भारतीय संसद के लिए ऐतिहासिक तारीख है 13 मई, जानिए क्यों है खास

देश का पहला आम चुनाव कई मायनों में बेहद दिलचस्प रहा क्योंकि यह चुनाव करीब 4 महीने तक चला. 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच चले चुनाव में 1,849 उम्मीदवारों के बीच 489 सीटों पर फैसला आया. इस चुनाव में 17.3 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2019,
  • अपडेटेड 11:54 AM IST

17वीं लोकसभा के गठन को लेकर चुनाव प्रचार अब अपने अंतिम दौर में है. 7 चरणों में होने वाले मतदान में 6 चरण पूरे हो चुके हैं और सातवें चरण का मतदान 19 मई को होना है. नई लोकसभा के गठन के बाद पहला सत्र कब बुलाया जाएगा, ये तो भविष्य की गर्त में छिपा है, लेकिन 13 मई भारतीय संसद के लिए ऐतिहासिक है क्योंकि इस दिन भारतीय लोकसभा के इतिहास का पहला संसद सत्र बुलाया गया था और एक बार अंतिम संसद सत्र का गवाह भी बना.

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1951-52 में करीब 4 महीने चली चुनावी प्रक्रिया के बाद 17 अप्रैल को पहली लोकसभा का गठन किया गया था. लोकसभा के गठन के बाद संसद का पहला सत्र 13 मई, 1952 को आयोजित किया गया. देश की पहली लोकसभा ने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. यह लोकसभा 4 अप्रैल, 1957 को भंग हुई.

देश के पहले लोकसभा स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर रहे जिनके नेतृत्व में पूरी संसदीय कार्यवाही की गई. वह इस पद पर 27 फरवरी 1956 तक रहे. उनके बाद एमए आयंगर शेष लोकसभा के लिए स्पीकर बने. मावलंकर के निधन से पहले आयंगर ने डिप्टी स्पीकर के रूप में काम किया. पहली लोकसभा में कुल 677 बैठकें (3,784 घंटे) हुईं, जो देश के संसदीय इतिहास में सबसे ज्यादा बैठकों वाला सत्र रहा.

13 मई का दिन भारतीय संसद के इतिहास में एक और खास दिन के लिए जाना जाता है. 15वीं लोकसभा का अंतिम सत्र 2009 में 13 मई को ही खत्म हुआ था.

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कांग्रेस की बंपर जीत

देश का पहला आम चुनाव कई मायनों में बेहद दिलचस्प रहा क्योंकि यह चुनाव करीब 4 महीने तक चला. 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच चले चुनाव में 1,849 उम्मीदवारों के बीच 489 सीटों पर फैसला आया. इस चुनाव में 17.3 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

इस चुनाव में पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बंपर जीत हासिल की. कांग्रेस को रिकॉर्डतोड़ 364 सीटें हासिल हुईं. कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली. निर्दलीय प्रत्याशियों ने 37 सीटों पर जीत हासिल की. पार्टी के आधार पर देखा जाए तो कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) रही जिसको 16 सीटें मिलीं. सोशलिस्ट पार्टी को 12 सीटें मिलीं और वह चुनाव में तीसरी सबसे कामयाब पार्टी रही.

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