अरुण पुरी
दो हफ्तों में तोक्यो में ओलंपिक खेल होने वाले हैं. हो सकता है ये कोविड-19 महामारी से दुनिया भर के लोगों की जिंदगी को कुम्हला देने वाली मुसीबतों की सबसे अच्छी काट हों. 11,090 एथलीटों को एक जगह जोड़ने वाले ये खेल मनुष्य की जिजीविषा को सलामी देते हैं, जिसने ठान लिया है कि चाहे जो हो जिंदगी चलती रहनी चाहिए. कोविड-मुक्त आयोजन कर पाना इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के लिए भारी चुनौती है.
दुनिया में अगर कोई देश मुस्कराते हुए यह कर सकता है, तो वह जापान है. यह अपने आत्म-अनुशासन और निपुण योजना के लिए जाना-माना जाता है. ये खेल एक दशक से भी ज्यादा वक्त से दुनिया भर के बेहतरीन से बेहतरीन खिलाडिय़ों के बीच खेलों की कई सारी विधाओं में श्रेष्ठतम प्रतिस्पर्धा और चुस्ती-फुरती की कसौटी रहे हैं.
तोक्यो ओलंपिक में 206 देशों के एथलीट आपसी मुकाबलों से तय करेंगे कि कौन वाकई 'ज्यादा तेज, ज्यादा ऊंचा और ज्यादा मजबूत’ (ओलंपिक के ध्येयवाक्य के शब्दों में) है. 125 साल के इतिहास में ये खेल केवल तीन बार दो विश्व युद्धों के दौरान रद्द हुए और केवल एक बार वक्त बदला गया—पिछले साल महामारी के चलते. एक तरह से यह बेहद अनूठा ओलंपिक होगा.
भारत के लिए बदकिस्मती से इन खेलों की हर विधा खेल राष्ट्र के तौर पर हमारी कमी की भी याद दिलाती है और यह अपने भीतर झांककर सवाल पूछने का वक्त होता है—1.3 अरब लोगों का देश अच्छी तादाद में पदक क्यों नहीं ला सकता? लेकिन यह घिसा-पिटा प्रश्न है. उत्तर हम जानते हैं—क्रिकेट के अलावा दूसरी खेल प्रतिभाओं में योजनाबद्ध ढंग से निवेश नहीं कर पाना. खेलों को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई संस्थाएं राजनैतिक आरामगाह, और उससे भी बदतर, भाई-भतीजावाद और षड्यंत्र के अड्डे बन गई हैं. नतीजा सामने है. भारत ने 24 ओलंपिक खेलों में मात्र 28 पदक जीते.
2008 के बीजिंग ओलंपिक में हम 51वीं पायदान पर थे. वह भी अभिनव बिंद्रा की बदौलत, जो निशानेबाजी में भारत का पहला और अब तक का अकेला व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण लेकर आए. तब से ओलंपिक की हरेक किस्त अपयश की ढलान रही है. लंदन 2012 में हमने अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और छह पदक जीते, लेकिन पदक तालिका में 55वीं पायदान पर थे.
रियो 2016 में महज दो पदक जीते और 67वीं पायदान पर थे—मात्र 32 लाख आबादी वाले मंगोलिया के साथ. यहां तक कि क्यूबा और क्रोएशिया भी, जो तकरीबन तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के आकार के हैं, पांच-पांच स्वर्ण के साथ शीर्ष 20 में थे.
सरकार ने 2016 से 18 राष्ट्रीय खेल फेडरेशन और ओलंपिक में पदकों की उम्मीद कर रहे 128 खिलाड़ियों को 1,169.65 करोड़ रुपए की मदद दी है. मगर ओलंपिक में भारत के पदकों की संख्या हर बार हमें याद दिलाती है कि ज्यादा उम्मीद न रखें. तब तक तो नहीं ही जब तक हम जमीनी स्तर पर खेलों में निवेश करना नहीं सीखते.
