हस्तिनापुर में सभी लोग आए हुए हैं क्योंकि वहां कौरवों और पांडवों का शिक्षा समापन समारोह होने वाला है. धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर, गांधारी, कुंती, कुलगुरु कृपाचार्य और द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के साथ आकर अपने-अपने स्थान पर बैठ गए.
कर्ण की धनुर्विद्या और चक्रव्यूह भेदने की नीति
महाभारत के सोमवार के एपिसोड में दिखाया गया कि गुरुकुल में कौरवों और पांडवों की शास्त्र पूजा का समय भी आ गया है. द्रोणाचार्य के साथ कौरव और पांडव सभी मिलकर हाथ जोड़े शास्त्रों की पूजा करते हैं और गुरु द्रोणाचार्य का आर्शीवाद लेते हैं. भीष्म भी वहां आ जाते हैं. उधर राजमहल में शकुनि द्रोणाचार्य के खिलाफ धृतराष्ट्र के कान भरते हैं और अब तो धृतराष्ट्र ने शकुनि को अपना सलाहकार भी बना लिया है. इसका फायदा उठाकर शकुनि ने धृतराष्ट्र से कहा- "मुझे तो डर है कि अर्जुन का भोलापन उन्हें अवश्य मोह लेगा, अर्जुन से बचाव का केवल एकमात्र उपाय है कि अब अश्वत्थामा को आ जाना चाहिए." अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है, जो अपने पिता की तरह ही शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपूण है.अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य के पास आता है जहां गुरु द्रोणाचार्य सभी शिष्यों की शास्त्र परीक्षा लेते हैं.
गुरुकुल में धृतराष्ट्र का पहला सारथी अधिरथ अपने पुत्र राधेय के साथ आता है, द्रोणाचार्य के पास राधेय की शस्त्र विद्या के लिए. जहां द्रोणाचार्य उसे देखकर उसका नाम कर्ण रखते हैं और राजपुत्र और क्षत्रिय न होने की वजह से वो कर्ण को शस्त्र विद्या देने से इनकार कर देते हैं. ये सुनकर अधिरथ और कर्ण वहां से चले जाते हैं.
द्रोणाचार्य अपने पुत्र को चक्रव्यूह भेदने की शिक्षा दे ही रहे थे कि वहां अर्जुन भी आ जाता है और गुरु द्रोणाचार्य से चक्रव्यूह भेदने की शिक्षा प्राप्त करता है.
अर्जुन की परीक्षा
रात के अंधेरे में जब सभी शिष्य सो गए तब अर्जुन धनुष से निशाना साधने के अभ्यास कर रहा होता है कि तभी द्रोणाचार्य की आंख खुल जाती है और वो अर्जुन का अभ्यास देखकर उसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनाने और ब्रह्मास्त्र का वरदान देने का वचन देते हैं.
अगले दिन द्रोणाचार्य सभी शिष्यों के साथ गंगा किनारे जाते हैं स्नान करने कि तभी वहां एक घड़ियाल आ जाता है जो द्रोणाचार्य पर हमला करता है. सभी शिष्य भाग जाते हैं लेकिन अर्जुन अपने धनुष से घड़ियाल पर बाण चला कर मार देता है और गुरु द्रोणाचार्य को बचा लेता है. इस पर द्रोणाचार्य अर्जुन को कहते हैं कि ये असली घड़ियाल नहीं था बल्कि अर्जुन की परीक्षा थी जिसमें वो सफल हो गया.
वहीं शकुनि भी प्रण लेता है कि जब तक हस्तिनापुर की राजगद्दी पर वो दुर्योधन को नहीं बैठा देता तक वो गांधार नहीं जाएगा.
