Movie Review: पहली चाल में पस्त 'वजीर'

आज अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की फिल्म 'वजीर' आज रिलीज हो गई है. फिल्म को विधु विनोद चोपड़ा ने प्रोड्यूस किया है और बिजॉय नाम्बियार ने डायरेक्ट. आइए जानते हैं कैसी है फिल्म.

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फिल्म 'वजीर' फिल्म 'वजीर'

नरेंद्र सैनी / पूजा बजाज

  • नई दिल्ली,
  • 08 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 11:29 PM IST

रेटिंगः 2
डायरेक्टरः बिजॉय नाम्बियार
कलाकारः अमिताभ बच्चन, फरहान अख्तर और अदिती राव हैदरी

किसी भी सस्पेंस थ्रिलर की खासियत उसकी डिटेलिंग होती है. किस तरह जाल बुना जाता है, और किस तरह अंत में उस जाल के एक-एक तार को जोड़ा जाता है. शायद बिजॉय नाम्बियार इस बात को गहराई तक समझ नहीं पाए और वह एक सस्पेंस थ्रिलर को बहुत ही ऑब्वियस फिल्म बना बैठे. शायद यह बॉलीवुड के डायरेक्टरों की कमी भी है कि वह हॉलीवुड की तर्ज पर सस्पेंस थ्रिलर तो बनाना चाहते हैं लेकिन कहानी और पात्रों पर अपनी पकड़ नहीं रख पाते हैं. नतीजाः फिल्म का मजा किरकिरा हो जाता है. वैसे फिल्म के प्रोड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा ने 'वजीर' की रिलीज से पहले कहा था कि वह इस फिल्म को हॉलीवुड में बनाना चाहते थे. फिल्म को देखकर तो यही लगता है कि शायद यह बेहतर ही होता कि वह इस फिल्म को हॉलीवुड में ही बनाते.

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कहानी की बात
फरहान अख्तर एटीएस अफसर हैं. उनकी बीवी है. एक दिन आतंकियों के साथ मुठभेड़ में वह अपनी सबसे कीमती चीज खो बैठते हैं. वह पश्चाताप की आग में जीने लगते हैं और उनकी बीवी भी उस बेशकीमती नुक्सान के लिए उन्हें ही दोषी मानती है. इसी दौरान उनकी मुलाकात अमिताभ बच्चन से होती है, जो दिव्यांग हैं. वह शतरंज के जबरदस्त खिलाड़ी हैं. वह हादसे के शिकार हैं और उनके जीवन का दर्द भी कुछ-कुछ फरहान जैसा है. फिर एक समय आता है कि फरहान अपनी परेशानी के साथ अमिताभ की परेशानी को भी हल करने में लगते हैं. फिर कई रहस्यों पर से पर्दा उठता है और कई बातें सामने लाई जाती हैं. कहानी का ऑन-ऑफ होना बहुत तंग करता है. सस्पेंस थ्रिलर की आत्मा मिसिंग लगती है, कमजोर कहानी और ट्रीटमेंट की वजह से फिल्म लचर बन जाती है. अगर फरहान और अमिताभ के रोल एक दूसरे से बदल दिए जाते तो शायद फिल्म में कुछ ऐसा किया जा सकता था जो सोच से परे होता, शायद फिल्म हॉलीवुड का टेस्ट लेकर आ सकती थी.

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स्टार अपील
अमिताभ बच्चन ने उतना अच्छा काम किया है जो वे व्हीलचेयर पर बैठकर कर सकते थे. उन्होंने एक शतरंज खिलाड़ी के तौर पर अपने कैरेक्टर में जान फूंकी है. फिल्म की यूएसपी वही हैं, और उन्हें देखना आज भी सुखद है. उधर, फरहान अख्तर भी ठीक हैं. लेकिन उनको देखकर थ्रिल पैदा नहीं होता है. कैरेक्टराइजेशन के मामले में अभी तक बॉलीवुड मैच्योर नहीं हो सका है. यही बात फिल्म में खलती है. अगर उम्र ज्यादा है तो बंदे को व्हीलचेयर पर बिठा दो. आदित्य राव हैदरी के लिए कुछ खास करने को है नहीं. नील नितिन मुकेश और जॉन अब्राहम की जगह कोई और भी होता तो खास फर्क नहीं पड़ता.

कमाई की बात
पिछले कुछ साल से जनवरी महीना बॉलीवुड के लिए बहुत लकी नहीं रहा है और इसमें रिलीज होने वाली अधिकतर फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी का मुंह नहीं देखा है. लेकिन इस बार बॉलीवुड ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है और कई बड़ी फिल्में रिलीज हो रही है. 'वजीर' उसकी शुरुआत है और साल की पहली सबसे बड़ी रिलीज भी. फिल्म का बजट लगभग 40-50 करोड़ रु. के बीच बताया जाता है. लेकिन थ्रिलर के लिहाज से फिल्म बहुत हौसले नहीं जगाती है और किसी बड़े रिकॉर्ड की तो उम्मीद नहीं की जा सकती लेकिन अमिताभ और फरहान की वजह से यह बॉक्स ऑफिस पर कितनी आगे जाती है, देखना दिलचस्प होगा.

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