अलबत्ता इस साल उम्मीद की किरण है. भारत तोक्यो में 120 भारतीय एथलीट भेजेगा, जो अब तक का हमारा सबसे बड़ा प्रतिनिधिमंडल है. हम तलवारबाजी जैसे खेलों में पहली बार प्रतिभागियों को देख रहे हैं. पहली बार एक महिला नाविक नेत्रा कुमानन और एक महिला तैराक माना पटेल मुकाबले में उतरेंगी. दुनिया के बेहतरीन भाला फेंक एथलीटों में शुमार नीरज चोपड़ा सरीखे खिलाड़ियों के कंधों पर उन एक अरब से ज्यादा लोगों की उम्मीदों का भारी बोझ है जो अपने खिलाडिय़ों को कामयाब होता देखने के लिए लालायित हैं.
इस मुश्किल वक्त में हमारी खेल प्रतिभाओं की ओलंपिक यात्रा एथलेटिक भावना, उनके दमखम और लगन की फतह है. खेलों के हमारे खराब बुनियादी ढांचे और गैरमददगार सरकारी तंत्र के अलावा, महामारी के दौरान भारत के एथलीटों को किसी न किसी तरह अपनी ट्रेनिंग का जुगाड़ करना पड़ा. ओलंपिक में क्वालिफाइ करने के लिए भी दूरियां तय करनी होती हैं, समय को साधना पड़ता है और रैंकिंग हासिल करनी होती है. इस सबके लिए मुकाबलों में उतरना जरूरी है. बदकिस्मती से उनमें से ज्यादातर 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान रद्द हो गए.
कुश्ती और मुक्केबाजी सरीखे 'दो के मुकाबले वाले खेलों’ के खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए पार्टनर खोजने में मुश्किलें आईं. तलवारबाज भवानी देवी ने चेन्नै में अपने टेरेस पर प्रैक्टिस के लिए अपने किट बैग को ही डमी पार्टनर बना लिया.
एथलीटों को कोविड-19 से पैदा बेचैनी से लड़ने की परेशानी से भी बार-बार जूझना पड़ा. जब भारत विनाशकारी दूसरी लहर से जूझ रहा था, चोपड़ा पटियाला में ट्रेनिंग पर ध्यान केंद्रित करने की जद्दोजहद कर रहे थे. कई खुद वायरस की चपेट में आ गए. उनमें पिस्टल निशानेबाज राही सरनोबत और सौरभ चौधरी, कप्तान रानी रामपाल सहित महिला हॉकी खिलाड़ी, कुछ कोच और महिला मुक्केबाजी टीम का स्टाफ शामिल हैं.
अब कोविड-19 के डेल्टा वेरिएंट के डर के चलते कई भारतीय एथलीटों, कोचों और सपोर्ट स्टाफ को तीन दिन तक दूसरे देशों के एथलीटों के न संपर्क में आने दिया जाएगा और न उनके साथ प्रैक्टिस करने दिया जाएगा.
आखिरी पड़ाव पर लडखड़ा जाने की आशंका भी है. रियो ओलंपिक की रजत पदक विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. संधू ने हमसे कहा, ''उस पड़ाव पर पहुंचकर आप अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं. कभी-कभार यह आपका दिन नहीं भी हो सकता है.’’
जब वे दुनिया के सबसे प्रचंड प्रतिस्पर्धी अखाड़े में उतर रहे हैं, हम भारतीय एथलीटों के जज्बे का जश्न मना रहे हैं. हमारी आवरण कथा 'उम्मीद की किरण’ पदक जीतने के आशावान 11 खिलाड़ियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रही है. सीनियर एडिटर सुहानी सिंह ने हमारे ब्यूरो के इनपुट के साथ इसका तानाबाना बुना है.
हम उम्मीद करते हैं कि हमारे एथलीटों का अविश्वसनीय जज्बा हम सबको भी वैश्विक उत्कृष्टता की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा. काश यह वह वक्त हो जब भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक लीग में इस तरह दाखिल हों जैसे पहले कभी नहीं हुए.
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