जफरुल इस्लाम खान
इस्लामिक स्कॉलर खान ने अल अजहर (काहिरा) में शिक्षा हासिल की और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी से इस्लामिक स्टडीज में पीएचडी की. वे कुरान का तर्जुमा कर रहे हैं जो इस साल रिलीज होगी
नैतिक सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस्लाम में आदमियों और औरतों दोनों के लिए शालीन ढंग से कपड़े पहनना और कुछ निश्चित नियमों का पालन करना जरूरी है. सामान्य बोलचाल में 'हिजाब’ (पर्दे का अरबी) शब्द सिर के दुपट्टे के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो अक्सर शालीन पहनावे का हिस्सा है.
इस शब्द के और भी रूपकीय अर्थ हैं, जो मोटे तौर पर शालीन वस्त्र संहिता की ओर इशारा करते हैं जिसका मुस्लिम औरतों को अपने निकट परिवार से बाहर के मर्दों की मौजूदगी में पालन करना चाहिए. पर्दा केवल इस्लाम में नहीं है. अन्य रूपों में इसे प्राचीन सभ्यताओं, सेमिटिक या सामी धर्मों, हिंदू धर्म और साथ ही इस्लाम-पूर्व अरब जगत में देखा जा सकता है, जहां इसका इस्तेमाल 'स्वतंत्र औरतों’ को दासियों से अलगाने के लिए किया जाता था. कुरान के संदर्भ में हिजाब भौतिक और आध्यात्मिक दोनों शालीनताओं को बढ़ावा देता है.
कुरान का वास्तविक मार्गदर्शन मुस्लिम औरतों को अपने हाथ और चेहरा छोड़कर पूरा शरीर ढकने की हिदायत देता है, ''मोमिन औरतें अपनी निगाहें नीची रखें और इस्मत की हिफाजत करें; वे अपनी खूबसूरती (और जेवरात) जाहिर न करें सिवा उसके जो (आम तौर पर) दिख जाती है; वे अपने स्कार्फ को गर्दन के ऊपर तक बांधें और अपनी खूबसूरती जाहिर न करें...’’
(24:31, लेखक के अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित). कुरान 'खिमर’ शब्द का प्रयोग करती है, जिसका अर्थ है सिर को ढकने वाला कपड़े का टुकड़ा—इसके चादर सरीखे अलग-अलग स्थानीय नाम भी हैं. हिजाब का ज्यादा कठोर रूप, जिसमें चेहरे सहित पूरे शरीर को ढका जाता है और जो अजनबी मर्दों से बातचीत से रोकता है, केवल 'मोमिनों की मांओं’ यानी पैगंबर मुहम्मद की पत्नियों के लिए लागू था (33:32, 53). उन्हें आला मर्तबा दिया गया और मुसलमानों को उनसे नकाब या परदे की ओट से बात करने का हुक्म दिया गया था.
इस्लाम में आदमियों और औरतों को अजनबियों के सामने अपने शरीर के कुछ निश्चित अंगों को ढकना ही चाहिए (24:30-31). इन अंगों को सत्र या 'औरह’ कहा जाता है, जो औरतों का चेहरा और हाथ छोड़कर पूरा शरीर और आदमियों के घुटनों से लेकर नाभि तक का हिस्सा है. कुछ औरतें अपना चेहरा और हाथ भी ढकती हैं, पर धर्मग्रंथ में इसका आदेश नहीं है.
औरत लबादा (जिल्बाब) पहनकर या सिर पर खिमर डालकर हिजाब का पालन कर सकती है. कुछ निश्चित स्थितियों में पर्दे से एक किस्म की छूट है, मसलन जब वे डॉक्टर से मिलें या गवाही देने या शिकायत दर्ज करने के लिए हुक्मरान या जज के सामने आएं. घर के भीतर भी सदस्यों से एक दूसरे की निजता और शालीनता का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है. छोटे बच्चों को छोड़कर घर के बाशिंदों को किसी भी दूसरे के निजी कमरे में बिना इजाजत दाखिल नहीं होना चाहिए (24:58-59).
नकाब या पूरे शरीर का पर्दा बाद की सदियों में आया. पूरा पर्दा मुस्लिम भूभागों के बड़े हिस्सों पर लंबी उस्मानिया हुकूमत के दौरान व्यापक प्रचलन में आया, तब भी कुलीन ही इसका पालन करते थे. कामकाजी औरतें अव्यावहारिक नकाब का पालन नहीं कर पातीं थीं, लेकिन जैसा कि होना ही था, यह धीरे-धीरे निचले तबकों में भी प्रचलित होने लगा, क्योंकि अन्य तबकों ने भी कुलीनों की नकल की कोशिश की, जिसे ज्यादा कट्टरपंथी सलफी मौलवियों ने बढ़ावा दिया.
पवित्र भूमियों के इर्द-गिर्द केंद्रित सांस्कृतिक-धार्मिक सर्वसाधारण से बंधे और 18वीं सदी के धर्मशास्त्री शाह वलीउल्लाह सरीखी शख्सियतों और मध्य-19वीं सदी में स्थापित अहल-ए-हदीस सरीखे सलफी पंथों से प्रभावित व्यापक उम्मा का हिस्सा होने के नाते भारतीय उपमहाद्वीप भी विचारों और आचरणों के इस आदान-प्रदान से अछूता नहीं था. कई अध्येता अनिवार्य पहनावे के तौर पर पूरे शरीर के पर्दे का पुरजोर विरोध करते रहे हैं.
इनमें हदीस के महान अध्येता नसीर अल-दीन अल-अल्बानी भी हैं जिन्होंने अपनी किताब द हिजाब ऑफ द मुस्लिम वुमन में ऐसा किया. आम तौर पर ज्यादातर मुस्लिम समाजों में औरतें सामान्य कपड़ों के साथ हिजाब का पालन करती हैं; नकाब आज असामान्य है. 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत हमले और ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद, और उसी वक्त के आसपास मिस्र में, ज्यादा सख्त हिजाब का नए सिरे से उभार देखा गया.
कुछ कट्टरपंथी मुसलमान और सलफी अब भी इस पर जोर देते हैं, हालांकि उनके सरपरस्त सऊदी अरब ने आधिकारिक तौर पर इससे छूट दी है.
हाल के बरसों में फैशन-सजग मुस्लिम औरतों ने पगड़ी सरीखे सिर को ढकने वाले किस्म-किस्म के कपड़े अपनाए हैं. फैशन कंपनियां भी पश्चिमी और खाड़ी के बाजारों के लिए स्टाइलिश हिजाब लेकर आई हैं. हिजाब का पालन करने वाली कई औरतें आम तौर पर इसे व्यावहारिक और मुक्तिदायक पाती हैं, जो उन्हें सड़कों और कार्यस्थलों पर उत्पीड़न से बचने में मदद करता है. ठ्ठ
इस्लाम से पहले अरब जगत में हिजाब का इस्तेमाल ''आजाद महिलाओं’’ को गुलामों से अलग करने के लिए किया जाता था. कुरान के मुताबिक, हिजाब शारीरिक और आध्यात्मिक सादगी को प्रोत्साहित करता है.
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