क्या है फ्रेंडशोरिंग, जो US को हमारा दोस्त बनाते-बनाते China को हमारा दुश्मन बना सकती है

Apple जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां भी China में बसा-बसाया अपना बिजनेस उखाड़कर भारत लाना चाह रही हैं. ये friendshoring है. कुछ समय पहले भारत आईं अमेरिकी अधिकारी जेनेट येलेन ने भी हमारे साथ फ्रेंडशोरिंग की बात की. क्या ये Covid में घिरे चीन से पल्ला झाड़ने की कोशिश है, या कुछ और!

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अमेरिकी सरकार अब चीन से अपना बाजार हटाकर भारत लाना चाहती है- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay) अमेरिकी सरकार अब चीन से अपना बाजार हटाकर भारत लाना चाहती है- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

मृदुलिका झा

  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 3:59 PM IST

दुनियाभर के इकनॉमिस्ट से लेकर बड़े उद्योगपति तक मंदी का डर बता रहे हैं. कोविड के खत्म होते-होते ही रूस-यूक्रेन जंग शुरू हो गई. दोनों ही देशों से कई उत्पादों की सप्लाई प्रभावित हुई. इधर चीन एक बार फिर कोविड के खतरे में घिर चुका है. ऐसे में बड़ा बाजार खतरे में है. टूटी हुई सप्लाई चेन को वापस ठीक-ठिकाने लाने के लिए फ्रेंडशोरिंग की बात हो रही है. 

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फ्रेंडशोरिंग को अलायशोरिंग भी कहते हैं
ये शब्द ऑनशोरिंग से निकला है, जिसका मतलब है बिजनेस का रीलोकेशन, यानी एक जगह से दूसरी जगह बिजनेस शिफ्ट करना. कोविड के दौरान साल 2021 में ही ये शब्द पहली बार लिखा-सुना गया. ये वो वक्त था, जब लगभग सारे देश महामारी से जूझ रहे थे. किसी के पास भरपूर तेल था, लेकिन अनाज नहीं था, किसी के पास कपड़े थे, लेकिन दवाएं नहीं थीं. ये सारे मित्र देश थे, लेकिन महामारी के कारण आपस में ही सप्लाई चेन टूट रही थी. 

रूस-यूक्रेन जंग के बीच रूस ने एनर्जी के अपने संसाधनों पर हाथ सख्त कर लिए- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

तभी फ्रेंडशोरिंग की बात हुई. इसके तहत राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक तौर पर स्थिर देश एक-दूसरे के साथ बिजनेस करें. ये पक्के तौर पर मित्र राष्ट्र हों, ऐसा जरूरी नहीं, लेकिन आपस में तनाव नहीं होना चाहिए. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे दो पड़ोसी स्टूडेंट्स परीक्षा के दौरान ग्रुप स्टडी करने लगते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे आपस में गहरे दोस्त भी हों. उनका आसपास होना ही उनके काम आ जाता है. कुछ ऐसा ही कंसेप्ट फ्रेंडशोरिंग भी है. 

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अमेरिका ने भारत से फ्रेंडशोरिंग की बात की
दोनों देश आर्थिक तौर पर मजबूत हैं. दोनों में ही फिलहाल राजनैतिक अस्थिरता नहीं. दोनों के बीच सीमाओं का तनाव नहीं. ऐसे में वे अगर मार्केट फैलाते हैं तो सप्लाई चेन पर बढ़िया असर होगा. वो ब्रेक नहीं होगी. जैसे भारत के पास अगर कच्चा माल है तो वो वहां जाकर कारखाने लगा सकता है, या फिर अमेरिका भी ऐसा कर सकता है. दोनों ही एक-दूसरे का बाजार इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे दोनों ही देशों की इकनॉमी मजबूत होगी. 

फ्रेंडशोरिंग से अस्थिर हालात में भी सप्लाई चेन चलती रह सकती है- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

नुकसान भी हैं फ्रेंडशोरिंग के 
सुनने में अच्छे लगते इस टर्म के लंबे समय के बाद बड़े नुकसान भी हैं. मिसाल के तौर पर, अमेरिका और रूस वैसे तो एक-दूसरे को नापसंद करते हैं लेकिन एनर्जी के मामले में दोनों के बीच फ्रेंडशोरिंग थी. अमेरिका रूस पर निर्भर था. अब यूक्रेन से जंग छेड़ने के बाद रूस अपनी इसी ताकत को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है ताकि बाकी यूरोपियन देशों समेत अमेरिका को भी अपने दबाव में रख सके. 

ऐसा आगे भी हो सकता है. बहुत मुमकिन है कि दो देशों में संबंध खराब होने पर, एक मुल्क अपने साथी मुल्कों से ये उम्मीद करे कि वे भी उससे संबंध बिगाड़ लें.

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फ्रेंडशोरिंग का सबसे बड़ा खतरा डीग्लोबलाइजेशन है, यानी दशकों की कोशिश बेकार होना- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

इस बात का हल्का इशारा सेक्रेटरी ऑफ ट्रेजरी येलेन की इस बात से भी मिलता है कि भारत से फ्रेंडशोरिंग की बात के बीच वे चीन का भी जिक्र करती रहीं. येलेन ने कहा कि वे आईफोन की मैन्युफैक्चरिंग चीन से हटाकर भारत ट्रांसफर कर सकते हैं. साथ में सोलर एनर्जी के लिए भी यहां के तमिलनाडु में काम शुरू कर सकते हैं. ये काम फिलहाल तक चीन में चल रहा है. तो ऐसे में अमेरिका से दोस्ती, चीन से सीधी दुश्मनी भी बन सकती है. ये भी हो सकता है कि चीन से बिगड़ते रिश्ते के बीच अमेरिका भारत को मोहरे की तरह देख रहा हो. 

आइसोलेट भी हो सकता है देश
फ्रेंडशोरिंग के तहत दो देश ज्यादातर बिजनेस एक-दूसरे के साथ करने लगेंगे. तो ऐसे में होगा ये कि अगर कोई अन्य देश ज्यादा फायदे की बात करे, या फिर कोई देश अपना बिजनेस पूरी दुनिया से शेयर करना चाहे, तो फ्रेंडशोरिंग के चलते उसे रुकना पड़ेगा. ये एक तरह का डीग्लोबलाइजेश है, जो दुनिया को रोक देगा.

वैसे फिलहाल तक ये तय नहीं हुआ कि क्या फ्रेंडशोरिंग जबानी चीज होगी, या फिर इसके लिए तगड़ा करार होगा, जिसे ब्रेक करना मुश्किल हो. 

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