Sadabad Assembly seat: मायावती के खास रहे रामवीर उपाध्याय की सीट, BJP लगा पाएगी सेंध?

2017 में रामवीर उपाध्याय सादाबाद (Sadabad) विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बने और उन्हें जिले की सभी सीटों से भी विधायक रहने का श्रेय हासिल है. उनकी पत्नी पूर्व सांसद सीमा हाल ही में बीजेपी में शामिल हुई जो जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं.

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Sadabad Assembly seat Sadabad Assembly seat

राजेश सिंघल

  • हाथरस,
  • 08 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 5:34 PM IST
  • सादाबाद जाट बाहुल्य क्षेत्र, ब्राह्मण-मुसलमानों की ठीक आबादी
  • लोकसभा चुनाव के बाद से बीएसपी से निलंबित चल रहे रामवीर
  • 2017 में रामवीर उपाध्याय ने आरएलडी के अनिल को हराया था

उत्तर प्रदेश के हाथरस का सादाबाद विधानसभा सीट क्षेत्र के बेहद चर्चित सीटों में से एक है. यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के बेहद करीबी रामवीर उपाध्याय (Ramveer Upadhyay) की वजह से जानी जाती है. हालांकि रामवीर इस समय बसपा से निलंबित है. ऐसे में इस सीट को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. 

मायावती के शासनकाल में 3 मई 1997 को जिला बने हाथरस में विधानसभा की कुल 3 सीटें हैं. ये सीटें हैं हाथरस, सादाबाद, तथा सिकंदराराऊ. इनमें हाथरस सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है. हाथरस जिले की कुल जनसंख्या 17 लाख 22 हजार 982 है जिसमें 8 लाख 22 हजार 77 महिला तो 9 लाख 20 हजार 705 पुरुष वोटर्स हैं.

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सामाजिक तानाबाना
जिले में वोटर्स की कुल संख्या 10 लाख 78 हजार 655 है जिसमें 4 लाख 85 हजार 572 महिला और 5 लाख 93 हजार 36 पुरुष मतदाता हैं जो जिले के तीन एमएलए तय करते हैं.

सादाबाद विधानसभा क्षेत्र के अनुमानित जातिगत आधार पर देखें तो सबसे ज्यादा आबादी जाट बिरादरी की है. यहां पर जाटों की कुल आबादी करीब 90 हजार है तो ब्राह्मण की आबादी 55 हजार है. इसके अलावा मुसलमान करीब 32000, बघेल करीब 28 हजार, ठाकुर करीब 20 हजार, यादव करीब 12 हजार, वैश्य करीब 15 हजार, जाटव करीब 28 हजार, धोबी करीब 15 हजार, नाई करीब 10 हजार, काछी करीब 8 हजार, वाल्मीकि करीब 5 हजार, धीमर करीब 5 हजार, प्रजापति करीब 5 हजार, खटीक करीब 5 हजार और अन्य जातियों की आबादी करीब 15 हजार है.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि 
हाथरस की सादाबाद सीट पर हाथरस ही नहीं उत्तर प्रदेश की पूरी जनता की नजर भी लगी हुई है. इस सीट पर 2012 तक बसपा को कोई भी प्रत्याशी अपनी जीत दर्ज नहीं करा सका था. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्व ऊर्जा मंत्री और बसपा प्रमुख मायावती के काफी करीबी माने जाने वाले रामवीर उपाध्याय ने इस सीट से बसपा प्रत्याशी के रूप में पहला चुनाव जीता.

लोकसभा चुनाव के बाद से रामवीर उपाध्याय बीएसपी से निलंबित चल रहे हैं. उनकी पत्नी बीजेपी का दामन थामकर अभी हाल ही में हाथरस जिला पंचायत की अध्यक्ष बनी हैं. बेटा सहित अन्य तीन छोटे भाई भी बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. तब सबको रामवीर उपाध्याय के अगले कदम का इंतजार है. वह बीएसपी में बहाल होंगे या बीजेपी में जाएंगे या फिर कहीं. यह तय नहीं है और यह भी तय नहीं है कि वह सादाबाद से चुनाव लड़ेंगे या कहीं और से.

