सुशांत के गले पर बना V का निशान, क्या खोलेगा मौत के सारे राज?

वैसे, सुशांत सिंह राजपूत की मौत की वजह क्या है खुदकुशी या हत्या, सीबीआई इसकी जांच कर रही है.

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सुशांत सिंह राजपूत सुशांत सिंह राजपूत

aajtak.in

  • मुंबई ,
  • 25 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 10:25 PM IST

स्वतंत्र फॉरेन्सिक जांच की ओर से ऑटोप्सी से जुड़े एग्जिबिट्स (साक्ष्यों) के विश्लेषण से पता चलता है कि एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की गर्दन पर लटकने के साफ निशान थे लेकिन अंदर के टिश्यूज (ऊतक) और हड्डियों पर घातक फंदे के असर से चोट जैसे दिखाई देने वाले कोई संकेत नहीं थे.  

34 वर्षीय एक्टर की मौत खुदकुशी थी या  हत्या, ये सीबीआई की जांच का विषय है. 

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लटकने के बुनियादी संकेत 

इंडिया टुडे की ओर से कराई गई स्वतंत्र फॉरेन्सिक जांच में राजपूत की गर्दन के ऑटोप्सी चित्रों में V के आकार का निशान नोटिस किया गया. ये एक बुनियादी संकेत है कि फंदा बनाने के लिए जो चीज इस्तेमाल की गई, उसके साथ शरीर ऊपर स्थित एक पाइंट से लटका रहा.  

नवी मुंबई की स्क्वायर एडवाइजर्स प्राइवेट फॉरेंसिक लैब की टैक्निकल डायरेक्टर निशा मेनन ने राजपूत की शुरुआती पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध अन्य एग्जिबिट्स का बारीकी से विश्लेषण किया.  मेनन ने ये निष्कर्ष निकाला कि सुशांत की गर्दन पर उलटे V  के आकार का खांचा बना हुआ था. ये उभरी हुई भूरे रंग की बनावट थी.  

गला घोंटने की स्थिति में, निशान गर्दन के चारों और क्षैतिज आकृति लेता. 

मेनन ने जोर देकर कहा कि फंदा खुदकुशी है या हत्या, ये आगे जांच का विषय है. उन्होंने कहा, लेकिन उपलब्ध एग्जिबिट्स, गर्दन के चित्र और प्रोविजनल ऑटोप्सी रिपोर्ट से यही साबित होता है कि फंदा लगाया गया जैसा कि V के आकार के खांचे से भी संकेत मिलता है. इस निशान की परिधि 49.5 सेंटीमीटर की गर्दन पर 33 सेंटीमीटर है." 

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 शुरुआती ऑटोप्सी रिपोर्ट में चूक 

लगभग दो दशक के अनुभव के साथ पेशेवर फोरेंसिक विशेषज्ञ मेनन के मुताबिक उन्हें सुशांत की शुरुआती आटोप्सी रिपोर्ट में मेडिकल ऑब्जर्वेशन्स में कुछ निश्चित चूक दिखाई दीं.  मुंबई के कूपर अस्पताल में पोस्टमार्टम 14 जून की रात को किया गया था. राजपूत को उसी दिन दोपहर को बांद्रा में अपने माउंट ब्लैंक अपार्टमेंट में मृत पाया गया था. 

मेनन ने शुरुआती ऑटोप्सी रिपोर्ट की जांच की जो पब्लिक डोमेन में है. अस्पताल के अधिकारियों ने 14 जून की पोस्टमार्टम के आधार पर अपनी फाइनल रिपोर्ट 5 अगस्त को मुंबई पुलिस को सौंपी, बाद में सीबीआई और ट्रायल कोर्ट को भी सौंपी. यह रिपोर्ट मीडिया को नहीं जारी की गई. 

प्रारंभिक निष्कर्षों में, गर्दन के अंदर ऊतकों और हड्डियों पर कोई चोट नहीं देखी गई. मेनन के मुताबिक राजपूत के 82 और 84 किलो के बीच वजन को देखते हुए ये असामान्य बात है.  

मेनन ने ऑब्जर्व किया, "ट्रेकिअल कार्टिलेज या विंडपाइप और उसके चारों ओर जो कार्टिलेज है, उसे शुरुआती ऑटोप्सी रिपोर्ट में अप्रभावित दिखाया गया है. थायरॉयड कार्टिलेज, या घोड़े की नाल के आकार की हॉयड बोन पर भी कोई फ्रैक्चर नहीं देखा गया. न ही गर्दन के अंदर कोई सतही खून का निकलना दिखा, जहां फंदे का असर अधिकतम रहा होगा. वह थोड़ा असामान्य है." 

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मेनन ने बताया, एस्फिक्सिया (दम घुटने) से मौत पर आम तौर पर चेहरे और पलकों के अंदर छोटे पिनपाइंट निशान देखे जाते हैं. ये हवा का रास्ता बंद होने की वजह से होता है. 

लेकिन फोरेंसिक विशेषज्ञ ने नोटिस किया कि डॉक्टरों ने अपनी पहली ऑटोप्सी रिपोर्ट में ऐसे किसी संदर्भ का उल्लेख नहीं किया. 

मेनन ने ऑब्जर्व किया, "खुदकुशी के लिए लटकना या हत्या के लिए फंदे पर लटकाना, या गला घोंट कर हत्या जैसी स्थितियों खून निकलने के छोटे पिनपॉइंट निशान, चेहरे की त्वचा या पलकों के अंदर होना सामान्य है. उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति का उल्लेख प्रारंभिक ऑटोप्सी रिपोर्ट में अवश्य किया जाना चाहिए, जो कि यहां नहीं किया गया.” 

सीबीआई ने राजपूत के पोस्टमार्टम के सिलसिले में मुंबई के कूपर अस्पताल के डॉक्टरों और मुर्दाघर के स्टाफ से पूछताछ की है. 

आटोप्सी रिपोर्ट के निरीक्षण के लिए दिल्ली के प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मेडिकल एक्सपर्ट्स की टीम बनाई गई है. 

"एम्स के डॉक्टरों को स्पष्ट सुराग के लिए पोस्टमार्टम की तस्वीरों और वीडियो रिकॉर्डिंग पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ सकता है. जो कि अन्यथा कम से कम प्रारंभिक निष्कर्षों के कुछ अंशों में अस्पष्ट नजर आते हैं.”  

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 मेथेडोलॉजी 

स्वतंत्र फॉरेन्सिक विशेषज्ञ ने 14 जून को राजपूत की मौत से ज़ुड़ी घटनाओ की टाइम लाइन, घटनास्थल के लेआउट, प्रोविजनल ऑटोप्सी रिपोर्ट और टीवी-प्रिंट मीडिया पर गवाहों के बयानों के आधार पर विश्लेषण किया और इंडिया टुडे के साथ रिपोर्ट्स की सीरीज में अपनी राय साझा की. 

मेनन ने कहा, "हमने अपनी टिप्पणियों के आधार पर अपने काल्पनिक निष्कर्ष निकाले, जबकि असल भौतिक साक्ष्य जांचकर्ताओं के पास मौजूद हैं.  

 

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