प्रधान संपादक की कलम से

भारत में पारंपरिक रूप से लिया जाने वाला हल्का नशीला पदार्थ गांजा 1985 में एनडीपीएस कानून बनाए जाते वक्त अमेरिका के दबाव में आधुनिक दुनिया के तमाम ज्यादा नशीले कृत्रिम मादक पदार्थों की श्रेणी में रख दिया गया.

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31 दिसंबर, 1988 31 दिसंबर, 1988

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 जून 2022,
  • अपडेटेड 12:49 PM IST

अरुण पुरी

पंजाबी गायक 28 वर्षीय शुभदीप सिंह उर्फ सिद्धू मूसेवाला की 29 मई को हुई जघन्य हत्या ने पंजाब में एक बार फिर गैंगवार की ओर ध्यान खींचा है. राज्य में नई बनी आम आदमी पार्टी की सरकार ने एक दिन पहले ही मूसेवाला समेत 400 से ज्यादा रसूख वाले लोगों की सिक्योरिटी वापस ली थी. हत्या के तुरंत बाद ही दावों और धमकियों का सिलसिला-सा चल पड़ा.

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कनाडा में बैठे गैंगस्टर गोल्डी बराड़ ने इस कत्ल का जिम्मा लिया तो आर्मेनिया में रह रहे गैंगस्टर गौरव पटियाल उर्फ लकी ने इसका बदला लेने की हुंकार भरी. यह सब कुछ सोशल मीडिया पर चल रहा था. यह पंजाब में गिरोहों के काम करने का एक ढर्रा है. अपराध करना और फिर सोशल मीडिया पर शेखी बघारना. बराड़ के आका लॉरेंस बिश्नोई जैसे जेल में बैठे सरगना का सोशल मीडिया पेज अपडेट बाहर बैठे उनके गुर्गे करते हैं.

दरअसल पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के दौरान जब विकी ग्राउंडर, प्रेमा लाहोरिया और जयपाल समेत आठ गैंगस्टरों को मुठभेड़ में मार गिराया गया तो उसके बाद कई गैंगस्टर्स ने राज्य से हटाकर अपना अड्डा कनाडा, आर्मेनिया, दुबई और पाकिस्तान जैसे उनके लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित ठिकानों पर जमा लिया.

पर यह भी सच है कि पुलिस भले उन्हें पकड़कर या मुठभेड़ों के जरिए खत्म करने में लगी हो, साथ-साथ नए अपराधी गैंग भी राज्य में पनपते आ रहे हैं. बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि ये नए गैंगस्टर कहीं ज्यादा खौफनाक हैं. न सिर्फ उनका नेटवर्क गहरा है बल्कि उनमें अपराध की भूख भी कहीं ज्यादा है.

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ये गैंगस्टर हत्या, डकैती, अवैध वसूली जैसे पारंपरिक अपराधों के साथ ही दुनिया के कई हिस्सों में बैठे खालिस्तानी उग्रवादियों और नशे के सरगनाओं को गुर्गे मुहैया करते हैं. यानी एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा. और मूसेवाला की हत्या के बाद जब उसके आसपास की दूसरी घटनाओं के तार जोड़े गए तो उसने पंजाबी संगीत और फिल्मों के बिजनेस को लेकर छिड़े गैंगवार की परतें खोल दीं.

विशेषज्ञों की राय में, यह सब इसलिए होता है क्योंकि गाने वायरल होने पर अच्छी कमाई का रास्ता खोलते हैं. ऐसे में ये गैंगस्टर उभरते गायकों को अपने असर में खींचने के अलावा प्रोड्यूसर, कंपोजर, ऐक्टर भी वही तय करने लगते हैं. मूसेवाला की हत्या इसी तरह की वसूली के इरादे से अंजाम दी गई बताई जाती है.

पंजाब में बीते सालों में बंदूक की संस्कृति, जाट मर्दवाद और गिरोहों को रॉबिनहुडों या स्टाइल आइकन की तरह वैधता देने वाली फिल्मों और गानों की बाढ़-सी आई है. यह बाजार यूरोप, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के प्रवासियों के बीच भी फैला है. वहां इन गानों को लेकर यहां जैसी ही दीवानगी है.

और हर तरह के अपराध से निबटने के लिए जब पुलिस की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि राज्य में 4.25 लाख से ज्यादा लाइसेंसशुदा हथियारों के मुकाबले पुलिस के पास 1.25 लाख से भी कम हथियार हैं. मूसेवाला ने जिस गाने से गीतकार के रूप में पदार्पण किया, उसकी एक मशहूर पंक्ति है—दर्हदनिया हिक्का ओह लाइसेंस नहिओ लेहंदे—जिसका बोलचाल की भाषा में अर्थ है कि जिन्हें प्रतिद्वंद्वियों की छाती में छेद करना है, वे लाइसेंस का मुंह नहीं ताकते. पड़ोसी मुल्क ने भी ऐसे हालात का फायदा उठाते हुए सरहदी इलाकों से ड्रोन के जरिए हथियार और गोला-बारूद के साथ नशीले पदार्थ की खेपें पहुंचाई हैं.