हाथरस की सादाबाद विधानसभा सीट पर 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर अब तक हुए विधानसभा का सफर अनेक राजनीतिक उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा है. 1952 से लेकर अब तक इस सीट पर कई फेरबदल भी हुए. इस सीट पर 1962, 67, 69 में हुए चुनावों में लगातार तीन बार कांग्रेस के अशरफ अली जीते थे तो 2001 से 2007 तक तीन बार हुए चुनावों में राष्ट्रीय लोक दल का कब्जा रहा है. इसके अलावा यहां एक पार्टी का प्रत्याशी इस सीट से लगातार दो बार काबिज नही हो सका है.

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लेकिन प्रत्याशी पार्टी बदलकर लगातार दो बार काबिज होने का रिकॉर्ड दो बार बना चुका है. 1985 में मुस्तमंद अली खान लोकदल से और इसके बाद 1989 में जनता दल की टिकट पर चुने गए थे. इसके बाद विश्वंबर सिंह 1993 में जनता दल के टिकट पर लड़ कर विजयी हुए थे और 1996 में उन्होंने जनता दल बदल कर बीजेपी के टिकट पर विजयी हुए.

इस सीट पर खास बात यह भी रही है कि निर्दलीय प्रत्याशी कभी सत्तासीन नहीं हो सका हैं. जाट बाहुल्य इलाका होने के बाबजूद भी चौधरी अजीत सिंह का जादू उनके कद के मुताबिक चढ़कर नहीं बोल सका.

2017 का जनादेश

2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी के रामवीर उपाध्याय ने यहां आरएलडी के डॉक्टर अनिल चौधरी को 26,610 मतों के अंतर से हराया था. उन्होंने 91,385 मत हासिल किए थे.

बीजेपी की प्रीति चौधरी 36,134 और एसपी के पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल 28,980 मत ही पा सके थे. डॉक्टर अनिल चौधरी ने अब कांग्रेस का दामन थाम लिया है. इस सीट पर अबकी चुनाव में एसपी तथा आरएलडी के संभावित गठबंधन के चलते इस गठबंधन का पलड़ा भारी रहने के आसार है.

रिपोर्ट कार्ड

सादाबाद सीट से वर्तमान विधायक रामवीर उपाध्याय का जन्म हाथरस के बामोली गांव में 1957 में हुआ था. उनकी शिक्षा हाथरस जिले में हुई. फिर एलएलबी करके उन्होंने मेरठ तथा गाजियाबाद में वकालत भी की. 1991 के चुनाव से पहले वे क्षेत्र में सक्रिय हुए. 
उन्होंने हाथरस सीट से बीजेपी का टिकट पाने की कोशिश की. टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़कर अपनी भारी भरकम उपस्थिति दर्ज की लेकिन जीत नहीं मिली. 1996 में वह हाथरस से बीएसपी की टिकट पर चुनाव लड़े, जीते और पहली ही बार में मायावती के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने.

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इसी दौरान उन्हें 3 मई 1997 को हाथरस को अलीगढ़ से पृथक करके नया जिला बनवाने का श्रेय हासिल हुआ. हाथरस सीट से वह बीएसपी की टिकट पर 1996, 2002 व 2007 में विधायक चुने गए और हर बार मायावती मंत्रिमंडल में मंत्री बने. पूर्व ऊर्जा मंत्री और मायावती के निकट के कद्दावर नेताओं में उनकी पहचान है. 2012 का चुनाव रामवीर उपाध्याय हाथरस की सिकंदराराऊ सीट से लड़े और जीते भी.

2017 में रामवीर सादाबाद विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बने और उन्हें जिले की सभी सीटों से भी विधायक रहने का श्रेय हासिल है. उनकी पत्नी पूर्व सांसद सीमा उपाध्याय हाल ही में बीजेपी में शामिल हुई हैं जो जिला पंचायत की अध्यक्ष है.

छोटे भाई रामेश्वर भी बीजेपी में शामिल होकर मुरसान ब्लॉक से प्रमुख हैं. फिलहाल रामवीर उपाध्याय बीएसपी से निलंबित हैं और अस्वस्थ्य भी हैं. उनके परिवार के लोगों  ने जिस तरह से बीजेपी ज्वाइन की है उससे संभावना है कि वह भी चुनाव से पहले बीजेपी ज्वाइन करेंगे. जहां तक उनके कामकाज का सवाल है उन्हें क्षेत्र में विकास पुरुष के रूप में जाना जाता है. क्षेत्र में उन्होंने विधायक निधि से तमाम काम कराए हैं. 

 

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