Mahabharat 10th May Episode Update: दुर्योधन ने भीम को पिलाया जहर, हस्तिनापुर में हुआ द्रोणाचार्य का आगमन

हम आपको बता रहे हैं कि रविवार शाम महाभारत के नए एपिसोड में क्या-क्या हुआ. अगर आपसे ये एपिसोड मिस हो गया है, तो फिर मत कीजिए और हमारी अपडेट पढ़िए.

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पुनीत इस्सार पुनीत इस्सार

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 11 मई 2020,
  • अपडेटेड 10:44 AM IST

पाण्डु की मृत्यु और माद्री के देहत्याग के बाद कुंती अपने पांचों पुत्रों के साथ वापस हस्तिनापुर लौट आई हैं. लेकिन दुर्योधन ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. ऋषि वेदव्यास को हस्तिनापुर में होने वाली घटनाओं का आभास हो गया था. इसीलिए वो अपनी माता सत्यवती के प्रति ममता का अंतिम ऋण चुकाने हस्तिनापुर पधारे. क्यूंकि उन्हें पता था की सत्यवती हस्तिनापुर की दुर्दशा सहन नहीं कर पाएंगी.

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हम आपको बता रहे हैं कि रविवार शाम महाभारत के नए एपिसोड में क्या-क्या हुआ. अगर आपसे ये एपिसोड मिस हो गया है, तो फिर मत कीजिए और हमारी अपडेट पढ़िए.

सत्यवती, अम्बिका और अम्बालिका ने लिया संन्यास

मां के प्रति अंतिम कर्तव्य पूरा करने के लिए व्यास ने सत्यवती को ममता के मोह के बंधन से आजाद होने को कहा और उन्हें तपोवन का मार्ग दिखाया. साथ ही अम्बिका और अम्बालिका को भी साथ ले जाने की बात कही. इस पर सत्यवती ने व्यास के इन कठोर स्वरों के बारे में पूछा तो व्यास ने कहा, 'धृतराष्ट्र तो नेत्रहीन है माता, वो तो देख ही नहीं सकेगा और यहां जो होने वाला है आपसे देखा ना जायेगा.'

सत्यवती ने अम्बिका और अम्बालिका को अपने साथ लेकर, ममता का मोह त्याग कर संन्यास लेने का फैसला किया और जाने से पहले उन्होंने पांचों पांडवों की जिम्मेदारी धृतराष्ट को सौंप दी और ये भी कहा कि समय आने पर पांडवों का अधिकार पांडवों को ही मिलना चाहिए, उन्हें वह अधिकार मांगना ना पड़े. सत्यवती, अम्बिका और अम्बालिका ने सभी से विदा ली और व्यास संग तपोवन चली गईं.

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हस्तिनापुर का गुरुकुल

धृतराष्ट्र और गांधारी, दुर्योधन को ये समझाने का प्रयत्न करते रहे कि युधिष्टर उसके बड़े भाई हैं, लेकिन दुर्योधन ने ये मानने से इनकार कर दिया. गांधारी, कुंती के पास आती है उसका हाल चाल पूछती हैं और साथ ही दुर्योधन के दुराचार की माफी भी मांगती है. गांधारी को डर है कि कहीं दुर्योधन शकुनि के बहकावे में ना आ जाए पर उसे ये नहीं पता की शकुनि दुर्योधन के साथ-साथ धृतराष्ट्र के कान भी भर रहे हैं.

भीष्म भी गंगा किनारे हस्तिनापुर के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित हैं और विदुर से अपनी परेशानी बांटते हैं. साथ ही विदुर को आदेश देते हैं की वो पांचों पांडव को गुरु कृपाचार्य के यहां छोड़कर आएं, जिससे वे राजधर्म की विद्या ग्रहण कर सकें. इतना ही नहीं भीष्म अपनी गंगा मां से भी अपना दुख व्यक्त करते हैं और कहते हैं की वो पांचों पांडवों को स्नेह और आशीर्वाद के सिवा कुछ नहीं दे सकते. इसपर मां गंगा उन्हें समझती हैं और उन्हें उनके कर्म याद दिलाती हैं. उधर विदुर पांचों पांडवों के साथ गुरु कृपाचार्य के पास जाते हैं, जहां दुर्योधन राजधर्म की शिक्षा ग्रहण कर रहा था. पांचों पांडवों को देख दुर्योधन गुस्से से खींज जाता हैं.