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इसी सब को देखकर अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को हाल ही में एक बयान में कहना पड़ा कि हरेक सिख को अपने पास लाइसेंसशुदा हथियार रखने की कोशिश करनी चाहिए, ''क्योंकि जो वन्न्त आ रहा है और जो हालात हावी होने वाले हैं, उनका यही तकाजा है.’’

इस बयान के लिए उनकी आलोचना हुई पर इससे राज्य की मानसिकता और कानून-व्यवस्था की स्थिति का पता तो चलता ही है. पंजाब में गैंगवार पर इस अंक की आवरण कथा 'गैंग्स ऑफ पंजाब’ सीनियर एडिटर अनिलेश महाजन और असिस्टेंट एडिटर मनीष दीक्षित ने मिलकर लिखी है.

इस अंक की दूसरी बड़ी स्टोरी है आर्यन खान के मादक द्रव्य प्रकरण की है. नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के मुंबई जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े की अगुआई में 2 अक्तूबर, 2021 को लग्जरी क्रूज कॉर्डेलिया पर सनसनीखेज छापे में गिरफ्तार 20 लोगों में अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन भी थे. एनसीबी के जांचकर्ताओं ने दावा किया कि यह मौज-मस्ती करने वालों का जमावड़ा भर नहीं था.

उनकी राय में उन्होंने जितनी मात्रा में नशीले पदार्थ जब्त किए, वे अंतरराष्ट्रीय ड्रग सिंडीकेट से रिश्तों की तरफ इशारा करते थे. नौ महीने बाद मामला न सिर्फ औंधे मुंह गिरा बल्कि तकरीबन पूरा ही उलट गया. उस वक्त एनसीबी के जोनल निदेशालय के प्रमुख वानखेड़े बेहूदा ढंग से की गई जांच के खलनायक और आर्यन उसके निर्दोष शिकार ज्यादा नजर आते हैं. 

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इस अंतर्कथा का ताना-बाना बुनने वाले ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा मामले में कानून की एक ज्यादा बड़ी थीम की चर्चा कर रहे हैं कि इस अन्यायपूर्ण प्रसंग की आखिरकार कुछ मुक्तिदायक अहमियत साबित हो सकती है. कुल लब्बोलुबाब यह कि इसमें तीन सबक निहित हैं जो मिलकर भारत को अपने नार्कोटिक्स कानूनों के बारे में ज्यादा संतुलित, समझदार और सुस्पष्ट नजरिया अपनाने की तरफ ले जा सकते हैं.

भारत में पारंपरिक रूप से लिया जाने वाला हल्का नशीला पदार्थ गांजा 1985 में एनडीपीएस कानून बनाए जाते वक्त अमेरिका के दबाव में आधुनिक दुनिया के तमाम ज्यादा नशीले कृत्रिम मादक पदार्थों की श्रेणी में रख दिया गया.

ऐसे वक्त जब दुनिया के कई हिस्से इस सीधी-सपाट गलती को पहचानकर इसके सेवन को गैर-आपराधिक बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं, भारत इस मौके का इस्तेमाल ऐसे संशोधन की दिशा में बढ़ने के लिए कर सकता है जो ज्यादा सार्थक और संतुलित नजरिए की इजाजत दे. निश्चित अर्थ में कहें तो जांच की बहुत सारी ऊर्जा नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले को पकड़ने और दंडित करने पर खर्च करना छड़ी को गलत सिरे से पकड़ने की तरह है.

भारत अब नशीले पदार्थों की खपत और ट्रांजिट का बड़ा देश है. ड्रग की अवैध बिक्री और सेवन के लिए हर साल तकरीबन 70,000 लोग गिरफ्तार किए जाते हैं और हजारों जेल में सड़ते हैं क्योंकि उनके पास वैसे कानूनी संसाधन नहीं होते जैसे आर्यन जुटा सके.

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आर्यन खान का मामला आगाह करने वाली कहानी है—अतिउत्साही जांच अधिकारियों की कहानी, जिनकी सुर्खियों में आने की ललक उनकी पेशेवर मशक्कत और ईमानदारी को पीछे छोड़ देती है. आर्यन के 26 दिन जेल में बिताने का एक गैरइरादतन नतीजा शायद यह हो सकता है कि बेरहम एनडीपीएस कानून की उसी तरह समीक्षा की जाए जैसे मोदी सरकार कई दूसरे कानूनों की कर रही है.

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