साल 2000 की बात है. 5 साल के मरियप्पन थंगवेलु स्कूल जा रहे थे, तभी एक भारी वाहन (ट्रक) उनके दाएं पैर को घुटने के नीचे से कुचलकर चला गया और वह हमेशा के लिए नि:शक्त हो गए.
उस उम्र में जब बच्चे दौड़ना, खेलना और पेड़ों पर चढ़ना पसंद करते हैं, मरियप्पन ने अपने एक पैर की कार्यक्षमता खो दी थी. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. मरियप्पन ने खुद को कभी भी सक्षम लोगों से कम नहीं माना और उन्होंने चेहरे पर मुस्कान के साथ जीवन की बाधाओं को पार करने की हिम्मत जुटाई.
और आज मरियप्पन थंगवेलु देश के शीर्ष खेल सम्मान 'खेल रत्न' पाने वाले उन पांच खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिन्होंने देश का नाम रोशन किया है. कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पैरा-एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें यह इनाम मिला है. पुरस्कार पाते ही वह सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, सानिया मिर्जा, विराट कोहली और मैरी कॉम जैसे असाधारण खिलाड़ियों की कतार में शामिल हो गए. मरियप्पन थंगवेलु एक सच्चे विजेता की तरह मुस्कुराए.
मरियप्पन को भारत सरकार द्वारा इससे पहले भी दो बार सम्मानित किया जा चुका है. 2017 में वह अर्जुन पुरस्कार प्राप्त करने वालों में शामिल थे, जो भारत का दूसरा सर्वोच्च खेल सम्मान है. उसी वर्ष उन्हें भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री भी मिला.
हालाँकि बचपन का वह हादसा उनके जीवन की सबसे दर्दनाक घटना थी, लेकिन मरियप्पन की दुनिया पैदा होने के बाद से ही कठिनाइयों से भरी रही. थंगवेलु जब छोटे थे तो उनके पिता परिवार को छोड़कर चले गए, जिससे उनकी मां के ऊपर 5 भाई-बहनों (चार भाई और एक बहन) की जिम्मेदारी आ गई. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह मां आज उस बेटे पर कितना गर्व महसूस कर रही होगी.
अपने कोच से प्रोत्साहित होकर मरियप्पन ने हाई जंप में खुद को आजमाना शुरू किया. 14 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार किसी प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया. दिलचस्प बात यह है कि उस प्रतियोगिता में शामिल बाकी सभी बच्चे शारीरिक रूप से सक्षम थे. मरियप्पन को प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल करने से कोई नहीं रोक पाया. उनकी प्रतिभा को देख सभी दंग रह गए. अगले कुछ वर्षों में उन्होंने बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण प्राप्त किया और कई राष्ट्रीय स्तर की चैम्पियनशिप जीती.
राष्ट्रीय पैरा-एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में मरियप्पन के प्रदर्शन से प्रभावित होकर विख्यात कोच सत्यनारायण ने उनका कोच बनने का फैसला किया और 2015 में उन्हें बेंगलुरु लेकर चले आए.
मरियप्पन 2016 में खेल जगत में छा गए जब उन्होंने रियो पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का कारनामा किया. उनकी विजयी छलांग 1.89 मीटर ऊंची (6 फीट 2 इंच) रही. इस जीत के बाद अर्जुन पुरस्कार और पद्म श्री के लिए उनके नाम की सिफारिश की गई.
अब उनका लक्ष्य टोक्यो पैरालंपिक (24 अगस्त से पांच सितंबर 2021) में एक और स्वर्ण पदक जीतना और अपनी स्पर्धा में विश्व रिकॉर्ड बनाना है.
जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मुस्कुराते हैं, वे जीवन में महान चीजों को पूरा करते हैं, मरियप्पन थंगवेलु इस बात के प्रमाण हैं. कोलगेट और इंडिया टुडे ग्रुप उन्हें इस उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए बधाई देता है.
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