Exit Poll 2019: भारत में एग्जिट पोल के शुरू होने, बैन लगने और फिर से शुरू होने की कहानी

Lok Sabha Chunav Exit Poll Result 2019 चुनावों में राजनीतिक दलों की जीत-हार के परिणाम आने से पहले एग्जिट पोल यह बता देते हैं कि लहर किस किसके पक्ष में है. कभी-कभी ये सही भी होते हैं और गलत भी. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि एग्जिट पोल का चलन कब शुरू हुआ.

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Lok sabha chunav 2019 Exit Poll प्रतिकात्मक तस्वीर (IANS) Lok sabha chunav 2019 Exit Poll प्रतिकात्मक तस्वीर (IANS)

ददन विश्वकर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2019,
  • अपडेटेड 9:58 AM IST

भले ही एग्जिट पोल (Exit Poll) चुनावों में सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक दलों की हार-जीत तक सीमित से लगते हैं. पर शुरुआती दौर में इनका ऐसा इस्तेमाल नहीं होता था. बल्कि ये पत्रकार बिरादरी के लिए विभिन्न मसलों पर जनता की नब्ज टटोलने के औजार भी हुआ करते थे. एग्जिट पोल को शुरू करने का श्रेय जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन को जाता है.

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दरअसल, जॉर्ज और रोबिंसन ने सरकार के कामकाज पर अमेरिकी लोगों की राय जानने की कोशिश की थी. जिसमें उन्होंने पाया कि सैंपल और रिजल्ट में ज्यादा अंतर नहीं था. कमोबेश उस मसले पर लोगों की राय मिलती दिखी थी. उनका यह तरीका काफी फेमस हुआ. जिसे देखते हुए ब्रिटेन और फ्रांस ने भी इसे अपनाया. एक तरह से यह पहला एग्जिट पोल था जिसे ब्रिटेन और फ्रांस ने पहली बार 1937 और 1938 में अपनाया था. उस समय हुए चुनाव के नतीजे कमोबेश बिलकुल सटीक निकले थे.

जबकि मूल रूप से एग्जिट पोल शुरू करने का श्रेय नीदरलैंड के समाजशास्त्री मार्सेल वॉन को जाता है. मार्सेल वॉन ने 15 फरवरी, 1967 को पहली बार इसका इस्तेमाल डच विधानसभा चुनाव में किया था. मार्सेल पहले राजनीति में थे, लेकिन राजनीति छोड़ जनता की नब्ज टटोलने का काम करने लगे. नीदरलैंड में हुए चुनाव में उनका आकलन सटीक बैठा था. हालांकि कुछ स्रोत अमेरिकी जनमत सर्वेक्षक Warren Mitofsky को एग्जिट पोल का जनक मानते हैं.

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भारत में कब शुरू हुए एग्जिट पोल

भारत में एग्जिट पोल का खाका 1960 में खींचा गया था. इसे सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (CSDS) ने तैयार किया था. लेकिन 80 के दशक के मध्य में उस वक्त चार्टर्ड अकाउंटेंट से पत्रकार बने प्रणय रॉय ने मतदाताओं की नब्ज टटोलने की कोशिश की थी. यहीं से भारत में एग्जिट पोल शुरू हुए, ऐसा माना जाता है. शुरुआती दौर में जो भी एक्जिट पोल होते थे वे इंडिया टुडे मैगजीन में प्रमुखता से छपते थे. यह सिलसिला अब भी जारी है.

लोकसभा चुनाव 2019: जानिए क्या होते हैं एग्जिट पोल, कैसे निकलते हैं आंकड़े

साल 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल को नए आयाम दिए. दूरदर्शन ने 1996 में सीएसडीएस को देश भर में एग्जिट पोल की अनुमति दे दी. सीएसडीएस के किए एग्जिट पोल में किसी भी दल को बहुमत मिलता नहीं दिखा था. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत हासिल नहीं कर पायी थी. नतीजा ये रहा कि महज 13 दिन में अटल सरकार गिर गई. इसके बाद एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल ने मिलकर यूपीए की सरकार बनाई. इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में हुए एग्जिट पोल ज्यादातर समाचार चैनलों में प्रकाशित हुए. इस चुनाव में चार बड़ी चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसियां जैसे India Today/CSDS, DRS, Outlook/AC Nielsen और Frontline/CMS अपने सर्वे में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) को बड़ी पार्टी रूप में दर्शाया था, लेकिन बहुमत दूर रखा था.

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जब एग्जिट पोल के खिलाफ हो गईं सारी पार्टियां

शुरुआती दिनों में ये ओपिनयन पोल लोकप्रिय हुए, लेकिन राजनीतिक दलों की आंखों में खटकने भी लगे. लिहाजा सभी दल सुर में सुर मिलाकर इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगे. जिस पर 1999 में चुनाव आयोग ने बाकायदा एक एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल को बैन कर दिया. जिसके खिलाफ एक समाचार पत्र ने आयोग के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी थी. कोर्ट ने इस आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि आयोग के पास ऐसे ऑर्डर जारी करने की शक्ति नहीं है और किसी मसले पर सर्वदलीय सर्वसम्मति उसके खिलाफ कानूनी प्रतिबंध का आधार नहीं होती है.

कुछ फेरबदल के साथ फिर शुरू हुए एग्जिट पोल

2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर एग्जिट पोल को बैन करने की मांग उठी. जिस पर चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को प्रतिबंध के संदर्भ में कानून में बदलाव के लिए तुरंत एक अध्यादेश लाए जाने संबंधी पत्र लिखा. 2009 में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन किया. संशोधित कानून के अनुसार चुनावी प्रक्रिया के दौरान जब तक अंतिम वोट नहीं पड़ जाता, एक्जिट पोल नहीं दिखाए जा सकते हैं. इस कानून के अनुसार किसी भी माध्यम से कोई भी पोल के नतीजों को न तो दिखा सकता है और न ही प्रकाशित कर सकता है. एग्जिट पोल के बाद अब ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध की तलवार भी लटकी हुई है.

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किन-किन देशों में होते हैं एग्जिट पोल?

दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों का एग्जिट पोल को लेकर अलग-अलग मत है. कुछ इसे सही और कुछ गलत ठहराते हैं. बेल्जियम, डेनमार्क, जर्मनी और आयरलैंड जैसे देशों में एग्जिट पोल करने को खुली छूट है जबकि चीन, दक्षिण कोरिया और मैक्सिको में कुछ शर्तों के साथ एग्जिट पोल की इजाजत है.

क्या एग्जिट पोल का मतदाताओं पर असर पड़ता है?

इस दलील पर दुनिया भर के विशेषज्ञों की एक राय नहीं है. कुछ लोग इसे सिरे खारिज करते हैं तो कुछ का मानना है कि मतदाताओं पर असर पड़ने से प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है. इस पर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और फ्रांस की सीआरईएसटी संस्था के मनसा पतनम ने एक व्यापक शोध किया था. 'लर्निंग फ्रॉम एक्जिट पोल्स इन सीक्वेंशियल इलेक्शंसः इवीडेंस फ्राम ए पॉलिसी एक्सपेरीमेंट इन इंडिया' नाम से प्रकाशित 60 पेज के इस शोध पत्र में एक्जिट पोल के असर से मतदाताओं के व्यवहार में दिखे बदलाव की पड़ताल की गई है. इसमें पाया गया कि अंतिम घंटों के दौरान मतदान करने आए करीब 20 फीसदी मतदाताओं ने वोटिंग के शुरुआती क्रम में एक्जिट पोल में बढ़त लेनी वाली पार्टियों के पक्ष में मतदान किया.

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