Retro Review: मुगल-ए-आजम: एक ऐसी फिल्म, जो दिखाती है भारत की अलग-अलग संस्कृतियों का मेल

डायरेक्टर के. आसिफ द्वारा निर्देशित मुगल-ए-आजम, एक क्लासिक फिल्म है, जो प्रेम और फर्ज के बीच संघर्ष को दर्शाती है. इसमें दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर की बेहतरीन एक्टिंग है. फिल्म की कहानी शहजादे सलीम और अनारकली के प्रेम पर आधारित है, जिसमें बादशाह अकबर का विरोध दिखाया गया है. यह फिल्म भारतीय संस्कृति, संगीत और ड्रामे का अनमोल संगम है.

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n : रेट्रो रिव्यू में पढ़ें मुगल-ए-आजम (Photo: X  @TheCineprism) n : रेट्रो रिव्यू में पढ़ें मुगल-ए-आजम (Photo: X @TheCineprism)

संदीपन शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 24 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 8:00 AM IST

हम अपनी पुरानी फिल्मों को याद करने की सीरीज में आज बात कर रहे हैं मुगल-ए-आजम की. यह फिल्म प्यार और फर्ज के बीच की जंग दिखाती है. इसमें बेहतरीन एक्टिंग, यादगार संगीत और गहरी संस्कृति है. यह फिल्म भारतीय सिनेमा का एक बहुत ही कीमती हीरा है.

फिल्म का नाम: मुगल-ए-आजम (1960)

डायरेक्टर: के. आसिफ

कलाकार: पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, दुर्गा खोटे, मधुबाला, अजित

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संगीत/गीत: नौशाद / शकील बदायूनी

कमाई: ब्लॉकबस्टर हिट

कहां देखें: यूट्यूब

क्यों देखें: भारत की समृद्ध संस्कृति को जानने के लिए

सीख: दिल टूट जाए तो चलता है, लेकिन वादा कभी नहीं तोड़ना चाहिए.

फिल्म की कहानी:
के. आसिफ की इस टाइमलेस फिल्म में कुछ ऐसे पल हैं, जब लगता है जैसे धरती रुक-सी गई है और सूरज, चांद, तारे सब बादशाह अकबर के दरबार में हो रहे इस जबरदस्त नाटक को देखने के लिए थम से गए हैं. ऐसा ही एक पल है जब बादशाह अकबर और उनके बेटे शहजादे सलीम के बीच एक जबरदस्त झगड़ा होता है. सलीम ने बादशाह के खिलाफ बगावत की थी, जो नाकाम हो गई थी और उसे पकड़कर दरबार में लाया जाता है.

पांच मिनट तक, बाप और बेटे के बीच यह टकराव चलता है. वो एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं, अपनी-अपनी बात कहते हैं. पृथ्वीराज कपूर (अकबर) और दिलीप कुमार (सलीम) की शानदार एक्टिंग की वजह से यह सीन देखने वाला दम साधे रहता है.

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पूरी कहानी क्या है?
16वीं सदी के भारत की यह कहानी है. शहजादा सलीम, बेहद खूबसूरत अनारकली से प्यार करने लगता है. लेकिन बादशाह अकबर को यह बात पसंद नहीं. वो चाहते हैं कि सलीम, अनारकली को छोड़ दे नहीं तो मुगल साम्राज्य में उथल-पुथल मच जाएगी. इसी बात को लेकर बाप और बेटे के बीच भयंकर लड़ाई होती है.

अकबर एक बाप होने के साथ-साथ एक बादशाह भी हैं. वो अपने बेटे से प्यार भी करते हैं और अपने फर्ज को भी समझते हैं. दूसरी तरफ सलीम हैं, जो जवानी के जोश में अपने प्यार पर अड़ा है और अपने पिता की बात मानने से इनकार कर देता है.

वो बड़ा झगड़ा (कन्फ्रंटेशन सीन)
दरबार में सभी लोग मौजूद हैं. अकबर अपने तख्त पर बैठे हैं, बहुत गुस्से में हैं. सलीम को जंजीरों में बांधकर लाया जाता है, लेकिन वो बिल्कुल भी नहीं घबराते हैं.

अकबर, सलीम से कहते हैं कि अगर वो अनारकली को छोड़ दे तो उसे माफ कर दिया जाएगा. सलीम जवाब देता है: "ताकि आप उसे मौत की सजा दे सकें?"

अकबर कहते हैं: "बिल्कुल"

पृथ्वीराज कपूर की आवाज गरजती है और दरबार में गूंजती है. दिलीप कुमार की आवाज धीमी है, लेकिन उनकी आंखों में गुस्सा है.

जब अकबर सलीम से दोबारा अनारकली को सरेंडर करने को कहते हैं, तो सलीम जवाब देता है: "मैं अनारकली को आपको नहीं दे सकता."

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अकबर कहते हैं: "तो फिर तुम्हें इस राजगद्दी से हमेशा के लिए दूर कर दिया जाएगा."

सलीम जवाब देता है: "मैं यह स्वीकार करता हूं. लेकिन मैं उस ताज को स्वीकार नहीं करता जिसकी नींव अनारकली की लाश पर रखी गई हो."