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अधिरथ-संजय और कर्ण का परिचय

धृतराष्ट्र ये नहीं चाहते थे की पाण्डु पुत्रों को गुरुकुल में अच्छे से शिक्षा मिले, इसीलिए वो कुलगुरु को गुरुकुल में टिकने ही नहीं देते. इसीलिए बार-बार किसी न किसी काम से वो कुलगुरु को बुला लेते थे. ऐसे ही कुलगुरु को अधिरथ की समस्या पर विचार करने के लिए हस्तिनापुर राजभवन बुला लिया गया. अधिरथ सारथी हैं, जो हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के यहां कार्यरत हैं.

उनकी समस्या थी उनका पुत्र राधेय, जो असल में कोई और नहीं बल्कि कर्ण ही है. वहीं कर्ण, जिसे कुंती ने अपने विवाह से पहले एक पेटी में डालकर नदी में बहा दिया था और वो पेटी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को जलक्रीड़ा के दौरान मिली थी. अधिरथ अपने पुत्र के प्रति पिता का कर्तव्य निभाना चाहते हैं इसीलिए उन्हें वापस अपने घर जाना है. लेकिन जाने से पहले वो अपनी जगह संजय को ले आए जो स्वामी भक्त, स्वामीनिष्ठ और ज्ञानी है.

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अधिरथ अपने पुत्र कर्ण को रथ की शिक्षा देने की बात कहते है लेकिन कर्ण शास्त्र विद्या सीखना चाहता है. इसपर अधिरथ कहता है कि ये काम क्षत्रियों का है, तो कर्ण ने कहा, 'बाबा, पर मैंने तो सुना था कि जातियां जन्म से नहीं कर्म से बना करती हैं.'

दुर्योधन ने भीम को पिलाया जहर

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पांचों पांडवों का आचरण देखकर सभी उन्हें आशीर्वाद देते. सभी जानते हैं कि दुर्योधन और भीम की नहीं बनती. दुर्योधन की वजह से ही पांचों पांडव गुरुकुल से भागकर वापस राजभवन आ गए. लेकिन विदुर युधिष्टर को अपने कर्तव्यों की चुनौती स्वीकार करने को कहते हैं. वहां शकुनि भी दुर्योधन को चौसर के खेल के साथ-साथ राजनीति का खेल भी सीखाने लगा है. वो कहता है, 'बुद्धिबल में तुम युधिष्टर का सामना नहीं कर सकते, शारीरिक बल में भीम तुमसे काम नहीं, प्रीती प्राप्ति बल में अर्जुन और शील-शान्ति बल में नकुल और सहदेव तुमसे सबल पड़ते हैं. उनके पास केवल एक बल नहीं है- 'छल बल' और तुम्हें इसी बल का प्रयोग करना है.'

ये कहकर शकुनि ने अपनी चलें चलनी शुरू कर दी और दुर्योधन को भीम के खाने में जहर मिलाने की नीति बताई. गुरुकुल में भीम अकेला बैठा था की तभी दुर्योधन वहां पहुंच गया और छल बल का प्रयोग करते हुए भीम से घनिष्ठ मित्रता जताने लगा और बोला कि उसने सिर्फ भीम के लिए खीर बनवाकर रखी है. परन्तु भीम ने दुर्योधन की जहरीली खीर भी पचा ली और पेटभर खाकर वहीँ सो गया.

दुर्योधन और दुशासन को लगा की वो मर गया और उसे चटाई में बांधकर गंगा नदी में डाल दिया. भीम के वापस घर ना आने पर सभी व्याकुल हो गए. जंगलों का चप्पा-चप्पा छान मारा लेकिन भीम नहीं मिला. वहां नदी के भीतर भीम ने अपना बल दिखाना शुरू कर दिया, जिस से वहां नागराज के सैनिक परेशान हो गए और उसे पकड़कर नागराज के पास ले गए और बताया कि इसे किसी ने विष दिया था जो नागों के काटने से उतर गया.

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जब भीम ने अपना परिचय दिया तो नागराज उसपर लाड़ जताने लगे और बताया कि कुंती उनकी पुत्री की पुत्री हैं. नागराज ने भीम को सुधा रास पिलाया और वापस राजमहल जाने का आदेश दिया. यहां भीम के ना आने पर कुंती का बेमन चैन था कि तभी भीम आ जाते हैं. उन्हें देखकर कुंती खुशी से फूली नहीं समाती. भीम के वापस आने का समाचार सुनकर दुर्योधन एक पल के लिए चकित रह गया फिर उसने नई योजना बनानी शुरू की. भीम को अब दुर्योधन पर बहुत गुस्सा आया और उसने दुर्योधन को सबक सिखाने की ठानी लेकिन युधिष्टर ने उसे रोक लिया और कुलगुरु की शिक्षा याद दिलाई.

