनाए रख पा रहा है जबकि जी20 के अध्यक्ष के तौर पर अंतरराष्ट्रीय बहसों की अगुआई भी कर रहा है. और देश में मोदी कभी न थकने वाली ऐसी शख्सियत बने हुए हैं, जो अपने साहस और निपुणता के बल पर सियासी लैंडस्केप पर पूरी तरह छाए हैं.
नेताओं की फेहरिस्त में भाजपा का दबदबा है, जो पूरे देश में उसके असर को ही दिखाता है, जहां अमित शाह और योगी आदित्यनाथ का अपने-अपने क्षेत्रों में बोलबाला है. विपक्ष ने भी थोड़ा दम दिखाया है. राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस में नई जान फूंककर और कर्नाटक की जीत के साथ अपनी पार्टी के एक किस्म के उद्धार में मदद करके पराजयवाद पर फतह हासिल की. एक नए नाम ने राजकीय सूची का मान बढ़ाया—संविधान की लौ के रक्षक न्यायमूर्ति डी.वाइ. चंद्रचूड़. वैश्विक भारतीयों में ऋषि सुनक ने 10 डाउनिंग स्ट्रीट की अपनी अद्भुत छलांग से बाजी मारी.
कलगी के कुछेक बिखरे और कुछ नए पंखों को छोड़ दें, तो पावरनामा 2023 का झुकाव उथल-पुथल के बजाए स्थिरता की तरफ है. अगले साल इस समय निरंतरता और बदलाव का सवाल बेशक नए सिरे से सुलझ चुका होगा.
नोट: इस साल हमने फोटो-पोर्ट्रेट की जगह कैरिकेचर का इस्तेमाल किया है. उम्मीद है कि रसूखदार लोग आर्टिस्ट को क्रिएटिविटी की कुछ आजादी देकर उनकी कृतियों का आनंद उठाएंगे.
aajtak.in