गौरा बौराम विधानसभा सीट से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) की ओर विकासशील इंसान पार्टी के स्वर्ण सिंह ने जीत दर्ज की. उन्होंने महागठबंधन की ओर से राष्ट्रीय जनता पार्टी(आरजेडी) के अफजल अली खान को चुनावी समर में मात दी. एनडीए और महागठबंधन के बीच जीत का अंतर 7,280 रहा. वीआईपी के स्वर्ण सिंह को कुल 59,538 वोट मिले, वहीं आरजेडी के अफजल अली खान को 52,258 वोट मिले.
आरजेडी को कुल 36.21 फीसदी वोट, वहीं वीआईपी को 41.26 फीसदी वोट मिले. इस सीट से नोटा को कुल 770 वोट मिले. लोक जनशक्ति पार्टी के राजीव कुमार ठाकुर को कुल 9,123 वोट मिले. एलजेपी तीसरे नंबर की पार्टी रही, जिसे 6.32 फीसदी वोट मिले. निर्दलीय उम्मीदवार रजनी महतो को 3,407 वोट मिले, जो चौथे नंबर पर रहीं.
56.87 फीसदी मतदाताओं ने किया था वोट
दरभंगा जिले की गौरा बौराम विधानसभा सीट पर इस बार का मुकाबला बेहद दिलचस्प रहा. गौरा बौराम विधानसभा सीट साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. अतीत के हिसाब से बात करें तो नई-नवेली दिखने वाली इस सीट की गिनती बिहार की वीआईपी सीटों में की जाती है. सूबे की इस वीआईपी सीट से नीतीश कुमार की सरकार में खाद्य मंत्री मदन सहनी विधायक हैं. यह सीट, बंटवारे में वीआईपी को मिली. दरभंगा जिले के गौरा बौराम विधानसभा सीट के लिए दूसरे चरण में यानी 3 नवंबर को वोटिंग हुई. इस विधानसभा क्षेत्र के करीब 56.87 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया.
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किसके बीच रही कड़ी टक्कर?
यह सीट इस दफे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक विकासशील इंसान पार्टी के खाते में गई थी. वीआईपी ने यहां से स्वर्णा सिंह पर दांव लगाया था, जो बेहद कारगर रहा. जन अधिकार पार्टी ने इजहार अहमद और एलजेपी ने राजीव कुमार ठाकुर को उम्मीदवार बनाया. लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से अफजल अली को उम्मीदवार बनाया. इस सीट से 25 उम्मीदवार चुनाव मैदान में रहे. ऐसे में जेडीयू के लिए चुनावी राह आसान नहीं थी. साल 2010 और 2015 यानी गौरा बौराम विधानसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद हुए दो चुनाव में जेडीयू उम्मीदवारों ने ही जीत का परचम लहराया, लेकिन इस बार हार मिली.
साल 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के डॉक्टर इजहार अहमद ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आरजेडी के डॉक्टर महावीर प्रसाद को शिकस्त दी थी. साल 2015 में इस सीट के चुनावी इतिहास का दूसरा चुनाव हुआ. तब एनडीए से नाता तोड़कर आरजेडी के साथ महागठबंधन का अंग बन चुकी जेडीयू ने डॉक्टर अहमद की जगह मदन सहनी को चुनाव मैदान में उतारा.
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