उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले ज्वाइनिंग और दल-बदल वाली राजनीति शुरू हो गई है. रविवार को लखनऊ में महाराजा सुहेलदेव के वंशज मोनू राजभर ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ज्वाइन कर ली. उनके अलावा महाराजा सुहेलदेव सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष बब्बन राजभर भी अपने कार्यकर्ताओं और पार्टी के नेताओं के साथ भाजपा में शामिल हो गए. वहीं सुभासपा के पूर्व विधायक कालीचरण ने भी भाजपा का दामन थाम लिया.
ज्वाइनिंग कमेटी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी, सदस्य दयाशंकर सिंह की मौजूदगी में महाराजा सुहेलदेव के वंशज समेत पूर्व विधायक और नेताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाई गई. इस दौरान कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक और अनिल राजभर भी मौजूद रहे.
वहीं, बसपा से निष्कासित हरिशंकर तिवारी और उनके दोनों बेटों और कई ब्राह्मण नेताओं के समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने के सवाल पर लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि भाजपा पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला है. बाजपेयी ने कहा कि छह दिन पहले वे हमारे दरवाजे पर थे, लेकिन यहां से अस्वीकार होने के बाद वे समाजवादी पार्टी में जा रहे हैं. भाजपा को इससे कोई नुकसान नहीं होने वाला है.
पूर्वांचल में राजभर वोटर काफी अहम
पूर्वांचल के कई जिलों में राजभर समुदाय का वोट राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. यूपी राजभर समुदाय की आबादी करीब 3 फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है. गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में इनकी अच्छी खासी आबादी है, जो सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं.
2017 में ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, इसका सियासी फायदा दोनों पार्टियों को मिला था. यूपी की लगभग 22 सीटों पर बीजीपी की जीत में राजभर वोटबैंक बड़ा कारण था जबकि चार सीटों पर ओमप्रकाश राजभर की पार्टी को जीत मिली थी.
कौन थे महाराजा सुहेलदेव?
इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है कि महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे. जिन्हें एक महान योद्धा के तौर पर देखा जाता है. महमूद गजनवी ने जब हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया और उसकी अलग-अलग सेनाएं हिंदुस्तान में घुसने लगीं तब श्रावस्ती की कमान महाराजा सुहेलदेव के हाथ में ही थी.
महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद गाजी ने सिंधु नदी के पार तत्कालीन भारत के कई हिस्सों पर अपना कब्जा जमा लिया था. लेकिन जब वो बहराइच की तरफ आया, तब उसका सामना महाराजा सुहेलदेव से हुआ. बहराइच में हुई इस जंग में महाराजा सुहेलदेव ने गजनवी के भतीजे को धूल चटा दी.
महाराजा सुहेलदेव की अगुवाई में उनकी सेना ने सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी का खात्मा किया और पूरी टोली को ही मिट्टी में मिला दिया. करीब 17वीं सदी में जब फारसी भाषा में मिरात-ए-मसूदी लिखी गई, तब इस वाकये का विस्तार से जिक्र किया गया है.
संतोष शर्मा