नजर 2 के ऑफएयर होने से टूटा इस एक्ट्रेस का दिल, कहा- मैं बहुत रोई
अमिताभ बच्चन की डॉन के 42 साल, फिल्मफेयर अवॉर्ड लिए नूतन संग शेयर की फोटो
द्रोणाचार्य-एकलव्य और गुरुदक्षिणा
यहां गुरुकुल में गरू द्रोणाचार्य गदा शस्त्र के नियम बताते हैं और दुर्योधन-भीम को गदा से अभ्यास करने का आदेश देते हैं. वहीं दूसरी तरफ वन में एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास करता है. तभी वहां एक कुत्ता उसे परेशान करता है वो उसपर बाण चला देता है. द्रोणाचार्य वहां आते हैं और एकलव्य से पूछते हैं कि उसने ये धनुर्विद्या कहां से प्राप्त की, तो एकलव्य उन्हें बताता है कि ये धनुर्विद्या उसने उन्हीं से ली है और उन्हें अपने गुरुकुल ले जाता है जहां उसने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उन्हें अपना गुरु मान लिया है. इतना ही नहीं गुरुदक्षिणा में वो अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काटकर उन्हें अर्पित कर देता है और उसे द्रोणाचार्य का आशीर्वाद मिलता है.
कर्ण की धनुर्विद्या
द्रोणाचार्य के मना करने के बाद कर्ण गुरुदेव परशुराम से शस्त्र विद्या प्राप्त कर रहा है. उसकी धनुर्विद्या देखकर परशुराम ने कहा "यदि तुमने बाणों की मर्यादा भंग की तो गुरुदक्षिणा में दी हुई मैं अपनी सारी शिक्षा तुमसे उस समय वापस ले लूंगा, जिस समय तुम्हें इसकी सबसे ज़्यादा आवश्यकता होगी."
कैसे बने अर्जुन सर्वश्रेष्ठ शिष्य?
अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य से पूछता है कि उन्हें अर्जुन से इतना लगाव क्यों, तो इसपर द्रोणाचार्य कहते हैं की सभी शिष्यों में अर्जुन सर्वश्रेष्ठ है. ये सुनकर अश्वत्थामा द्रोणाचार्य से परीक्षा लेने के लिए कहता है. द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा और सभी शिष्य को एक पेड़ के पास लाते हैं और सभी को निशाना साधने के लिए कहते हैं . वो एक-एक कर सभी से पूछते हैं की उन्हें क्या दिख रहा है, कोई आसमान कहता, कोई पेड़ कहता तो कोई पक्षी. केवल एक अर्जुन ही था जिसे पक्षी की आंख दिखाई दी. इसपर अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य से क्षमा मांगते है.
बड़े हुए श्री कृष्ण और पूरी हुई कृष्ण शिक्षा
गुरु सांदीपनि, कृष्ण और बलराम को शिक्षा देने के बाद उन्हें वापस मथुरा जाने को कहते हैं लेकिन जाने से पहले कृष्ण ने गुरुदक्षिणा में अपनी गुरुमाता को उनका वो पुत्र वापस लाकर दिया जी दैत्य नगरी में था और उसी यात्रा में दैत्यों ने श्री कृष्ण को पांचजन्य शंख दिया. वैसे ये वही शंख है जो कुरुक्षेत्र की रणभूमि में फूंका जाएगा जिसके फूंकने के पश्चात ही युद्ध आरम्भ होगा. कृष्ण ने वो पांचजन्य शाख गुरु सांदीपनि को दे दिया लेकिन सांदीपनि ने वो शंख कृष्ण को ही दे दिया और कहा,'' ये शंख तुम्हारा है, ये तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था. इसे फूंककर इस पुराने युग की समाप्ति और आने वाले युग केआरम्भ की घोषणा करो कृष्ण.'' तभी कृष्ण ने वो शंख फूंका और नव युग का आरम्भ हुआ.
पांडवों और कौरवों के शिक्षा समापन समारोह
हस्तिनापुर की रंगभूमि में सभी लोग आए हुए हैं क्योंकि वहां कौरवों और पांडवों का शिक्षा समापन समारोह होने वाला है. धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर, गांधारी, कुंती, कुलगुरु कृपाचार्य और द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के साथ आकर अपने-अपने स्थान पर बैठ गए. अब बस सबको इंतज़ार है पांडवों और कौरवों का, जो अपनी-अपनी शस्त्र विद्या सबके सामने दिख प्रदर्शित करेंगे.
aajtak.in