आखिरकार विदुर को दुर्योधन का भीम को जहर देने वाली बात उड़ते-उड़ते मिल ही गई और ये बात उन्होंने भीष्म को बताई. एक पल के लिए तो भीष्म को यकीन नहीं हुआ लेकिन वो दुर्योधन को भली भांति जानते हैं, इसलिए उनका मन पांडवों के लिए दुखी हुआ और वो अब जान चुके हैं कि दुर्योधन की इस राजनीति के पीछे कोई और नहीं बल्कि शकुनि है.

भीम के जीवित लौटने पर शकुनि ने दुर्योधन और दुशासन को दो-चार दिन दम साधकर बैठने के लिए कहा और ये भी कहा कि अगर कोई भी पांडव कुछ कहे तो उसमें सौ बातें लगाकर धृतराष्ट्र से शिकायत करो. दुर्योधन ने ऐसा ही किया. उसने और दुशासन ने वन में एक आम का पेड़ देखा और उसे खाने की लालसा जताई. उसी वक्त भीम वहां पहुंच गया और उसने दुर्योधन को अपनी पीठ खुजाने को कहा लेकिन दुर्योधन, दुशासन को लेकर आम के पेड़ पर चढ़ गया. बस फिर क्या था, भीम ने दुर्योधन को सबक सिखाने के लिए, पेड़ के तने से ही अपनी पीठ खुजानी शुरू कर दी और पेड़ गिरा दिया. ये शिकायत लेकर दुर्योधन, धृतराष्ट्र और गांधारी के पास गया जहां सच जानकार गांधारी ने दुर्योधन को समझाया और भीम को गले लगा लिया.

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सुदामा ने खाया चिवड़ा

श्री कृष्ण और बलराम अपने पिता वासुदेव के आदेशानुसार उज्जैनी के ऋषि सांदीपनि के आश्रम में अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और वहां मथुरा में देवकी कृष्ण को याद विलाप कर रही है. ऋषि सांदीपनि ने कृष्ण और सुदामा को जंगल जाकर लकड़ियां चुनने का आदेश दिया और बलराम को खेत में हल चलाने का आदेश दिया.

कृष्ण और सुदामा ने वन में लकड़ियां चुनकर वापस आश्रम जाने की तैयारी की कि तभी वर्षा शुरू हो गई और दोनों को वन में ही रुकना पड़ा. सुदामा ने बाघ का डर दिखाया तो कृष्ण ने पेड़ पर रात गुजारने की बात कही. दोनों अलग-अलग पेड़ में चढ़ गए. तभी सुदामा को तेज भूख लगी और उसे चिवड़े की वो पोटली याद आई जो गुरुमाता ने उन्हें बांधकर दी थी. अब इसमें से चिवड़ा कृष्ण तक कैसे पहुंचाया जाए ये सोचते-सोचते सुदामा ने पूरा चिवड़ा खा लिया. कुछ देर बाद वर्षा रुकी, दोनों पेड़ से उतरे और कृष्ण ने चिवड़ा की बात कही. सुदामा से सच जानने ने बाद कृष्ण ने चिवड़ा सुदामा पर उधर कर दिया.

द्रोणाचार्य का परिचय

गुरुकुल में कौरव और पांडव गेंद से खेलते हैं कि तभी गेंद कूएं में जा गिरती है. उसी वक्त होता है द्रोणाचार्य का आगमन और उन्होंने सबको लकड़ियांतोड़कर लाने को कहा. लेकिन लकड़ियां सिर्फ पांडव तोड़कर लाए. लकड़ियों की मदद से द्रोणाचार्य ने कूएं से गेंद निकाल दी. जब भीष्म को पता चला कि द्रोणाचार्य हस्तिनापुर आए हैं, तो वो अर्जुन के साथ सीधा उनका स्वागत करने पहुंच गए. वहीं शकुनि भी दुर्योधन के साथ सोने की मुद्राएं लेकर द्रोणाचार्य के पास भेंट चढ़ाने आ गए, इन मुद्राओं को द्रोणाचार्य ने स्वीकारने से मना कर दिया.

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इनपुट - साधना

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