और फिर विस्फोट होता है. बाप-बेटे की इस बहस के दौरान कैमरा दोनों के चेहरे के क्लोज-अप शॉट्स लेता है, ताकि उनके हर एक इमोशन को दिखाया जा सके.

अकबर गुस्से में कहते हैं: "तुम अपने प्यार की आग में मुगलों का ताज पिघलाकर एक नर्तकी के पैरों की पायल बनाना चाहते हो? तुम हिंदुस्तान की पवित्र गद्दी पर एक नाचने वाली लड़की को बैठाना चाहते हो?"

इस पर सलीम का गुस्सा फूट पड़ता है और वह जोर से चिल्लाता है: "और आप... इस भरे दरबार में अपनी होने वाली बहू को बेइज्जत करना चाहते हैं."

अकबर गरजते हैं: "चुप रहो."

अब सलीम बिल्कुल नहीं रुकता और कहता है: "अगर बादशाह सिर्फ अपनी हार का बदला लेना चाहते हैं, तो उन्हें अनारकली नहीं मिलेगी. उन्हें अपने ही बेटे की जान लेनी होगी."

यह सुनकर पूरा दरबार सन्न रह जाता है. अकबर के चेहरे पर गुस्से के साथ-साथ दुख भी दिखाई देता है. आखिरकार, वो सलीम को मौत की सजा सुनाते हैं और कहते हैं: "इंसाफ मेरे दिल के मेरे बेटे से भी ज्यादा करीब है."

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सलीम सजा स्वीकार करते हुए कहता है: "एक पत्थर दिल बादशाह मौत के अलावा और दे भी क्या सकता है?"

एक सबक: कैसे बनती है महान फिल्म

यह सीन सिनेमा का एक बेहतरीन नमूना है. डायलॉग, उन्हें बोलने का अंदाज, एक्टिंग - सब कुछ परफेक्ट है. दिलीप कुमार और पृथ्वीराज कपूर ने अपनी आवाज और एक्सप्रेशन से इस सीन को अमर बना दिया. डायरेक्टर के. आसिफ ने शानदार सेट बनवाया था. कैमरा क्लोज-अप शॉट्स में एक्टर्स के इमोशन दिखाता है और वाइड शॉट्स में दरबार की भव्यता दिखाता है.

सिर्फ एक सीन नहीं, पूरी फिल्म है शानदार
मुगल-ए-आजम में ऐसे ही कई जबरदस्त सीन हैं. यह फिल्म ड्रामा, एक्टिंग और भव्यता की मिसाल है. जैसे ताजमहल को बार-बार देखने का मन करता है, वैसे ही इस फिल्म को भी बार-बार देखा जा सकता है.

यादगार संगीत और गाने
फिल्म के संगीतकार (नौशाद) और गानों केलिरिसिस्ट (शकील बदायूनी) भी बहुत मशहूर हुए.

'प्यार किया तो डरना क्या' - यह गाना तो आज भी बहुत मशहूर है. यह अनारकली का अकबर के सामने अपने प्यार का ऐलान है. लता मंगेशकर की आवाज ने इस गाने को अमर बना दिया. फिल्म में मोहम्मद रफी, बड़े गुलाम अली खान और शमशाद बेगम के गाने भी हैं.

असली जिंदगी का दर्द
फिल्म में सलीम और अनारकली का प्यार दिखाया गया है, जिन्हें दिलीप कुमार और मधुबाला ने प्ले किया था. असल जिंदगी में भी दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे, लेकिन शूटिंग के दौरान ही उनका रिश्ता टूट गया था. इस दर्द ने फिल्म के दृश्यों को और भी ज्यादा रियल बना दिया.

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भारत की मिली-जुली संस्कृति का प्रतीक
यह फिल्म सिर्फ एक प्यार की कहानी नहीं है. यह भारत की विभिन्न संस्कृतियों के मेल को दिखाती है. इसमें हिंदू और मुस्लिम संस्कृति दोनों की झलक है.

एक सीन में, सलीम का हिंदू दोस्त दुर्जन सिंह (अजित) उसकी जान बचाने के लिए लड़ता हुआ मर जाता है. अनारकली उसके शव पर अपना दुपट्टा डाल देती है, जो उसकी इज्जत का प्रतीक है. एक हिंदू संत उसे दिलासा देता है. यह सीन दिखाता है कि प्यार और बलिदान का कोई धर्म नहीं होता.

आखिरी बात
मुगल-ए-आजम को बनने में 16 साल लगे. लेकिन के. उनके धैर्य और दूरदर्शिता ने रंग दिखाया और फिल्म ने वो मुकाम हासिल किया, जिससे वो भारत की "सिनेमा-ए-आजम" (सिनेमा की महानतम) बन गई.

जब आप इसे फिर से देखें या नए सिरे से खोजें, तो खुद से एक सवाल जरूर पूछें: आखिरकार, महानता आती किस चीज से है—चाहे वो सिनेमा हो या कोई देश?

आप भी यह फिल्म जरूर देखें. 

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