शख्सियतः दिखता है बस दरवाजा

प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया कहीं न जा पाने की बेचैनी, उत्तर प्रदेश में गुरुकुल खोलने की इच्छा और उम्र के सवालों पर

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पंडित हरिप्रसाद चौरसिया पंडित हरिप्रसाद चौरसिया

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 8:42 PM IST

प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया कहीं न जा पाने की बेचैनी, उत्तर प्रदेश में गुरुकुल खोलने की इच्छा और उम्र के सवालों पर

क्या अब जब कोरोना संकट कम होता दिख रहा है, संगीत समारोहों की आपकी व्यस्तता फिर शुरू हो सकी है?

जब कोई गिर पड़ता है तो उठने में समय लगता है और फिर उठने के बाद लड़खड़ाता है चलने में. संगीत समारोह अभी धीरे-धीरे शुरू हो रहे हैं. उम्मीद है जल्दी ही पहले की तरह होने लगेंगे.

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● कोरोना के एकांत के समय को आप किस प्रकार व्यतीत करते थे?

पिछले साल मार्च महीने से, जब से कोरोना संकट शुरू हुआ है, मैं मुंबई से बाहर ही नहीं निकला हूं. बस बाहर जो दरवाजा है, वही दिखाई देता है कि कब मैं इससे निकल पाऊंगा. यहां मेरा वृंदावन गुरुकुल है, परिवार की तरह सभी शिष्य-शिष्याएं रहते हैं.

मैंने अपना पूरा समय यहीं बिताया. सभी साथ में थे तो उस दौरान भी गाना-बजाना सब चलता रहा. लेकिन मेरा जो दूसरा गुरुकुल भुवनेश्वर में है, उसे मैंने इस दौरान बहुत याद किया. वहां नहीं जा सका. नवंबर में वहां जाने की योजना बनाई है.

गुरुकुल की बात चली है तो याद आता है कि कभी आपने कहा था, उत्तर प्रदेश में गुरुकुल बनाने की आपकी इच्छा है. प्रयागराज में आपका जन्म हुआ और इस प्रदेश से आपका गहरा लगाव भी है.

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जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी उस समय मुलायम सिंह यादव जी ने मुझे आश्वासन दिया था. अभी भी सरकार अगर मुझे गुरुकुल बनाकर दे तो मैं वहां आकर सिखा सकता हूं. जब मुझे उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया तब भी मैं जाया करता ही था.

अब क्या करना बाकी रह गया है?
कुछ भी नहीं, सब कर लिया है. भारतीय संगीत का प्रचार-प्रसार देश-विदेश में कर लिया. सभी जगह कार्यक्रम किए. अब तो जिस तरह का संकट पूरी दुनिया में आया, उसमें खुद को बचा लेना ही बहुत है. 

—आलोक पराड़कर

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