अस्थमा पंप में ऐसा क्या होता है जो तुरंत लौट आती हैं सांसें? ऐसे काम करती है ये छोटी सी 'डिब्बी'

अस्थमा पंप से फेफड़ों की नलियों में सूजन और सिकुड़न को तुरंत कम करके सांस लेने में मदद करता है. इसके अंदर कौन-कौन सी दवाएं होती हैं और इसका सही उपयोग कैसे करते हैं, इस बारे में बताइए.

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अस्थमा पैशेंट को अनहेलर साथ में रखना होता है. (Photo:ITG) अस्थमा पैशेंट को अनहेलर साथ में रखना होता है. (Photo:ITG)

आजतक लाइफस्टाइल डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:49 PM IST

अस्थमा फेफड़ों की ऐसी बीमारी है जो फेफड़ों के उन रास्तों में सूजन पैदा कर देते हैं जिनसे हवा अंदर और बाहर जाती है. सूजन आने के कारण वे संकरे हो जाते हैं और सांस लेने में कठिनाई होती है. अस्थमा के मरीजों को जब सांस अचानक रुकने लगती है तो एक पंप का सहारा लेते हैं जिससे तुरंत सांसे आ जाती हैं. कई लोगों के मन में सवाल जरूर आता होगा कि इस छोटी सी डिब्बी जैसी दिखने वाली डिवाइस में ऐसा क्या होता है जो फेफड़ों की नलियों को खोलकर तुरंत सांस भर देता है. तो आइए इसके पीछे के साइंस को समझते हैं.

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क्या होता है अस्थमा पंप?

Felix Hospital के मुताबिक, अस्थमा पंप को इनहेलर भी कहा जाता है. ये मुख्य रूप से दो तरह का होता है, रिलीवर और कंट्रोलर. रिलीवर इनहेलर में ब्रॉन्कोडाइलेटर दवाएं होती हैं जैसे सल्बुटामोल जो फेफड़ों में हवा अंदर बाहर जाने वाले रास्ते के मसल्स को तुरंत ढीला कर देती हैं. जब अस्थमा अटैक होता है, नलियां सूज जाती हैं और सिकुड़ जाती हैं, तब पंप दबाने पर काफी बारीक ड्रॉपलेट्स के साथ दवा सीधे फेफड़ों तक पहुंचती है और रास्ते को चौड़ा करके हवा का बहाव सुधार देती है.

दूसरा होता है नियमित कंट्रोलर इनहेलर जो सूजन को लंबे समय तक कंट्रोल करके रखते हैं लेकिन इमरजेंसी में रिलीवर इनहेलर ही काम आते हैं. कई मामलों में यह जीवनरक्षक साबित होता है पर अधिक इस्तेमाल से बचना चाहिए वरना उसका असर कम होने लगता है.

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इतनी जल्दी काम कैसे करते हैं?

दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट में रेस्पिरेट्री मेडिसिन के डायरेक्टर डॉ. अनिमेष आर्य का कहना है, 'अस्थमा इनहेलर इतनी तेजी से इसलिए काम करते हैं क्योंकि इनमें मौजूद दवा सीधे फेफड़ों तक पहुंचती है, और यही वजह है कि मरीज को कुछ ही सेकंड से मिनटों में सांस लेने में राहत महसूस होने लगती है. जब हम इनहेलर का पफ लेते हैं तो दवा बहुत बारीक कणों के रूप में हमारे श्वसन तंत्र के गहराई तक पहुंचती है और तुरंत उन मांसपेशियों पर असर करती है जो अस्थमा अटैक के दौरान सिकुड़ जाती हैं.'

'इनहेलर में मौजूद ब्रोंकोडायलेटर दवा एयरवे को फैलाकर उन्हें रिलैक्स करती है, जिससे बंद हो चुकी सांस की नलियां तेजी से खुलने लगती हैं. यही वजह है कि रिलीवर इनहेलर का असर 30 सेकंड से 2 मिनट के अंदर दिखने लगता है. अगर यही दवा टैबलेट या सिरप के रूप में ली जाए तो उसे असर दिखाने में 20-30 मिनट या उससे भी ज्यादा समय लग सकता है क्योंकि उसे पेट में पचकर खून में मिलकर फेफड़ों तक पहुंचना पड़ता है. जबकि इनहेलर में दवा सीधे उसी हिस्से को टारगेट करती है जहां समस्या हो रही है इसलिए न सिर्फ असर जल्दी दिखता है बल्कि इसकी मात्रा भी बहुत कम होती है, जिस कारण साइड इफेक्ट्स का खतरा भी कम रहता है.' 

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सही इस्तेमाल करना जरूरी

डॉ. अनिमेष ने बताया, 'इनहेलर का सही तरीके से इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि गलत तकनीक से दवा गले में ही रह जाती है और फेफड़ों तक पहुंच नहीं पाती. सही तकनीक अपनाने पर इनहेलर अस्थमा मरीजों के लिए जीवनरक्षक की तरह काम करते हैं और सांस फूलने, सीने में जकड़न और खांसी जैसे लक्षणों में तुरंत आराम देते हैं.'

अस्थमा पंप तेजी से काम इसलिए करते हैं क्योंकि दवा का अधिकांश हिस्सा सीधे प्रभावित जगह पर लगता है न कि गोली की तरह पूरे शरीर में घूमता है. पंप दबाते ही दवा एयरोसॉल बनकर सांस के साथ अंदर जाती है, सूजन कम करती है और मसल्स को आराम देती है, जिससे सांस आने लगती है. हालांकि, इसका सही इस्तेमाल जरूरी है. पहले सांस छोड़ें फिर पंप दबाएं, गहरी सांस लें और फिर 10 सेकंड रोके रखें.​

बीमारी ठीक नहीं करता अस्थमा पंप

फोर्टिस हेल्थकेयर की वेबसाइट के मुताबिक, इनहेलर बंद हुए एयरवेज को खोलकर सिर्फ राहत देता है लेकिन अस्थमा के कारण जैसे वायुमार्ग में सूजन, एलर्जी, संक्रमण को ठीक नहीं करता इसलिए कुछ लोगों को इससे राहत देने के लिए मेडिकेशन पर भी रखा जाता है. अगर इनहेलर या ब्रोंकोडायलेटर दवाएं जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हों तो दिक्कत हो सकती है, इसलिए डॉक्टर की सलाह अनुसार ही इस्तेमाल करना चाहिए.

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