गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कालजयी रचना गीतांजलि किसी परिचय का मोहताज नहीं...बंगाल ही नहीं इंडिया के सबसे बड़े आइकन में से एक टैगोर की रचनाएं वक्त से परे हैं...जिनपर ना तो कभी समय की गर्द जमी और न ही जिनकी प्रासंगिकता कम हुई...टैगोर की निजी जिंदगी के पन्ने भी बांग्ला भद्रलोक से लेकर देश-विदेश तक में जाने जाते रहे हैं. लेकिन टैगोर की जिंदगी का एक पन्ना जो कभी दुनिया के सामने नहीं आया, अब वो एक फिल्म के जरिए सामने आ रहा है...पहली बार टैगोर की ये प्रेम कहानी पूरी दुनिया के सामने होगी..
'थिंकिंग ऑफ हिम' है फिल्म का नाम
अर्जेंटीना की
फेमिनिस्ट लेखिका विक्टोरिया ओकैम्पो और टैगोर के प्रगाढ़ रिश्तों की ये कहानी कभी सामने नहीं आ पाती अगर दोनों के बीच खतो-किताबत का लंबा
सिलसिला नहीं चला होता. इस कहानी को पर्दे पर उतारने का बीड़ा उठाया सूरज जॉन्सन फिल्म्स ने. फिल्म के प्रोड्यूसर सूरज कुमार ने अर्जेंटीना के
नामचीन डायरेक्टर पाब्लो सीजर को जोड़ा है और अब फिल्म की शूटिंग शुरू होने वाली है. फिल्म अर्जेंटीना फ्रांस और भारत तीन मुल्कों में शूट की जाएगी.
फिल्म का नाम है 'थिंकिंग ऑफ हिम'. इस फिल्म में विक्टोरिया और टैगोर के खूबसूरत रिश्तों को बेहद खूबसूरती के साथ दिखाने की कवायद की जा रही
है. इस फिल्म की शूटिंग पश्चिम बंगाल के बोलपुर में होगी जबकि बाकी का हिस्सा अर्जेंटीना और फ्रांस में फिल्माया जाएगा. यह फिल्म विक्टोरिया के
साथ टैगोर के भावुक और अंतरंग रिश्ते को बयान करने की कोशिश है. इसके लिए पर्दे पर 1920 के उस दौर को साकार करने की तैयारी है जब टैगोर
और विक्टोरिया की यह प्रेम कहानी परवान चढ़ी थी.
ऐसे शुरू हुई टैगोर और विक्टोरिया की लव स्टोरी
टैगोर अपनी रचनाओं की वजह से हर दौर में प्रासंगिक रहे हैं...लिहाजा उम्मीद की जानी चाहिए कि
जब यह फिल्म आएगी तो इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देगी. फिल्म के प्रोड्यूसर सूरज कुमार के मुताबिक इस प्रोजेक्ट में अर्जेंटीना सरकार काफी
सपोर्ट कर रही है. फिल्म की स्टारकास्ट करीब-करीब फाइनल हो चुकी है..और जल्दी ही इसका एलान किया जाएगा. फिल्म के प्रोड्यूसर बताते हैं कि
विक्टोरिया की टैगोर से इस रिश्ते की शुरुआत 1914 में हुई थी. तब गीतांजलि का फ्रेंच अनुवाद उन्हें पढ़ने को मिला. गीतांजलि वही रचना है जिसके
कारण उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उस वक्त विक्टोरिया 25-26 साल की थीं जबकि टैगोर खुद 63 साल के थे...कई भाषाओं की
जानकार विक्टोरिया से टैगोर इस कदर प्रभावित हुए थे कि उन्होंने 1925 में अपना कविता संग्रह पूरबी विक्टोरिया को समर्पित किया था. टैगोर से
विक्टोरिया की पहली मुलाकात नवंबर 1924 में हुई. टैगोर पेरू की यात्रा पर गए थे उसी दौरान वो बीमार पड़ गए. उस दौर में कम से कम 6 महीने सफर
में लगते थे, ऐसे में टैगोर आराम म करने के लिए अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में रुके, टैगोर का वहां रुकना उस दौर की बड़ी खबर थी. चर्चा सुनकर
विक्टोरिया टैगोर से मिलने उस होटल पहुंचीं जहां वो रुके हुए थे. विक्टोरिया ने उन्हें सलाह दी कि होटल का माहौल उनकी सेहत के लिहाज से मुफीद नहीं.
विक्टोरिया ने खासतौर से टैगोर के लिए एक घर किराये पर लिया जहां टैगोर का दो महीने का प्रवास का ज्यादातर हिस्सा व्यतीत हुआ. टैगोर से
विक्टोरिया की दूसरी मुलाकात 1930 में हुई जब टैगोर की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का आयोजन पेरिस में हुआ. ये आयोजन विक्टोरिया ने ही किया था. ये
टैगोर और विक्टोरिया की आखिरी मुलाकात थी. हालांकि इसके बाद 1941 यानी अपने निधन से पहले तक टैगोर और विक्टोरिया के बीच खतों का
सिलसिला चलता रहा.
विक्टोरिया को बिजोया बुलाते थे टैगोर
फिल्म के प्रोड्यूसर सूरज कुमार के मुताबिक टैगोर अपने खतों में विक्टोरियो को
बिजोया (विजया) नाम से संबोधित किया करते थे. टैगोर ने अपने अर्जेंटीना प्रवास में करीब 30 कविताएं भी लिखीं. यहां एक बात और भी ध्यान देने की
है. वो यह है कि लैटिन अमेरिकी मुल्कों से भारत के रिश्ते. टैगोर की यह कहानी महज प्लैटोनिक प्यार की दास्तां नहीं बल्कि ये भी जाहिर करती है कि
उस दौर में भी भारत के रिश्ते लैटिन अमेरिकी देशों से कितने मजबूत थे. जाहिर है इस फिल्म के जरिए इन रिश्तों को ताजा और मजबूत करने की पहल
की जा रही है अभी हाल में ही टैगोर की बर्थ एनिवर्सरी मनाई गई है और ऐसे मौके पर अब टैगोर के प्रेम की अमर गाथा बहुत जल्द पर्दे पर होगी, इससे
बेहतर तोहफा टैगोर के प्रशंसकों के लिए और क्या हो सकता है.
पूजा बजाज