विधानसभा चुनावों से बमुश्किल दो महीना पहले पुदुच्चेरी में कांग्रेस की सरकार ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. 22 फरवरी को मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने 30 सदस्यों वाली विधानसभा में विश्वास मत गंवा दिया. सत्ताधारी कांग्रेस-डीएमके गठबंधन के कुछ विधायकों के साथ छोड़ देने और भाजपा समर्थक तीन नामांकित विधायकों के कारण किस्मत ने उनका साथ छोड़ दिया. 2016 में कांग्रेस ने 15 सीटें और डीएमके ने तीन सीटें जीतकर साझा सरकार बनाई थी. उन्हें तीन निर्दलीयों का भी समर्थन मिल गया था. 18 सीटों पर लड़ी भाजपा एक भी सीट न जीत सकी थी. लेकिन विधानसभा के लिए तीन मनोनीत सदस्यों के नामों की सिफारिश में देरी नारायणसामी सरकार को महंगी पड़ गई. केंद्रशासित राज्यों पर नियंत्रण रखने वाली केंद्र सरकार ने नारायणसामी को अंधेरे में रखते हुए उन तीनों पर तीन भाजपा समर्थकों को मनोनीत कर दिया. कांग्रेस ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी पर कोई फायदा नहीं हुआ.
नारायणसामी के साथ लगातार टकराव को देखते हुए केंद्र ने 17 फरवरी को उप-राज्यपाल किरण बेदी को हटा दिया ताकि वह विधानसभा चुनाव में भाजपा पर कांग्रेस के हमलों को भोथरा कर सके. इससे पहले दो मंत्रियों समेत कांग्रेस के पांच विधायकों और डीएमके के एक विधायक ने महीने भर के भीतर इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया था. विश्वास मत को ''लोकतंत्र की हत्या'' बताते हुए नारायणसामी ने कहा, ''तीन मनोनीत सदस्यों को मतदान का अधिकार नहीं है. सरकार के सचेतक ने इस मुद्दे को उठाया था लेकिन विधानसभा अध्यक्ष सहमत नहीं हुए. इसलिए हम सदन से बाहर चले गए और अपना इस्तीफा भेज दिया. विधानसभा अध्यक्ष को विश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराना चाहिए था. लेकिन इसकी जगह उन्होंने फैसला सुना दिया कि सरकार बहुमत खो चुकी है.''
कांग्रेस के इस 75 वर्षीय नेता ने तय किया है कि वे आने वाले विधानसभा चुनाव में इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे. वे कहते हैं, ''भाजपा ने एक चुनी हुई सरकार को गिराया है क्योंकि वह आगामी चुनाव में धांधली करने के लिए सरकारी मशीनरी, पैसों और बाहुबल का इस्तेमाल करना चाहती थी. पर वे इसे कामयाब नहीं होंगे क्योंकि जनता ने देखा है कि पिछले पांच वर्षों में भाजपा ने किस तरह हमारी सरकार को परेशान कर रखा था.'' नारायणसामी के एक करीबी सूत्र के मुताबिक, ''उनकी सरकार के खिलाफ किसी तरह की नाराजगी अब उनके प्रति सहानुभूति में बदल जाएगी. यह कदम भाजपा के लिए उलटा पड़ेगा.''
नारायणसामी को ताकत पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति उनकी वफादारी से मिलती है. लेकिन विडंबना ही है कि लुंजपुंज कांग्रेस और उसके नेतृत्व की ओर से उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाया. नारायणसामी और बेदी के बीच खींचतान जब चरम पर थी तो राहुल गांधी पुदुच्चेरी में जगह-जगह व्याख्यान देने में लगे थे.
बेदी और नारायणसामी के हट जाने के बाद वहां एक नई संभावना का जन्म हो सकता है. मद्रास विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. मणिवन्नन कहते हैं, ''भाजपा जिस तरह किसी जनसमर्थन के बिना जबरन अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है, उसे देखते हुए काफी संभावना है कि कांग्रेस की कमजोरी के कारण जो जगह खाली हो रही है, उसे भरने के लिए द्रविड़ पार्टियां आगे आ जाएं. नारायणसामी सहानुभूति बटोर सकते हैं पर वोट न बटोर पाएंगे.''
दरअसल, इस मौके का फायदा अब डीएमके उठा सकती है और मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर अरक्कोणम के सांसद एस. जगतरक्षकन का नाम पेश कर सकती है. उनकी वन्नियार जाति की पहचान भी डीएमके के लिए मददगार साबित हो सकती है और वे इस प्रभावशाली जाति के वोट पार्टी को दिला सकते हैं. विपक्षी पार्टियों ऑल इंडिया एन.आर. कांग्रेस (एआइएनआरसी), एआइएडीएमके और भाजपा का एक असरदार गठबंधन बन सकता है पर एआइएनआरसी के चतुर प्रमुख एन.आर. रंगासामी मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा में किसी को आगे न आने देंगे.
पुदुच्चेरी के 1962 में भारतीय संघ में शामिल होने के बाद से 10 में से छह सरकारें कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई हैं. ओरोविल फाउंडेशन के गवर्निंग बोर्ड के पूर्व सदस्य प्रो. सच्चिदानंद मोहंती कहते हैं, ''पुदुच्चेरी राजनैतिक पक्षपात और दुस्साहसिक कार्यों को बर्दाश्त नहीं कर सकता. ऐसे काम केंद्रशासित राज्यों की परंपरा के अनुरूप नहीं.''
अमरनाथ के. मेनन