इससे पहले मायावती की चुनावी जनसभाओं पर नजर दौड़ाई जाए तो देखने को मिलेगा कि मंच पर एक सिंहासन जैसी कुर्सी रखी जाती थी. जिस कुर्सी पर मायावती अकेले बैठती थीं और बगल में कोई कुर्सी नहीं रखी जाती थी. कुर्सी किसी लगती भी थी तो वो भी पीछे. अगल बगल कोई नेता नहीं होता था. यदि किसी को खड़े भी होना होता था तो कुर्सी से कुछ दूरी पर. महागठबंधन की पहली साझा रैली में ऐसा नजारा शायद पहली बार दिखा जब किसी चुनावी मंच पर बसपा सुप्रीमो मायावती बैठीं हों और वहां सोफा न होकर एक साथ तीन से ज्यादा कुर्सियां रखी गईं थी.
मंच पर आगे तीन कुर्सियां रखी गईं थीं इनमें से एक पर मायावती खुद बैठीं थीं. नजारा था रविवार महागठबंधन की पहली चुनावी सभा का जो यूपी के सहारनपुर में आयोजित थी. यह चुनावी सभा कई मायनों में खास रहा जिसमें कई नजारे ऐसे दिखे जो इसके पहले नहीं दिखाई दिए थे. सपा चीफ अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती पहली बार किसी जनसभा को साथ में संबोधित किया. इस दौरान आरएलडी चीफ अजित सिंह भी मौजूद थे.
महागठबंधन में तीन दल सपा- बसपा और आरएलडी शामिल है. मंच पर सबसे आगे रखी तीन कुर्सियों पर बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा चीफ अखिलेश यादव और आरएलडी चीफ अजित सिंह बैठे हुए थे. सबसे पहले मायावती ने जनसभा को संबोधित किया, उसके बाद सपा चीफ अखिलेश यादव और आखिरी में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह मंच से बोले.
इस मंच से बसपा सुप्रीमो मायावती ने एनडीए सरकार पर निशाना साधा लेकिन उससे कहीं अधिक बढ़कर कांग्रेस पर हमला बोला. मायावती ने कहा कि कांग्रेस की पिछली सरकार गलत नीतियों की ही वजह से कांग्रेस को सत्ता से दूर जाना पड़ा. केंद्र ही नहीं राज्यों की सरकारों से भी हाथ धोना पड़ा. कांग्रेस के कार्यकाल को सबने देखा है. कांग्रेस को चुनाव के समय ही सिर्फ गरीबों की याद आती है. कांग्रेस ने जो घोषणा पत्र जारी किया है वह पूर्व की तरह खोखले रहे हैं. कांग्रेस इस बार अच्छे दिन दिखाने वाली सरकार की ही तरह वादे कर रही है.
बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव 2014 और उसके बाद 2017 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपी की जिस प्रकार हार हुई उसके बाद बीएसपी और मायावती सुप्रीमो मायावती के वर्क स्टाइल में काफी बदलाव देखने को मिला है. यूपी में महागठबंधन बना है और एक साथ एकजुटता दिखानी है तो अपने पुराने स्टाइल को भूलकर आगे आने होगा.
पंकज सिंह